असम में चार महीने बाद विधान सभा चुनाव (Assam Assembly Election) होने हैं लेकिन सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी अभी से ही सत्ता में दोबारा वापसी को लेकर आश्वस्त नजर आ रही है. हालांकि, सालभर पहले तक बीजेपी इतनी आश्वस्त नहीं थी लेकिन हाल ही में हुए बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद ( Bodoland Territorial Council- BTC) चुनावों के नतीजों से बीजेपी गदगद है. 2015 के मुकाबले इस चुनाव में बीजेपी एक की जगह नौ सीट जीतने में कामयाब रही है. विधान सभा चुनाव से पहले हुए बीटीसी चुनाव को सेमीफाइनल माना जा रहा था. फरवरी 2020 में बोडो शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए जाने के बाद यह पहला चुनाव था.
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) फिलहाल दो दिनों के राज्य दौरे पर हैं. विधान सभा चुनावों से पहले शाह का यह दौरा काफी अहम है. एक तो शाह पार्टी कार्यकर्ताओं में आगामी चुनावों को लेकर जोश भरेंगे, दूसरे चुनाव तैयारियों और प्रचार अभियान को हरी झंडी देंगे. इससे भी ज्यादा अहम है कि शाह पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल की तर्ज पर मुख्य विपक्षी दल में सेंधमारी करने जा रहे हैं. बीजेपी ने असम में जीत के लिए मिशन 100 रखा है. यानी 126 सदस्यों वाली विधान सभा में 100 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है. इसके लिए पार्टी ने अपनी पुरानी रणनीतियों में भी फेरबदल किया है-
चुनाव से पहले बदला पार्टनर:
बीजेपी ने 2016 का विधान सभा चुनाव बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट (BPF)और असम गण परिषद (AGP) के साथ मिलकर लड़ा था लेकिन बीटीसी चुनावों से ऐन पहले बीजेपी ने बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट का साथ छोड़ दिया है. 2016 के विधान सभा चुनाव में बीजेपी को 60, एजीपी को 14 और बीपीएफ को 12 सीटें मिली थीं.
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अब बीजेपी ने बीपीएफ की जगह छात्र नेता से नेता बने प्रमोद बोरो की कट्टरपंथी यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल (यूपीपीएल) से दोस्ती की है. बीटीसी में बीजेपी ने उसके साथ ही सत्ता कब्जाई है. बीटीसी के अलावा तीवा ऑटोनोमस काउंसिल (TAC) चुनावों में भी बीजेपी की 36 में से 33 सीटों पर जीत हुई है, 2015 में बीजेपी को मात्र तीन सीटें मिली थीं. इन दोनों चुनावों में जीत दर्ज करने के बाद बीजेपी के मंसूबे मजबूत हो चुके हैं.
विपक्षी खेमे में सेंधमारी:
स्थानीय निकाय चुनावों में मजबूती से जीत दर्ज करने के बावजूद बीजेपी मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस को कमजोर करने में कोई कसर छोड़ना नहीं चाह रही. माना जा रहा है कि अमित शाह के मौजूदा असम दौरे में कुछ बड़े कांग्रेसी नेता बीजेपी का दामन थाम सकते हैं. कुछ दिनों पहले ही कांग्रेस की विधायक अंजता नियोग ने मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल और हिमंत बिस्व सरमा से मुलाकात की थी. इसके बाद पार्टी ने उन्हें संगठन के पदों से हटा दिया है. माना जा रहा है कि पूर्व मंत्री नियोग बीजेपी में शामिल होंगी.
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कांग्रेस अब भी अकेली:
असम कांग्रेस ने बीजेपी को कड़ी टक्कर देने के लिए भले ही दो लेफ्ट पार्टियों CPI और CPI(ML) से हाथ मिला लिया हो लेकिन अब भी कांग्रेस बीजेपी के मुकाबले काफी कमजोर है. हालिया निकाय चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन खराब रहा है. कांग्रेस जब तक अन्य दलों खासकर बदरुद्दीन अजमल की AIUDF के साथ गठजोड़ नहीं करती, तब तक असम में बीजेपी को कड़ी टक्कर देती नहीं दिख रही है. 2016 के चुनावों में कांग्रेस 52 सीटों के नुकसान के साथ मात्र 26 सीटें ही जीत पाई थी. AIUDF ने तब पांच के नुकसान के साथ 13 सीटें जीती थीं.
2016 से 2021 की भिन्न परिस्थितियां:
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा पिछले साल संसद से पास कराए गए नागरिकता संशोधन कानून के बाद असम में वोटरों का ध्रुवीकरण तेजी से हुआ है. पिछले साल कई विपक्षी दलों ने इस कानून का तीव्रतर विरोध किया था लेकिन बीजेपी सरकार ने उसे काबू में किया. इसके अलावा बीजेपी ने एक साल के अंदर असम के लगभग सभी इलाकों में अपनी पैठ मजबूत की है. कई विरोध-प्रदर्शन करने वालों ने भी बीजेपी का दामन थाम लिया. कुछ ने अपनी छोटी-छोटी पार्टी बना ली जो कांग्रेस के लिए वोटकटवा साबित हो सकते हैं. इसके अलावा राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई का निधन हो चुका है, इससे कांग्रेस का प्रदेश नेतृत्व भी कमजोर हुआ है.
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