Bihar Assembly Election2020: बिहार के जमुई जिले की पूरी अर्थव्यवस्था बीड़ी के कारोबार (Beedi Industry) पर टिकी है, लेकिन GST और लॉकडाउन के चलते इस पूरे उद्योग की कमर टूट गई है और इस उद्योग से जुड़े दस लाख लोग भुखमरी की दहलीज पर है. हालत यह है कि एक हजार बीड़ी बनाने के बाद मजदूरों को 85 रुपए मिल रही है और सरकार 60 रुपए टैक्स ले रही है. गांव में एक बुजुर्ग अपनी डलिया में तेंदू पत्ता रखकर बीड़ी बना रहे हैं. जमुई से 30 किमी दूर बिहार-झारखंड के गांव डेहरी डीह के लगभगर हर घर में इस तरह की बीड़ी बन रही है.70 साल के राम शाह दिनभर काम करने के बाद केवल पांच रुपए की बीड़ी बना पाए हैं. एक अन्य ग्रामीण डमरु पासवान भी पूरे परिवार के साथ बीड़ी बनाते मिले. ये दो दिन में एक हजार बीड़ी बनाते है तब जाकर इनको 85 रुपए मिलते हैं. यही कारण है कि सालों साल से बीड़ी बनाने के बावजूद इनकी आर्थिक दशा अब तक नहीं सुधरी है. 11 लोगों का परिवार की रोजी रोटी मजदूरी और बीड़ी बनाने पर ही टिकी है.
कुछ ग्रामीण महिलाओं से बिहार के चुनावी माहौल और बीड़ी कारोबार को लेकर बात हुई. इस महिला ने बताया कि वे बीते 25 साल से बीड़ी बना रही हैं. क्या चुनाव में वोट डालेंगी, इस पर एक अन्य महिला ने सपाट लहजे में कहा, 'का वोट दे हमारे लिए कुछ नहीं हो रहा है.' बीड़ी बनाने के चलते कई लोगों के हाथ और कमर में टेढ़ापन और आंखों की रोशनी कम हो जाती है] लेकिन जमुई से बीड़ी मजदूर के कल्याण के नाम पर 100 करोड़ का सेस वसूल चुकी सरकार ने एक अस्पताल तक इनके लिए नहीं बनवाया. डेहरी डीह गांव के बीड़ी श्रमिक डमरु पासवान कहते हैं, 'बीड़ी बनाने में बड़ा कष्ट है कमर टूट जाती है और आंख खराब हो जाती है. बीड़ी मजदूर का कार्ड बनवाने जाते हैं पांच सौ घूस मांगा जाता है. दौड़ते रहो कार्ड नहीं बनता है.' बिहार के पूर्व श्रम मंत्री विजय प्रकाश बताते हैं कि मैंने इन बीड़ी श्रमिकों की मजदूरी 215 रुपए करने की कोशिश की थी लेकिन बिचौलिया लग गया, कर ही नहीं पाया.'
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जमुई की पूरी अर्थव्यवस्था बीड़ी उद्योग से चलती है, इसी के चलते कम मजदूरी पर बात करने के लिए हम झाझा के बीड़ी फैक्ट्री के मालिकों के पास पहुंचे लेकिन वो इसका कारण GST और नक्सलियों पर फोड़ते हैं. बीड़ी पत्ता व्यापारी संघ के महासचिव प्रफुल्ल चंद्र त्रिवेदी के अनुसार, बीड़ी मजदूरों के शिक्षा स्वास्थ्य की मदद के लिए कार्ड डेढ़ लाख बना है लेकिन बीड़ी मजदूर तक योजना नहीं है. नक्सल प्रभावित और पथरीली जमीन के चलते जमुई की अर्थव्यवस्था पूरी तरह बीड़ी पर निर्भर है. बीड़ी उद्योग धीरे धीरे सिमटने से रोजी-रोजगार का बड़ा संकट पैदा होने का डर है.
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