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This Article is From Jan 26, 2020

नागरिकता कानून के विरोध में दिए गए प्रस्ताव पर यूरोपीय संसद में होगी बहस

इस प्रस्ताव में संयुक्त राष्ट्र के घोषणापत्र, मानव अधिकार की सार्वभौमिक घोषणा (यूडीएचआर) के अनुच्छेद 15 के अलावा 2015 में हस्ताक्षरित किए गए भारत-यूरोपीय संघ सामरिक भागीदारी संयुक्त कार्य योजना और मानव अधिकारों पर यूरोपीय संघ-भारत विषयक संवाद का जिक्र किया गया है.

नागरिकता कानून के विरोध में दिए गए प्रस्ताव पर यूरोपीय संसद में होगी बहस
प्रतीकात्मक चित्र
नई दिल्ली:

यूरोपीय संसद भारत के संशोधित नागरिकता कानून (CAA) के खिलाफ उसके कुछ सदस्यों द्वारा पेश किए गए प्रस्ताव पर बहस और मतदान करेगी. संसद में इस सप्ताह की शुरुआत में यूरोपियन यूनाइटेड लेफ्ट/नॉर्डिक ग्रीन लेफ्ट (जीयूई/एनजीएल) समूह ने प्रस्ताव पेश किया था जिस पर बुधवार को बहस होगी और इसके एक दिन बाद मतदान होगा. इस प्रस्ताव में संयुक्त राष्ट्र के घोषणापत्र, मानव अधिकार की सार्वभौमिक घोषणा (यूडीएचआर) के अनुच्छेद 15 के अलावा 2015 में हस्ताक्षरित किए गए भारत-यूरोपीय संघ सामरिक भागीदारी संयुक्त कार्य योजना और मानव अधिकारों पर यूरोपीय संघ-भारत विषयक संवाद का जिक्र किया गया है.

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इसमें भारतीय प्राधिकारियों के अपील की गई है कि वे सीएए के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे लोगों के साथ रचनात्मक वार्ता करें और भेदभावपूर्ण सीएए को निरस्त करने की उनकी मांग पर विचार करें. प्रस्ताव में कहा गया है कि सीएए भारत में नागरिकता तय करने के तरीके में खतरनाक बदलाव करेगा. इससे नागरिकता विहीन लोगों के संबंध में बड़ा संकट विश्व में पैदा हो सकता है और यह बड़ी मानव पीड़ा का कारण बन सकता है. सीएए भारत में पिछले साल दिसंबर में लागू किया गया था जिसे लेकर देशभर में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. भारत सरकार का कहना है कि नया कानून किसी की नागरिकता नहीं छीनता है बल्कि इसे पड़ोसी देशों में उत्पीड़न का शिकार हुए अल्पसंख्यकों की रक्षा करने और उन्हें नागरिकता देने के लिए लाया गया है.

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बता दें कि इससे पहले अमेरिका ने भी सीएए को लेकर अपनी राय रखी थी. पिछले साल अमेरिका ने कहा था उन्होंने (सरकार) देश में नागरिकता और धार्मिक आजादी जैसे मुद्दों पर मजबूत बहस छेड़ी है. अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो (Mike Pompeo) ने इस बारे में कहा था कि हम इस बात की परवाह करते हैं कि हर जगह अल्पसंख्यकों के धार्मिक अधिकारों का हनन न हो. हम भारतीय लोकतंत्र का सम्मान करते हैं कि वहां नागरिकता के मुद्दे पर एक मजबूत बहस हो रही है. अमेरिका न केवल भारत में बल्कि दुनियाभर में इन मुद्दों पर प्रतिक्रिया देता रहा है.'

माइक पोम्पियो ने भारत में नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में हो रहे प्रदर्शनों से जुड़े सवाल पर यह बात कही थी. अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो और रक्षा मंत्री मार्क एस्पर ने 18 दिसंबर को 'टू प्लस टू' बातचीत के लिए भारतीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और विदेश मंत्री एस जयशंकर की मेजबानी की थी. एक सवाल में जब आरोप लगाया गया था कि यह कानून धार्मिक आधार पर नागरिकों से भेदभाव कर रहा है, इसके जवाब में एस जयशंकर बोले, 'आपने जो सवाल किया था वो भारत से जुड़ा है. अगर आप इसे ध्यान से पढ़ेंगे तो पाएंगे कि ये एक ऐसा उपाय है जो कुछ देशों के सताए हुए धार्मिक अल्पसंख्यकों की जरूरतों को पूरा करने के लिए बनाया गया है.'

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उन्होंने आगे कहा था कि अगर आप ये देखते हैं कि वे देश क्या हैं और इसलिए उनके अल्पसंख्यक क्या हैं, तो शायद आप समझते हैं कि कुछ धर्मों की पहचान उन लोगों के चरित्र निर्माण की दिशा में क्यों की गई थी.' राजनाथ सिंह ने कहा कि नागरिकता संशोधन कानून किसी भी तरह से मुस्लिमों के खिलाफ नहीं है. इस कानून के तहत लोगों को नागरिकता दी जाएगी और इसका किसी भी भारतीय नागरिक पर कोई असर नहीं पड़ेगा. बताते चलें कि भारतीय अधिकारियों ने इस बारे में कोई पुष्टि नहीं की थी कि 'टू प्लस टू' बातचीत में धार्मिक स्वतंत्रता और मानवाधिकार पर बातचीत होगी कि नहीं. इससे पहले अमेरिकी सचिव ने भारत के साथ द्विपक्षीय बातचीत में भारत में मानवाधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता का मु्द्दा उठाया था.

(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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