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This Article is From Aug 01, 2020

आस्था का मंदिर : कांग्रेस ने खुलवाए मंदिर के ताले, रथयात्रा.. मुकदमा.. और फिर फैसला

भगवान राम, भगवान विष्णु के सातवें अवतार.. अयोध्या के साथ उनका ताल्लुक और उनकी जन्मभूमि.. इस छोटे से अलसाये से कस्बानुमा शहर में रहने वाले लोगों के लिए ही नहीं दुनियाभर में रहने वाले हिंदुओं के लिये गहरी आस्था का मुद्दा है.

अयोध्या में 5 अगस्त को भूमि-पूजन - फाइल फोटो

नई दिल्ली:

भगवान राम, भगवान विष्णु के सातवें अवतार.. अयोध्या के साथ उनका ताल्लुक और उनकी जन्मभूमि.. इस छोटे से अलसाये से कस्बानुमा शहर में रहने वाले लोगों के लिए ही नहीं दुनियाभर में रहने वाले हिंदुओं के लिये गहरी आस्था का मुद्दा है. राम आस्था का मुद्दा हैं जो त्रेतायुग से जुड़ी है. जो राम का युग है.. नैतिकता का युग.

कौन जानता था कि भगवान राम का जन्मस्थान नैतिकता और धर्म की जगह विवादों की जगह बन जाएगा. सन् 1528 जब देश में मुगलराज था.. तब बाबर और उसके जनरल मीर बाक़ी पर मंदिर गिराने और उसकी जगह मस्जिद बनाने का आरोप लगाया जाता है. जिसे बाबरी मस्जिद के नाम से जाना जाता रहा है.

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अस्सी के दशक में आस्था और मंदिर के आसपास की राजनीति मुख्य केंद्र में आ गई. एक फरवरी 1986 को एक स्थानीय अदालत ने हिंदुओं को पूजा की इजाजत दी. तब की राजीव गांधी सरकार पर दोहरे तुष्टिकरण का आरोप लगा. शाह बानो के मामले में फैसले पर मुस्लिम बिरादरी को तुष्ट करने और बाबरी मामले में ताले खोलकर हिंदुओं को खुश करने का. ताले खोलने का मामला दिसंबर 1949 के बाद की दूसरी बड़ी घटना थी जब भगवान राम और लक्ष्मण की मूर्तियां मस्जिद के बीच वाले गुंबद के नीचे रखी गईं.

बीजेपी को आए तब 6 साल ही हुए थे और उसके बड़े नेता अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी राम मंदिर के इर्द गिर्द एक बड़ा राजनीति अभियान तैयार कर रहे थे. राजीव गांधी ने बीजेपी के राम मंदिर आंदोलन को हल्का करने की कोशिश की थी. दोनों ही ओर से अपने को हिंदुओं का रहनुमा बताने की कोशिश थी.

इसके बाद राम मंदिर को लेकर राजनीति तीखी और तीखी होती चली गई. 1989 में तब के प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने बाबरी ढांचे के पास नींव का पत्थर रखने के लिए समारोह की अनुमति दी, बीजेपी के मंदिर आंदोलन की बढ़ती लोकप्रियता को नुकसान पहुंचाने की एक कोशिश मानी गया. इसके बाद मंदिर के समर्थन के लिए बीजेपी ने और बड़े पैमाने पर अभियान शुरु कर दिया.

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हिंदुओं का बड़ा मसीहा कौन है इसे लेकर एक जंग की शुरुआत हो गई. एक तरफ वो पार्टी जो एक असहज और जटिल मुद्दे पर लोगों को अपनी ओर खींचने की कोशिश कर रही थी और दूसरी ओर एक पार्टी जिसने इसे अपना मुख्य मुद्दा बना लिया. 1984 में महज़ 2 लोकसभा सीटें जीतने के बाद सत्ता पर पूरी पकड़ की ओर भारतीय जनता पार्टी अग्रसर थी.

1989 में पालमपुर मे बीजेपी के अधिवेशन में पार्टी ने रणनीति बदली और पहली बार औपचारिक तौर पर राम जन्मभूमि की मुक्ति और विवादित जगह पर राम मंदिर के निर्माण की बात कही. यह पार्टी का अहम राजनीतिक एजेंडा बना गया. जिस पार्टी की कमान हिंदुत्व के एक उदार चेहरे के पास थी. उसका प्रमुख एक सख्त चेहरा बना गया.

इसके बाद अयोध्या के आसपास की राजनीति का चेहरा हमेशा के लिए बदल गया. 25 सितंबर 1990 को बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने अपनी रथ यात्रा की शुरुआत की. एक टोयोटा के ट्रक को रथ की शक्ल दे दी गई. गुजरात में सोमनाथ से उत्तर प्रदेश मे अयोध्या के लिये रथ चला. मंदिर के लिए देशभर में समर्थन जुटाने के लिए. धर्म और राजनीति की राजनीति का खेल उत्तर प्रदेश में चरम पर था. मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव पिछड़ा वर्ग की सोशल इंजीनियरिंग का चेहरा बनकर उभरे. मंडल आयोग को लेकर आंदोलन का नतीजा यही था. बीजेपी अपने आपको हिंदू पार्टी की तरह पेश कर रही थी कुछ भ्रमित सी कांग्रेस सभी धड़ों को साथ लेकर दौड़ने की कोशिश कर रही थी. मुलायम और उस वक्त के बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने अपने आपको मुसलमानों के मसीहा की तरह पेश किया. उल्टे ध्रुवीकरण का फायदा उठाने की कोशिश की. इस बीच अपना रथ लेकर समस्तीपुर पहुंचे लालकृष्ण आडवाणी को MY फैक्टर पर काम कर रहे लालू ने गिरफ्तार करवा दिया.

1991 में श्रीपेरुम्बुदूर में एक चुनावी रैली के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या ने दिल्ली की राजनीति पर पूरी तरह से कब्जे के बीजेपी के पहियों को थोड़ा सुस्त कर दिया. राम मंदिर को लेकर पार्टी के अभियान ने बीजेपी को 1991 के चुनावों में 123 सीटों पर जीत दिलवाई. कांग्रेस को सहानुभूति वोटों का फायदा मिला और उसने अपने सहयोगियों की मदद से सरकार बना ली.

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लेकिन उत्तर प्रदेश में बीजेपी सत्ता में आ गई. कल्याण सिंह ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. उनके ही कार्यकाल में बाबरी मस्जिद को गिराया गया. ये वो घटना थी जिसने धार्मिक सद्भाव के तानो-बानो को बुरी तरह से तहस-नहस कर दिया. उस वक्त के प्रधानमंत्री नरसिम्हाराव पर भी मूक दर्शक बने रहने का आरोप लगा, कल्याण सिंह की तरह.

मंदिर आंदोलन और बाबरी मस्जिद गिराये जाने के बाद की राजनीति ने उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे दो अहम राज्यों में कांग्रेस के ताबूत में आखिरी कील ठोकने का काम किया. उसके कोर वोटर मुलायम और लालू की तरफ से मिल रही जाति और धर्म की नई राजनीतिक पहचान की ओर मुड़ गए. मस्जिद गिराये जाने के बाद बीजेपी को भी कुछ राजनैतिक नुकसान सहना पड़ा.

तबसे राम मंदिर बीजेपी के हर चुनाव घोषणा-पत्र का एक हिस्सा होता है, राज्यों और स्थानीय स्तर के चुनाव भी धारा 370 को हटाने और मंदिर बनाने के मुद्दों पर लड़े गये. जाति की राजनीति नई ने नई राजनैतिक पहचानों को जन्म दिया. और मंदिर को लेकर लगातार राजनीति ने बीजेपी के राजनीतिक भविष्य को बढ़िया बनाये रखा.

1996 और 1999 के दौरान बीजेपी सत्ता में आने में कामयाब रही. कुछ समय के लिए 1996 में और 1999 में पूरी तरह से. 1999 में वाजपेयी की अगुवाई में NDA की सरकार बनी.

सत्ता पर कब्जे की चाहत में राम अब राजनीतिक मुद्दे से ज्यादा वैधता का मुद्दा बन गए. टाइटल सूट, मस्जिद गिराये जाने के मामले में आपराधिक प्रक्रिया.. इतना ही नहीं, राम के अस्तित्व को लेकर भी एक अपील..और राम मंदिर..अब सब कोर्ट के फैसले का मुद्दा था.

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