महाराष्‍ट्र में गौवंश हत्या बंदी कानून पर स्थगन देने से बॉम्बे हाई कोर्ट का इनकार

नई दिल्‍ली:

बॉम्बे हाई कोर्ट ने राज्य में गौवंश हत्या बंदी कानून पर स्टे देने से मना कर दिया है। लेकिन अपने पास गौवंश मांस रखने वालों को ये कहकर राहत दी है कि 3 महीने उनके खिलाफ पुलिस कड़ी कार्रवाई ना करे। क्योंकि ये कानून अचानक से आया है।

लेकिन कोर्ट ने ये भी साफ किया है कि इसका ये मतलब नहीं कि कोई राज्य के बाहर से गौवंश का मांस मंगवा सकता है। मामले में अदालत 25 जून को अपना अंतिम फैसला सुनाएगी। उसके पहले राज्य सरकार से मामले में अपना व्यापक पक्ष रखने को कहा गया है। बॉम्बे हाई कोर्ट ने अपना ये अंतरिम फैसला अदालत में दायर 3 याचिकाओं पर सुनाया है।

इस बीच एनसीपी नेता शरद पवार ने गोवंश हत्या बंदी कानून को राज्य के किसानों के खिलाफ बताकर एक नया मोड़ देने की कोशिश की है। शरद पवार का कहना है कि इस कानून से राज्य के किसानों की अर्थव्यवस्था संकट में पड़ जाएगी। नए कानून के मुताबिक राज्य में अब गाय के अलावा बैल और बछड़ों को काटने, खाने या फिर उनका मांस रखने पर प्रतिबन्ध है। दोषी पाए जाने पर 5 साल की सजा और 10 हजार के दंड का प्रावधान है।

इस कानून के खिलाफ बॉम्बे हाई कोर्ट में 3 याचिका दायर हुई है। याचिका में नए कानून की धारा 5(D) और 9(A) को चुनौती दी गई है। इस धारा के तहत ही राज्य में गोवंश का मांस रखने और खाने पर भी प्रतिबंध है। याचिकाकर्ता के वकील प्रताप निम्बालकर के मुताबिक कानून की धारा 5(D) मनुष्य के खाने के मूलभूत अधिकार का हनन कर रही है। हम क्या खाएं ये सरकार तय नहीं कर सकती।

याचिकाकर्ता का तर्क है कि उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में गौ हत्या पर प्रतिबन्ध है लेकिन राज्य के बाहर से लाकर मांस रखने और खाने पर प्रतिबन्ध नहीं है।

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वहीं दूसरी तरफ राज्य सरकार की तरफ से एडवोकेट जनरल सुनील मनोहर ने अदालत को बताया है कि मांस खाना किसी नागरिक का मूलभूत अधिकार नहीं हो सकता है। कार्यपालिका किसी भी प्राणी के मांस खाने पर नियंत्रण ला सकती है जिनका सोर्स निंदनीय है। सुनील मनोहर का कहना है अगर धारा 5(D) को खत्म किया जाएगा तो गोवंश हत्या प्रतिबन्ध कानून सिर्फ कागजों पर रह जायेगा और उसका उद्देशय साध्य नहीं होगा।