दिल्ली समेत उत्तर भारत के अधिकतर हिस्सों में धुंध छाने और हवा की गुणवत्ता में तेजी से गिरावट आने के बीच वैज्ञानिकों ने आगाह किया है कि वायु प्रदूषण और कोविड-19 के मामलों के बीच कोई संबंध पूरी तरह भले ही साबित नहीं हो पाया है लेकिन लंबे समय तक प्रदूषण से फेफड़े के संक्रमण का खतरा बना रहेगा. वायु प्रदूषण के उच्च स्तर और कोविड-19 के मामलों में वृद्धि तथा मौत के मामलों के बीच संभावित जुड़ाव का उल्लेख करने वाले वैश्विक अध्ययनों के बीच वैज्ञानिकों ने यह चिंता व्यक्त की है.
अमेरिका में हार्वर्ड विश्वविद्यालय के अध्ययनकर्ताओं द्वारा सितंबर में किए गए एक अध्ययन में यह पता चला कि पीएम 2.5 में प्रति घन मीटर केवल एक माइक्रोग्राम वृद्धि का संबंध कोविड-19 से मृत्यु दर में आठ प्रतिशत बढ़ोतरी से है. हार्वर्ड के अध्ययन में लेखक रहे जियाओ वू ने ‘पीटीआई-भाषा' को बताया, ‘‘मौजूदा सीमित रिपोर्ट के मद्देनजर दिल्ली में पीएम 2.5 स्तर में बढ़ोतरी का संबंध कोविड-19 के मामलों से हो सकता है...हालांकि अभी यह ठोस रिपोर्ट नहीं है.''
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उन्होंने कहा कि लंबे समय तक हवा के प्रदूषित रहने और कोविड-19 मामलों के बीच संबंध को कई अध्ययनों में शामिल किया गया है . यह दिखाता है कि वायु प्रदूषण का स्वास्थ्य पर बुरा असर एक बार कोविड-19 से संक्रमित होने के खतरे को और बढ़ा देता है.
कैंब्रिज विश्वविद्यालय में अप्रैल में एक और अध्ययन में इंग्लैंड के ज्यादा प्रदूषण वाले एक इलाके में रहने वाले लोगों और कोविड-19 के गंभीर असर के बीच जुड़ाव पाया गया. कैंब्रिज के अध्ययन में लेखक रहे मार्को त्रावाग्लिओ ने कहा, ‘‘हमारे अध्ययन के आधार पर मुझे सर्दियों में भारत में वायु प्रदूषण के उच्च स्तर और कोविड-19 के बीच जुड़ाव का अंदाजा है जैसा कि इंग्लैंड में किए गए अध्ययन में हमने पाया.''
उन्होंने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘अगर प्रदूषण का स्तर कई महीनों तक उच्च स्तर पर बना रहा तो नवंबर और उसके बाद भारत के विभिन्न भागों में उसके और कोविड-19 के मामलों में जुड़ाव की आशंका है.''
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पराली जलाने, त्योहार के दौरान आतिशबाजी और हवा की रफ्तार आदि कई कारणों से नवंबर से फरवरी के दौरान उत्तर भारत में हवा की गुणवत्ता खराब होने की आशंका है. त्रावाग्लिओ ने कहा, ‘‘इन तथ्यों के मद्देनजर दिल्ली में पीएम 2.5 के उच्च स्तर से कोविड-19 के ज्यादा मामले हो सकते है.''
तमिलनाडु में क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज में फेफड़ा रोग विभाग के प्रमुख डॉ जे क्रिस्टोफर ने कहा कि कोविड-19 के मामले में मरीजों की स्थिति गंभीर होने पर अस्पतालों में ज्यादा आईसीयू की जरूरत होगी और इससे स्वास्थ्य तंत्र पर बोझ बढ़ेगा.
उन्होंने कहा, ‘‘फेफड़ा शरीर का सबसे महत्वपूर्ण अंग है और प्रदूषण का सबसे पहला असर इसी पर देखने को मिलता है. प्रदूषण से फेफड़े पर असर पड़ता है और संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है.''
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान-बंबई में एसोसिएट प्रोफेसर रजनीश भारद्वाज ने कहा कि लगातार ऐसे वैज्ञानिक प्रमाण आ रहे हैं कि संक्रमित व्यक्ति के खांसने या छींकने से कण दूर तक जा सकते हैं. प्रदूषण की वजह से ये अतिसूक्ष्मण कण आगे जा सकते हैं और संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है.
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