प्रतीकात्मक फोटो.
नई दिल्ली:
आधार की अनिवार्यता के मामले में सुनवाई के दौरान UIDAI ने सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ से कहा कि आधार कानून बहुत मजबूत है और यह डेटा उल्लंघन के खिलाफ उचित और पर्याप्त सुरक्षा मुहैया कराता है. आधार लोगों को गर्व, गरिमा और आत्मसम्मान देता है कि वे समाज का हिस्सा हैं.
भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) के लिए उपस्थित वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने जस्टिस चंद्रचूड़ के एक प्रश्न के जवाब में उक्त बात कही. जस्टिस चंद्रचूड ने पूछा कि आधार कानून में सुरक्षा क्या हैं और क्या डेटा उल्लंघन के लिए कोई आपराधिक कार्रवाई, या सजा दी गई है?
द्विवेदी ने कहा कि ये गलत है कि यूआईडीएआई 'मेटा डेटा' में व्यक्तिगत जानकारी एकत्रित और संग्रहीत कर रहा है. उन्होंने कहा कि आधार कानून के तहत आपराधिक केस किया जाता है और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत सजा दी जाती है. हालांकि उन्होंने यह स्पष्ट किया कि जानकारी साझा नहीं की जाती.
उन्होंने कहा कि न्यायमूर्ति श्रीकृष्ण समिति एक कानून पर काम कर रही है जो डेटा की सुरक्षा सुनिश्चित करेगी और साथ ही किसी व्यक्ति की निजता के अधिकारों को संतुलित करेगी. मेटा डेटा में यह सुनिश्चित करने के लिए लिए अद्वितीय डिवाइस कोड है कि प्रमाणीकरण एजेंसी निर्धारित मानकों के अनुरूप है. बॉयोमीट्रिक जानकारी का कोई साझाकरण संभव नहीं है क्योंकि डेटा पंजीकृत होने के बाद यह एन्क्रिप्टेड हो जाता है और स्टोर में संग्रहीत किया जाता है.
उन्होंने सहमति व्यक्त की कि तेजी से तकनीकी प्रगति डेटा की सुरक्षा में चुनौतियों का सामना कर रही है और श्रीकृष्ण समिति इसे एक मजबूत डेटा संरक्षण कानून स्थापित करने के लिए विचार कर रही है. उन्होंने कहा कि आधार समाज के गरीब और वंचित वर्गों को जीवन जीने और राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार्य पहचान देता है. आधार उन्हें गर्व, गरिमा और आत्मसम्मान देता है कि वे समाज का हिस्सा हैं. कानून का उद्देश्य लोगों को सस्ती कीमतों पर पर्याप्त भोजन सुनिश्चित कराना है ताकि लोग गरिमा के साथ रह सकें. यह समाज के हाशिए वाले वर्गों के सामाजिक और आर्थिक अधिकारों के एकीकरण को सुनिश्चित करता है.
सुनवाई के दौरान UIDAI की तरफ से कहा गया कि निजता का अधिकार सम्पूर्ण नहीं, अन्य मौलिक अधिकारों की तरह इस पर भी प्रतिबंध लागू होता है. निजता के अधिकार को भी अन्य दूसरे नागरिक अधिकारों के साथ सामंजस्य बिठाना होगा. कानून किस उद्देश्य लाया जा रहा है, उस उद्देश्य के लिए कितनी सूचना जनता से ली जा रही है इन चीजों को न्यायिक रूप से परखना होगा. तब ये तय कर सकते हैं कि आधार संविधान सम्मत है या नहीं. अगर नाम उजागर करने का ही उदाहरण लिया जाए तो जुवेनाइल और रेप के मामलों में अभियुक्त और पीड़िता का नाम नहीं बता सकते. ये केस दर केस निर्भर करता है.
UIDAI की तरफ से यूरोपियन यूनियन के देशों के नियम का भी हवाला दिया गया कि वहां मुख्य उद्देश्य है कि जनता की व्यक्तिगत जानकारी सदस्य देशों के पास होनी चाहिए. आधार कानून में UIDAI को यह जानने का हक नहीं है कि किस विशेष कारण से आधार के नंबर क ऑथेंटिफिकेशन हुआ है. IT एक्ट का हवाला देते हुए कहा गया कि अगर कोई व्यक्ति डेटा लीक करता है तो जिस व्यक्ति की जानकारी लीक हुई है, उसके लिए मुआवजे का भी प्रावधान है. अदालत आधार मामले को एक डॉक्टर की तरह ट्रीट करे, जो अपने मरीजों को ठीक करने पर ध्यान देता है कि कैसे मरीजों को ठीक करना है, कैसे बचाया जाए. अदालत को बताना चाहिए कि आधार एक्ट में और क्या-क्या सुधार करना चाहिए, न कि इसको खत्म करना चाहिए.
VIDEO : चुनाव हो सकते हैं प्रभावित
मामले की सुनवाई कल भी जारी रहेगी.
भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) के लिए उपस्थित वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने जस्टिस चंद्रचूड़ के एक प्रश्न के जवाब में उक्त बात कही. जस्टिस चंद्रचूड ने पूछा कि आधार कानून में सुरक्षा क्या हैं और क्या डेटा उल्लंघन के लिए कोई आपराधिक कार्रवाई, या सजा दी गई है?
द्विवेदी ने कहा कि ये गलत है कि यूआईडीएआई 'मेटा डेटा' में व्यक्तिगत जानकारी एकत्रित और संग्रहीत कर रहा है. उन्होंने कहा कि आधार कानून के तहत आपराधिक केस किया जाता है और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत सजा दी जाती है. हालांकि उन्होंने यह स्पष्ट किया कि जानकारी साझा नहीं की जाती.
उन्होंने कहा कि न्यायमूर्ति श्रीकृष्ण समिति एक कानून पर काम कर रही है जो डेटा की सुरक्षा सुनिश्चित करेगी और साथ ही किसी व्यक्ति की निजता के अधिकारों को संतुलित करेगी. मेटा डेटा में यह सुनिश्चित करने के लिए लिए अद्वितीय डिवाइस कोड है कि प्रमाणीकरण एजेंसी निर्धारित मानकों के अनुरूप है. बॉयोमीट्रिक जानकारी का कोई साझाकरण संभव नहीं है क्योंकि डेटा पंजीकृत होने के बाद यह एन्क्रिप्टेड हो जाता है और स्टोर में संग्रहीत किया जाता है.
उन्होंने सहमति व्यक्त की कि तेजी से तकनीकी प्रगति डेटा की सुरक्षा में चुनौतियों का सामना कर रही है और श्रीकृष्ण समिति इसे एक मजबूत डेटा संरक्षण कानून स्थापित करने के लिए विचार कर रही है. उन्होंने कहा कि आधार समाज के गरीब और वंचित वर्गों को जीवन जीने और राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार्य पहचान देता है. आधार उन्हें गर्व, गरिमा और आत्मसम्मान देता है कि वे समाज का हिस्सा हैं. कानून का उद्देश्य लोगों को सस्ती कीमतों पर पर्याप्त भोजन सुनिश्चित कराना है ताकि लोग गरिमा के साथ रह सकें. यह समाज के हाशिए वाले वर्गों के सामाजिक और आर्थिक अधिकारों के एकीकरण को सुनिश्चित करता है.
सुनवाई के दौरान UIDAI की तरफ से कहा गया कि निजता का अधिकार सम्पूर्ण नहीं, अन्य मौलिक अधिकारों की तरह इस पर भी प्रतिबंध लागू होता है. निजता के अधिकार को भी अन्य दूसरे नागरिक अधिकारों के साथ सामंजस्य बिठाना होगा. कानून किस उद्देश्य लाया जा रहा है, उस उद्देश्य के लिए कितनी सूचना जनता से ली जा रही है इन चीजों को न्यायिक रूप से परखना होगा. तब ये तय कर सकते हैं कि आधार संविधान सम्मत है या नहीं. अगर नाम उजागर करने का ही उदाहरण लिया जाए तो जुवेनाइल और रेप के मामलों में अभियुक्त और पीड़िता का नाम नहीं बता सकते. ये केस दर केस निर्भर करता है.
UIDAI की तरफ से यूरोपियन यूनियन के देशों के नियम का भी हवाला दिया गया कि वहां मुख्य उद्देश्य है कि जनता की व्यक्तिगत जानकारी सदस्य देशों के पास होनी चाहिए. आधार कानून में UIDAI को यह जानने का हक नहीं है कि किस विशेष कारण से आधार के नंबर क ऑथेंटिफिकेशन हुआ है. IT एक्ट का हवाला देते हुए कहा गया कि अगर कोई व्यक्ति डेटा लीक करता है तो जिस व्यक्ति की जानकारी लीक हुई है, उसके लिए मुआवजे का भी प्रावधान है. अदालत आधार मामले को एक डॉक्टर की तरह ट्रीट करे, जो अपने मरीजों को ठीक करने पर ध्यान देता है कि कैसे मरीजों को ठीक करना है, कैसे बचाया जाए. अदालत को बताना चाहिए कि आधार एक्ट में और क्या-क्या सुधार करना चाहिए, न कि इसको खत्म करना चाहिए.
VIDEO : चुनाव हो सकते हैं प्रभावित
मामले की सुनवाई कल भी जारी रहेगी.
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