बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और पीएम नरेंद्र मोदी.
नई दिल्ली:
पेट्रोल और डीज़ल की बढ़ी कीमतों को लेकर बीजेपी अंदर और बाहर दोनों तरफ से बुरी तरह घिर गई है. सरकार अपनी लाचारी जता चुकी है कि तेल की कीमतों पर अंकुश लगाना उसके बस में नहीं है. लेकिन जिस तरह से विपक्षी दलों की राज्य सरकारें एक के बाद एक वैट में कटौती कर अपने-अपने राज्यों में लोगों को तेल कीमतों में राहत दे रही है, उससे बीजेपी शासित राज्यों पर भी दबाव बढ़ता जा रहा है.
वैसे तो चुनावी राज्य राजस्थान में वैट में चार फीसदी की कटौती की गई है लेकिन दूसरे बीजेपी और बीजेपी के सहयोगी दलों के शासन वाले राज्यों में भी ऐसा ही करने का दबाव बढ़ता जा रहा है. सूत्रों से एनडीटीवी को पता चला है कि बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान की करीब डेढ़ घंटे चली बैठक में इस मुद्दे पर भी चर्चा हुई थी. अमित शाह ने प्रधान से कहा है कि वे बीजेपी के मुख्यमंत्रियों से इस बात पर चर्चा करें कि उनके राज्यों में वैट में कितनी कटौती कर लोगों को राहत दी जा सकती है.
तेल संकट के बीच पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान आज कैबिनेट के फैसलों पर जानकारी देने के लिए मीडिया से मुखातिब हुए. लेकिन तेल कीमतों के बारे में बार-बार पूछने के बावजूद उन्होंने इस मुद्दे पर कुछ भी कहने से इनकार कर दिया.
यह भी पढ़ें : तेल के दाम पर त्राहिमाम: पेट्रोल-डीजल के दाम को लेकर बसपा प्रमुख मायावती ने सरकार से की यह बड़ी मांग
इस बीच बीजेपी के सहयोगी दलों ने भी पार्टी पर दबाव बढ़ाना शुरू कर दिया है. वे बढ़ी कीमतों से जनता को हो रही तकलीफ से बेचैन बताए जा रहे हैं. सूत्रों के अनुसार लोक जनशक्ति पार्टी के नेता और केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान से फोन पर बात की. पासवान ने प्रधान से फोन पर पेट्रोल-डीज़ल की बढ़ी कीमतों पर चिंता जताई. पासवान ने कहा कि जनता को राहत देने के लिए तत्काल कदम उठाने जरूरी हैं. यह बातचीत सोमवार को हुई.
प्रधान ने पासवान से क्या कहा, इसका ब्यौरा नहीं मिल सका.
बीजेपी शासन के कई राज्यों में टैक्स की दरें बहुत ज्यादा हैं. खुद पासवान जिस राज्य बिहार से आते हैं वहां बीजेपी और जेडीयू की सरकार है. वहां भी टैक्स की दरें ज्यादा हैं. बिहार में पेट्रोल पर 24.71% और डीज़ल पर 18.34% वैट है. बीजेपी शासित महाराष्ट्र में देश में सबसे ज्यादा वैट है. वहां पेट्रोल पर 39.12% और डीज़ल पर 21.89% है. चुनावी राज्य मध्यप्रदेश में पेट्रोल पर 35.78% और डीज़ल पर 23.22% है. छत्तीसगढ़ में पेट्रोल पर 26.87% और डीज़ल पर 25.74% वैट है.
यह भी पढ़ें : राजस्थान, आंध्र प्रदेश के बाद पश्चिम बंगाल में भी पेट्रोल-डीजल के दाम कम हुए, ममता ने केंद्र से की यह 'गुजारिश'
हालांकि केंद्र सरकार के आला सूत्रों का कहना है कि राज्य भी टैक्स घटाने की स्थिति में नहीं हैं, न ही तेल कीमतों को जीएसटी में लाना इस समस्या का कोई हल है. हर राज्य ने पेट्रोल पदार्थों पर वैट लगाया हुआ है. इसके अलावा केंद्र जो भी इकट्ठा करता है उसका 42 फीसदी राज्यों को जाता है. मिसाल के तौर पर अगर पेट्रोल 83 रुपये प्रति लीटर है तो इसमें 20 रुपया राज्यों को कर के तौर पर मिलता है. साथ ही केंद्र की ओर से दस रुपये भी मिलते हैं. यानी टैक्स के रूप में जमा 42 रुपये में से 30 रुपये राज्यों को मिलते हैं और केंद्र को 12 रुपये. इसके अलावा राज्य ऐड वेलोरम टैक्स लगाते हैं जिनसे उनका मुनाफा बढ़ता है. इससे प्रति लीटर तीन से चार रुपये का अतिरिक्त मुनाफा होता है. लेकिन केंद्र के मुताबिक इसके बावजूद राज्यों में टैक्स घटाने की क्षमता नहीं है. केंद्र भी तभी राहत दे सकता है जब बजट घाटा कम हो. अभी टैक्स में कटौती का मतलब है राजकोषीय घाटे में बढोत्तरी और इसका मतलब यह भी है कि विकास कामों के लिए कम पैसा रहेगा.
जाहिर है केंद्र सरकार की उम्मीदें फिलहाल इसी बात पर टिकी हैं कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें गिरें और डॉलर के मुकाबले रुपया मजबूत हो. लेकिन अंतरराष्ट्रीय हालात फिलहाल इसकी ओर इशारा नहीं कर रहे हैं. ऐसे में चुनावों के नजदीक आते-आते बीजेपी का सिरदर्द और बढ़ेगा.
VIDEO : पेट्रोल पर हद से ज्यादा टैक्स?
फिलहाल बीजेपी मध्यम वर्ग के सामने आयकर में दी गई 98000 करोड़ रुपये की राहत और करीब साढ़े तीन सौ वस्तुओं पर घटाए गए जीएसटी में 80 हजार करोड़ रुपये की छूट का हवाला दे रही है. लेकिन यह मध्यम वर्ग की नाराजगी किस हद तक दूर कर पाएगा, यह जानने के लिए इंतजार करना होगा.
वैसे तो चुनावी राज्य राजस्थान में वैट में चार फीसदी की कटौती की गई है लेकिन दूसरे बीजेपी और बीजेपी के सहयोगी दलों के शासन वाले राज्यों में भी ऐसा ही करने का दबाव बढ़ता जा रहा है. सूत्रों से एनडीटीवी को पता चला है कि बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान की करीब डेढ़ घंटे चली बैठक में इस मुद्दे पर भी चर्चा हुई थी. अमित शाह ने प्रधान से कहा है कि वे बीजेपी के मुख्यमंत्रियों से इस बात पर चर्चा करें कि उनके राज्यों में वैट में कितनी कटौती कर लोगों को राहत दी जा सकती है.
तेल संकट के बीच पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान आज कैबिनेट के फैसलों पर जानकारी देने के लिए मीडिया से मुखातिब हुए. लेकिन तेल कीमतों के बारे में बार-बार पूछने के बावजूद उन्होंने इस मुद्दे पर कुछ भी कहने से इनकार कर दिया.
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इस बीच बीजेपी के सहयोगी दलों ने भी पार्टी पर दबाव बढ़ाना शुरू कर दिया है. वे बढ़ी कीमतों से जनता को हो रही तकलीफ से बेचैन बताए जा रहे हैं. सूत्रों के अनुसार लोक जनशक्ति पार्टी के नेता और केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान से फोन पर बात की. पासवान ने प्रधान से फोन पर पेट्रोल-डीज़ल की बढ़ी कीमतों पर चिंता जताई. पासवान ने कहा कि जनता को राहत देने के लिए तत्काल कदम उठाने जरूरी हैं. यह बातचीत सोमवार को हुई.
प्रधान ने पासवान से क्या कहा, इसका ब्यौरा नहीं मिल सका.
बीजेपी शासन के कई राज्यों में टैक्स की दरें बहुत ज्यादा हैं. खुद पासवान जिस राज्य बिहार से आते हैं वहां बीजेपी और जेडीयू की सरकार है. वहां भी टैक्स की दरें ज्यादा हैं. बिहार में पेट्रोल पर 24.71% और डीज़ल पर 18.34% वैट है. बीजेपी शासित महाराष्ट्र में देश में सबसे ज्यादा वैट है. वहां पेट्रोल पर 39.12% और डीज़ल पर 21.89% है. चुनावी राज्य मध्यप्रदेश में पेट्रोल पर 35.78% और डीज़ल पर 23.22% है. छत्तीसगढ़ में पेट्रोल पर 26.87% और डीज़ल पर 25.74% वैट है.
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हालांकि केंद्र सरकार के आला सूत्रों का कहना है कि राज्य भी टैक्स घटाने की स्थिति में नहीं हैं, न ही तेल कीमतों को जीएसटी में लाना इस समस्या का कोई हल है. हर राज्य ने पेट्रोल पदार्थों पर वैट लगाया हुआ है. इसके अलावा केंद्र जो भी इकट्ठा करता है उसका 42 फीसदी राज्यों को जाता है. मिसाल के तौर पर अगर पेट्रोल 83 रुपये प्रति लीटर है तो इसमें 20 रुपया राज्यों को कर के तौर पर मिलता है. साथ ही केंद्र की ओर से दस रुपये भी मिलते हैं. यानी टैक्स के रूप में जमा 42 रुपये में से 30 रुपये राज्यों को मिलते हैं और केंद्र को 12 रुपये. इसके अलावा राज्य ऐड वेलोरम टैक्स लगाते हैं जिनसे उनका मुनाफा बढ़ता है. इससे प्रति लीटर तीन से चार रुपये का अतिरिक्त मुनाफा होता है. लेकिन केंद्र के मुताबिक इसके बावजूद राज्यों में टैक्स घटाने की क्षमता नहीं है. केंद्र भी तभी राहत दे सकता है जब बजट घाटा कम हो. अभी टैक्स में कटौती का मतलब है राजकोषीय घाटे में बढोत्तरी और इसका मतलब यह भी है कि विकास कामों के लिए कम पैसा रहेगा.
जाहिर है केंद्र सरकार की उम्मीदें फिलहाल इसी बात पर टिकी हैं कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें गिरें और डॉलर के मुकाबले रुपया मजबूत हो. लेकिन अंतरराष्ट्रीय हालात फिलहाल इसकी ओर इशारा नहीं कर रहे हैं. ऐसे में चुनावों के नजदीक आते-आते बीजेपी का सिरदर्द और बढ़ेगा.
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फिलहाल बीजेपी मध्यम वर्ग के सामने आयकर में दी गई 98000 करोड़ रुपये की राहत और करीब साढ़े तीन सौ वस्तुओं पर घटाए गए जीएसटी में 80 हजार करोड़ रुपये की छूट का हवाला दे रही है. लेकिन यह मध्यम वर्ग की नाराजगी किस हद तक दूर कर पाएगा, यह जानने के लिए इंतजार करना होगा.
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