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This Article is From Nov 26, 2013

आरुषि-हेमराज हत्याकांड : राजेश-नूपुर तलवार को उम्रकैद की सजा

गाजियाबाद:

अपनी बेटी और घरेलू नौकर की पांच वर्ष पहले हुई हत्या के लिए दोषी ठहराए जाने के अगले दिन मंगलवार को डॉ राजेश तलवार और डॉ नूपुर तलवार को यहां की एक विशेष अदालत ने उम्रकैद की सजा सुनाई।

फैसला सुनाए जाने के तत्काल बाद तलवार दंपति को गाजियाबाद की डासना जिला जेल ले जाया गया। तलवार के वकील ने हालांकि कहा कि वह फैसले के खिलाफ ऊपरी अदालत में अपील करेंगे।

न्यायाधीश श्याम लाल ने साक्ष्यों को मिटाने के लिए तलवार दंपति को इसके अलावा पांच वर्ष की अतिरिक्त सजा सुनाई। इसके अलावा जांच के दौरान गलत सूचना देने के लिए उन्होंने राजेश तलवार को एक साल की अतिरिक्त सजा सुनाई।

दंपति को हत्या के मामले में प्रत्येक को 10,000 रुपये, साक्ष्य मिटाने के मामले में प्रत्येक को 5,000 रुपये और पुलिस को गुमराह करने जुर्म में राजेश तलवार पर 2,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है।

अभियोजन पक्ष ने मामले को 'रेयरेस्ट ऑफ द रेयर' बताते हुए तलवार दंपति के लिए मौत की सजा की मांग की थी।

शाम 4.30 बजे सजा सुनाते हुए सीबीआई के विशेष न्यायाधीश श्याम लाल ने कहा, "वे समाज के लिए खतरा नहीं हैं। इसलिए मौत की सजा की जरूरत नहीं है।"

अपने चार पन्नों के फैसले में न्यायाधीश ने कहा कि उनके उम्रकैद की सजा भुगतने से न्याय हो जाएगा।

तलवार दंपति ने कहा कि वे निर्दोष हैं और न्याय के लिए लड़ेंगे।

इस बीच, हेमराज के परिवार के वकील नरेश यादव पर कुछ वकीलों ने हमला कर दिया। यादव उस वक्त तलवार दंपति को सुनाई गई सजा के बारे में समाचार चैनलों को जानकारी दे रहे थे।

यादव ने पुलिस के सहयोग से मौके से हटना ही उचित समझा और उन्होंने न्यायालय परिसर में जाकर शरण ली। बाहर वकीलों के दो गुटों में तीखी तकरार हुई। बाद में पुलिस ने दोनों पक्षों को अलग किया।

दोहरी हत्या का यह मामला 15 मई 2008 का है, जब नोएडा के जलवायु विहार निवासी राजेश एवं नूपुर तलवार के घर में उनकी 14 वर्षीया बेटी आरुषि और उनके नौकर हेमराज बंजारे को मृत पाया गया था।

तलवार दंपति पर हत्या (धारा 302) और सबूतों को मिटाने (धारा 201) का आरोप लगा। राजेश पर नोएडा पुलिस में नकली प्राथमिकी दर्ज कराने के लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 203 के तहत अतिरिक्त मामला दर्ज किया गया।

इस मामले की जांच पहले उत्तर प्रदेश पुलिस कर रही थी, लेकिन घटना के 15 दिन बाद 31 मई 2008 को यह मामला केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को सौंप दिया गया।

तलवार दंपति के खिलाफ 25 मई 2012 को मामला दर्ज किया गया था, और इसके बाद सुनवाई शुरू हुई थी। दोनों के खिलाफ कोई प्रत्यक्ष सबूत नहीं होने की वजह से सीबीआई की तहकीकात परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित थी।

किसी अन्य के इसमें शामिल होने के सबूत न मिलने पर आखिरकार सीबीआई ने तलवार दंपति को हत्यारा माना। सीबीआई के अनुसार, घटना की रात मकान संख्या एल-32 में सिर्फ चार लोग ही मौजूद थे, जिनमें से दो की हत्या हो गई।

आरुषि की हत्या की सूचना के बाद मौके पर पहुंची पुलिस को राजेश तलवार ने गुमराह करने का प्रयास किया था। उन्होंने कहा था कि नौकर हेमराज आरुषि की हत्या कर फरार हो गया है, पहले उसे पकड़िए। मगर हेमराज का शव अगले दिन उसी मकान की छत पर पाया गया। जांच में यह बात सामने आई कि दोनों की हत्या एक ही समय की गई और हेमराज के शव को घसीटकर छत पर पहुंचा दिया गया।

उधर, डासना जेल में बंद नूपुर तलवार की तबीयत अचानक बिगड़ गई थी। वहां उनका ब्लड प्रेशर बढ़ गया था। वह आराम करने के बाद कोर्ट पहुंची थीं।

वहीं, सीबीआई भी मानती है कि उसकी पूरी जांच में दरारें रही हैं। उन्हें जो कुछ भी मिला उसे कोर्ट के आगे रखते हुए क्लोजर रिपोर्ट दी गई।

अपनी बेटी की हत्या का दोषी ठहराने वाला फैसला सुनकर नूपुर तलवार रो पड़ीं। उनका कहना है कि उन्हें उस अपराध के लिए दोषी ठहराया गया, जो उन्होंने नहीं किया।

गौरतलब है कि गाजियाबाद की सीबीआई अदालत ने माना कि राजेश और नूपुर तलवार ने अपनी बेटी आरुषि और नौकर हेमराज का कत्ल किया है। यह मनुष्यता के इतिहास में काफी अलग है।

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