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This Article is From Oct 19, 2020

बिहार : चुनावी वक्त में दिखावटी नल में जल नहीं; योजना की यह है जमीनी हकीकत

Bihar Election 2020: 58 हजार वार्ड में साफ पानी पहुंचाने का लक्ष्य, 80 फीसदी काम पूरा होने का दावा, जलस्तर नीचे जाने और भ्रष्टाचार से फेल हो रही है योजना

बिहार : चुनावी वक्त में दिखावटी नल में जल नहीं; योजना की यह है जमीनी हकीकत
बिहार के सासाराम जिले में पोखर के प्रदूषित पानी का उपयोग करते हुए लोग.
सासाराम:

Bihar Election 2020: चार साल से चल रही बिहार सरकार (Bihar Government) की सबसे महत्वाकांक्षी नलजल योजना का काम इस चुनाव में बहुत तेजी से चल रही है. लेकिन 17 हजार करोड़ रुपये की लागत से 58 हजार वार्डों में साफ पानी पहुंचाने की ये योजना कागज पर तो शानदार है लेकिन जमीन पर भ्रष्टाचार की शिकार हो चुकी है. हमने औरंगाबाद (Aurangabad) और सासाराम (Sasaram) जाकर इस योजना की जमीनी हकीकत जानने की कशिश की है. 

नीतीश कुमार के नलजल योजना के बखान की जमीनी हकीकत जानने हमने सासाराम के शिवसागर प्रखंड का रुख किया. इस इलाके के पानी में आर्सेनिक और फ्लोराइड होने के बावजूद मौऊनी गांव की महादलित बस्ती नहाने धोने से लेकर पीने के पानी के लिए तालाब पर ही निर्भर है. बस्ती में दो साल पहले सरकारी पाइप और नल दोनों लगा लेकिन पानी नहीं पहुंचा. मौऊनी गांव के महादलित दूसरे टोले से पानी नहीं ले सकते लिहाजा एक पोखरा से पानी लेते हैं फिर ऊबाल कर पीते हैं.

सासाराम में 3 हजार 3 सौ वार्ड हैं. 70 फीसदी से ज्यादा वार्डों में नलजल योजना के तहत काम हो चुका है. लेकिन शिव सागर प्रखंड के वार्ड सदस्य बताते हैं कि 60 फीसदी लगाई गई टंकियों में पानी नहीं आ रहा है. सोनहर पंचायत के वार्ड सदस्य मनोज कुमार राय ने बताया कि इस पंचायत में तेरह गांव हैं. सब जगह का हालत खराब है. पाइप बिछ गई है, पानी नहीं आया है. 

सासाराम से करीब 70 किमी दूर औरंगाबाद के बेढ़नी गांव में सड़क से गुजरेंगे तो हर घर में पाइप जाता दिखेगा. लेकिन घर का दरवाजा खुलवाकर जब हम दाखिल हुए तो पानी का पाइप शो रूम की तरह दीवार पर लटका दिखा. इसी गांव के अंदर हम पहुंचे तो हर घर के बाहर पुराना हैंडपंप और नया नल लगा दिखा लेकिन पानी दोनों में नहीं आ रहा है. चुनावी वक्त में राजपूत टोले में चमचमाती टंकी लग गई है लेकिन यहां भी पानी का पता नहीं है. राजन सिंह बताते हैं कि सरकारी कागज में पानी चालू है.

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बेड़नी गांव से बीस किमी दूर हम यारी गांव पहुंचे. चार साल पहले मिनी जल योजना से 50 लाख रुपये में पानी की टंकी बनी लेकिन अब मोटर गायब है और बिजली के लिए लगा सोलर पैनल खराब पड़ा है. यही नहीं पानी की टंकी का ढांचा बनकर खड़ा है लेकिन चारदीवारी ढह चुकी है. लिहाजा इस जर्जर पंप से करीब एक किमी दूर गांव के लोग फिर से तालाब और हैंडपंप पर निर्भर हो गए हैं.

इसी तरह कुडा गांव में महीने भर पहले टंकी लग गई लेकिन 200 फीट की जगह मात्र 70 से 80 फीट पर बोरिंग होने के चलते मोटर खराब हो गई है. गांवों में नल जल योजना की टंकी बनाने पर 15 लाख रुपये का खर्चा आता है. लघु पेयजल योजना पर 30 लाख से ज्यादा का खर्च आता है और चार साल से काम भी हो रहा है. लेकिन चुनाव के चलते सरकार नलजल योजना की टंकी बनाने और कनेक्शन देने में जल्दबाजी कर रही है भले पानी की सप्लाई हो या न हो.

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