विज्ञापन
This Article is From Mar 09, 2016

अगर पीएम की फोटो विज्ञापनों में हो सकती है तो सीएम की क्यों नहीं : सुप्रीम कोर्ट में AG

अगर पीएम की फोटो विज्ञापनों में हो सकती है तो सीएम की क्यों नहीं : सुप्रीम कोर्ट में AG
प्रतीकात्मक फोटो
नई दिल्ली: सरकारी विज्ञापन के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ यूपी सरकार, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और दूसरे राज्यों की पुनर्विचार याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है।

केंद्र सरकार की ओर से दलील देते हुए अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा कि अगर प्रधानमंत्री की फोटो विज्ञापनों में हो सकती है तो चीफ मिनिस्टर और बाकी मंत्रियो की क्यों नहीं? मंत्री बिना चेहरे के हो गए हैं। पांच साल एक ही चेहरा देखने को मिलेगा, जो प्रधानमंत्री का है। दूसरे चेहरे भी दिखाना लोकतंत्र का हिस्सा है। पीएम और CM संघीय ढांचे का हिस्सा हैं, इसलिए यह भेदभाव नहीं हो सकता।

रोहतगी ने कहा, सरकारी विज्ञापन लोगों तक योजनाएं पहुंचाने का बड़ा जरिया हैं। आज का दौर विजुअल मीडिया का है, इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया का है। विजुअल का लोगों पर बड़ा प्रभाव है। ऐसे में रोक लगाना ठीक नहीं है। संविधान के दिए अधिकारों के तहत लोगों को सरकारी कामकाज और योजनाओं की जानकारी लेने का अधिकार है।

उन्होंने कहा कि लोगों को ये जानने का हक है कि उनका मंत्री क्या काम कर रहा है। इसी तरह सरकार को भी जानकारी लोगों को पहुंचाने का अधिकार है। कोर्ट यह तय नहीं कर सकता कि सरकारी विज्ञापनों में किसकी फोटो हो। यह काम संसद का है, संसद इसके लिए बजट देती है, वह फंड रोक भी सकती है। अगर किसी कानून का दुरुपयोग होता है तो इसका मतलब यह नहीं कि कानून खराब है।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा था कि सरकारी विज्ञापनों में सिर्फ राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री व चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया का ही फोटोग्राफ हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की उस दलील को ठुकरा दिया जिसमें केंद्र सरकार ने कहा था कि यह नीतिगत मामला है और इसमें जूडिशियरी को दखल नहीं देना चाहिए।

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com