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This Article is From May 17, 2020

Bihar Lockdown: प्रवासी दिहाड़ी मजदूरों की बेबसी, खाने के लाले और ट्रेनों में चढ़ने के लिए संघर्ष

Lockdown: बिहार के गोपालगंज के जलालपुर स्टेशन पर मजदूरों की बेबसी के कई दृश्य नजर आए, किसी भी तरह अपने घर पहुंचना चाहते हैं प्रवासी श्रमिक

Bihar Lockdown: प्रवासी दिहाड़ी मजदूरों की बेबसी, खाने के लाले और ट्रेनों में चढ़ने के लिए संघर्ष
Coronavirus Lockdown: बिहार के गोपालगंज में रेलवे स्टेशन पर ट्रेन में चढ़ने के लिए कतार में जाते हुए प्रवासी श्रमिक.
गोपालगंज:

Coronavirus Lockdown: मुश्किल सफर, बढ़ती चुनौतियां... छलकी मजदूरों की बेबसी. लॉकडाउन से दिहाड़ी मजदूरी करने वालों पर आफत टूट पड़ी है. हर रोज कमाने और खाने वाली इस बिरादरी के पास खाने को कुछ नहीं है. दिल्ली, हरियाणा, पंजाब और यूपी के हजारों मजदूरों के परिवार पैदल ही लगातार पलायन कर रहे हैं. कोरोना का खतरा होने के बावजूद यह परिवार झुंड में पैदल एक हजार किलोमीटर दूरी तय करके हर रोज बिहार पहुंच रहे हैं. यहां यूपी-बिहार की सीमा गोपालगंज के जलालपुर स्टेशन के पास प्रवासी मजदूरों की परेशानी उनका पीछा नहीं छोड़ रही हैं.  

लॉकडाउन में दूसरे प्रदेशों से पैदल घर लौट रहे प्रवासी मजदूरों के हालात यूपी-बिहार की सीमा पर  गोपालगंज के जलालपुर स्टेशन पर देखने को मिली. कई दिनों से खाने को नहीं मिलने पर यहां प्रवासी मजदूर तपती धूप में भूख से इस कदर परेशान हैं कि खाने के पैकेट को देखते ही झपट पड़े. पहले हम, पहले हम की दम दिखने लगी. प्लेटफॉर्म पर खाने का पैकेट देख कोई ट्रेन की खिड़की से हाथ फैला रहा है, तो कोई प्लेटफॉर्म पर खाने के पैकेट बांटने वालों पर झपट रहा है. स्थिति ऐसी बनी कि खाने के पैकेट बांटने वाले को हाथ हिलाकर पुलिस बुलानी पड़ी. कुछ ऐसे भी मजबूर मजदूर दिखे, जो सूखा भोजन अपने गमछे में रखकर भूख को मिटा रहे थे. 

कटिहार के प्रवासी मजदूर अफसार आलम ने कहा कि ''खाने पीने की कुछ व्यवस्था नहीं है. कितना पैदल चलेंगे. जख्म हो गया है पैदल चलते-चलते. फिर भी हम हिम्मत जुटाकर चल रहे हैं कि आगे कोई मीडिया आ जाए, कोई सरकार हमारी व्यवस्था कर दे. अभी हम स्टेशन जा रहे हैं. क्या होता है, जाने के बाद पता चलेगा. गाड़ी मिली तो ठीक है, नहीं तो पैदल ही जाना पड़ेगा. ऊपर वाला ही मालिक है.'' 

पैदल पहुंचे प्रवासी मजदूरों को घर जाने की जल्दबाजी ऐसी थी कि ट्रेन खुलने के बाद जान जोखिम में डालकर चलती ट्रेन पर छलांग लगाकर बोगी में घुसने लगे. वहीं स्टेशन के बाहर हजारों की संख्या में एकत्रित हुए प्रवासी मजदूरों की बेबसी ऐसी झलक रही थी कि उनमें कोरोना का भय नजर नहीं आ रहा था. जद्दोजहद ऐसा था कि टिकट लेने के दौरान पुलिस को भी कभी कभार डंडे भांजने पड़े. एक मजदूर जख्म लिए अपने साथियों के सामने दर्द बयां कर रहा था. चिलचिलाती धूप में मजदूरों ने अपने बैग को सिलसिलेवार रख था ताकि ट्रेन की बोगी में क्रमबद्ध बैठ सकें. 

सहरसा के प्रवासी मजदूर शमसाद ने कहा कि ''गौतम बुद्ध नगर से आए हैं. सहरसा जिला जाना है. यह बैग लगाए हैं सिरियल नंबर के लिए. ट्रेन जिस हिसाब से आएगी, उस हिसाब से हम लोग बैठेंगे. यहां पब्लिक को पुलिस भी मार रही है. डंडा बरसा रही है. पुलिस का काम है पब्लिक की रक्षा करना, लेकिन पुलिस समझ नहीं रही है. बेमतलब डंडा मार रही है.'' 

महाराष्ट्र के औरंगाबाद में रेल की पटरी पर हुए हादसे के बाद भी प्रवासी मजदूर अपने आपको संभाल नहीं रहे हैं. ट्रेन के आने और जाने का उन्हें गम नहीं सता रहा, बल्कि ट्रेन पर किसी प्रकार सवार हो जाएं, उनकी एक ही चाह रही गई है. जिसको जिधर से रास्ता मिला, पटरियों को पार करके स्टेशन पर पहुंच रहे थे.  

जीआरपी के इंस्पेक्टर सतीश कुमार त्रिपाठी ने कहा कि ''अभी जो गाड़ी खुली जलालपुर स्टेशन से, यह अररिया जाएगी. यहां के बाद छपरा हाजीपुर फिर बरौनी होकर जाएगी. कुछ मजदूर समझ रहे थे कि ट्रेन नहीं आएगी. इसलिए दौड़कर चढ़ रहे थे. अभी एक और ट्रेन आने वाली है.'' 

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