राष्ट्रीय जनता दल (Rashtriya Janta Dal) के अध्यक्ष लालू यादव (Lalu Yadav) को चारा घोटाले के एक और मामले में ज़मानत मिल गई है लेकिन दुमका कोषागार के एक मामले में फ़िलहाल उन्हें जमानत नहीं मिली हैं इसलिए उन्हें रिहा होने के लिए अभी इंतज़ार करना होगा. इस मामले में सजा का पचास प्रतिशत अगले महीने यानी 9 नवम्बर को पूरा होगा. इसलिए, तब तक लालू यादव को जेल में ही रहना होगा. राष्ट्रीय जनता दल के नेता और कार्यकर्ता अब यह मानकर चल रहे हैं कि पहली बार बिहार विधान सभा चुनाव (Bihar Assembly Electionn) में लालू यादव प्रचार अभियान के लिए उपलब्ध नहीं होंगे.
हालाँकि, इससे पहले पिछले साल हुए लोक सभा चुनाव में भी लालू यादव ने चुनाव प्रचार में भाग नहीं लिया था.उस समय भी लालू जेल में बंद थे. ऐसे में सारा ज़िम्मा उनके छोटे बेटे तेजस्वी यादव के कंधों पर था. शुक्रवार (9 अक्टूबर) के कोर्ट के फ़ैसले के बाद अब साफ़ हो गया कि इस बार के विधान सभा चुनाव में भी तेजस्वी यादव के ऊपर ही सभी प्रत्याशियों के प्रचार की ज़िम्मेवारी होगी.
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लालू यादव ने पहली बार लोक सभा चुनाव 1977 में लड़ा था. उसमें उन्हें जीत हासिल हुई थी. 1990 में वो राज्य के मुख्यमंत्री बने. 1990 के बिहार विधान सभा चुनाव से पहले लालू यादव जनता दल और बाद में राष्ट्रीय जनता दल के ना सिर्फ स्टार प्रचारक रहे बल्कि चुनाव प्रबंधन का पूरा ज़िम्मा उन्हीं पर होता था. इस बार ये सारी जिम्मेदारी तेजस्वी यादव के कंधों पर आ गई है. हालाँकि इसका वोटर पर कोई असर नहीं होता लेकिन महागठबंधन के प्रत्याशियों का कहना है कि लालू यादव की अनुपस्थिति सबको खलती है. लोगों से संवाद का उनका तरीका अलग होता था. 1980 में पहली बार लालू यादव बिहार विधान सभा के लिए चुने गए थे.
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