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This Article is From Jul 07, 2015

एंबुलेंस को सरकारी अस्पताल टरकाते रहे और एक दिन के बच्‍चे की जान चली गई

एंबुलेंस को सरकारी अस्पताल टरकाते रहे और एक दिन के बच्‍चे की जान चली गई
अस्‍पतालों की लापरवाही से एक दिन के बच्‍चे ने तोड़ा दम
नई दिल्‍ली: एलएनजेपी के डॉक्टर अड़ गए कि बच्चे को लेकर अंदर आओ। ना तो हम एंबुलेंस में देखेंगे और ना ही हमारे पास पोर्टेबल सिलेंडर है। ये कहना है कैट्स के एसिस्टेंड मेडिकल ऑफिसर एसएस चिकारा का। नतीजा देरी होती गई और 1 दिन के नवजात ने दम तोड़ दिया।

कैट्स की एंबुलेंस एक अस्पताल से दूसरे तक भटकती रही। ना तो कहीं बेड मिला और ना ही वेंटिलेटर। डॉक्टर और अस्पताल अपना पल्ला झाड़ते रहे। बच्चे के पिता धीरज शर्मा कहते हैं कि प्राइवेट में इलाज करवाने की हैसियत नहीं थी, लिहाजा उम्मीद सरकारी अस्पतालों पर टिकी, लेकिन क्या पता था कि जिस इलाज के लिए हम भागदौड़ कर रहे हैं वहां हर जगह ना सुनना पड़ेगा।

सोमवार की दोपहर सबसे पहले एंबुलेंस केंद्र सरकार के अस्पताल कलावती सरन पहुंची। जहां से बिना इलाज के रवाना कर दिया गया। लिखित तौर पर दिया गया कि यहां ना तो बेड है और ही कोई वेंटिलेटर खाली है। फिर आरएमएल, लेकिन वहां भी बकायदा लिखित में डॉक्टरों ने बेड और वेंटिलेटर ना होने की लाचार जताई। अब आरएमएल अस्पताल के एमएस एके गडपायले कह रहे हैं कि हम इस मामले की जांच कर रहे हैं।

फिर एंबुलेंस दिल्ली सरकार के अस्पताल एलएनजेपी पहुंची। घंटे भर की बहस और चिरौरी के बाद डॉक्टर तैयार तो हुए पर देखने एंबुलेंस तक आने पर राजी नहीं हुए और ना ही पोर्टेबल ऑक्सीजन सिलेंडर मिला। अब एमएवाई के सरीन कहते हैं कि जब बच्चा आया तो दम तोड़ चुका था। हमने इलाज के लिए कोशिश की और कोताही हमारी तरफ से नहीं हुई है।

उधर दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन ने भी नपे तुले लहजे में कहा कि हमारे अस्पताल की लापरवाही नहीं, लेकिन हम केंद्र सरकार के अस्पतालों को चिट्ठी लिखेंगे कि मरीजों के साथ आखिर ऐसा रवैया क्यों।

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