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This Article is From Jun 20, 2016

90 साल से संघ की नेकर सिल रहे राजस्‍थान के टेलर्स के सामने है यह नई चुनौती....

90 साल से संघ की नेकर सिल रहे राजस्‍थान के टेलर्स के सामने है यह नई चुनौती....
नए पतूलन ढीले-ढाले होंगे ताकि स्‍वयंसेवक आसानी से योग और सूर्य नमस्कार कर सकें।
चित्तौड़गढ़: राजस्थान के अकोला गांव में आठ पुरुषों और 20 महिलाओं की टीम पूरी मेहनत से अपने काम में जुटी हुई है। चित्तौड़गढ़ से करीब 80 किमी दूर इस टीम को जुलाई तक 10 लाख पतलून (फुलपेंट) तैयार करके देनी हैं। बीजेपी के वैचारिक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के 91वें स्थापना दिवस, विजयदशमी (दशहरा) पर आरएसएस के स्‍वयंसेवक ये पतलून पहनेंगे।

हर साल सिलते थे करीब 50 हजार नेकर
ये महिलाएं और पुरुष अकोला गांव की उस कोर टीम का हिस्‍सा हैं, जो दो पीढ़‍ियों से साल में करीब 50 हजार नेकर सिलने का काम करती आ रही है। इन टेलरों में से एक जयप्रकाश बताते हैं, 'मेरे पिता के बाद, मैं वर्ष 2000 से यह इकाई चला रहा हूं। नेकर से लेकर टोपी तक, सब यहां तैयार किया जाता है। कामगारों को हर पीस के लिए 50 रुपये का भुगतान किया जाता है।'

संघ ने अपनी यूनिफॉर्म में बदलाव का लिया है फैसला
गौरतलब है कि संघ नेअपनी निर्णायक संस्‍था, अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की मार्च में हुई बैठक में फैसला करते हुए परंपरागत खाकी नेकर के बजाय पतलून को अपनी यूनिफॉर्म का हिस्‍सा बनाया है। यह बदलाव अक्टूबर माह या विजयदशमी से अमल में लाया जाएगा। नए पतूलन डार्क ब्राउन कलर के और ढीले-ढाले होंगे ताकि स्‍वयंसेवक बिना किसी परेशानी के योग और सूर्य नमस्कार कर सकें।

पूरे देश में एक ही रंग की होगी पतलून
पतूलन के लिए कपड़ा भीलवाड़ा की टेक्‍सटाइल मिल द्वारा प्रदान किया जा रहा है। यह चित्तौड़गढ़ के नजदीक ही है। इसे गहरे खाकी रंग में डाय किया जाएगा। संघ के जिला प्रमुख रविंद्र कुमार कहते हैं, 'भूरे रंग वाली खाकी, एक खास रंग है  खास बात यह है कि पूरे देश में इस रंग में कोई भिन्नता नहीं होगी। उन्होंने कहा कि यही कारण है कि इसे भीलवाड़ा में एक ही स्थान पर डाय किया जा रहा है। यहां से इसे देशभर की संघ की शाखाओं को भेजा जाएगा।'

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