सेना की 72 महिला अधिकारियों ने रक्षा मंत्रालय सहित सेना को नोटिस भेजा है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी सेना उन्हें परमानेंट कमीशन नही दे रही है. सेना के सूत्रों ने कहा कि इस मामले फिलहाल कुछ नहीं कहना है. सेना में कार्यरत 72 महिला अधिकारियों को उम्मीद थी कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद तो उन्हें स्थायी कमीशन मिल जाएगा. लेकिन इस आदेश के बावजूद उन्हें रक्षा मंत्रालय और सेना को नोटिस भेजना पड़ा है.
इन महिलाओं का दावा है कि सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि अगर महिलाएं मेडिकली फिट हैं, इनके खिलाफ अनुशासन और विजिलेंस का कोई मामला नहीं है और अगर इन्होंने 60 फीसदी कट ऑफ ग्रेड हासिल किया हो तो इन्हें स्थायी कमीशन दिया जाना चाहिए. लेकिन उन्हें नहीं दिया जा रहा.
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इन महिलाओं के वकील मेजर सुधांशु शेखर पांडेय ने एनडीटीवी इंडिया से कहा कि कानूनी नोटिस उन 72 महिलाओं की तरफ से भेजा गया है, जिनको 25 मार्च के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक दो महीने के अंदर परमानेंट कमीशन मिलना था और अभी तक नहीं मिला. सुप्रीम कोर्ट ने जो मापदंड तय किये हैं, उसके अंदर ही स्थाई कमीशन दिया जाए और अगर ना दिया गया तो यह सुप्रीम कोर्ट की अवमानना होगी. हम आगे की कार्रवाई करने के लिए बाध्य होंगे.
सुप्रीम कोर्ट ने पहले 17 फरवरी 2020 को और फिर 25 मार्च 2021 को कहा कि महिला अधिकारियों को उनका वाजिब हक दिया जाए. सेना में स्थायी कमीशन दिया जाए. स्थायी कमीशन- यानी रिटायरमेंट की उम्र तक नौकरी और बाद में पेंशन का हक़.
सेना में कैप्टन रहीं अमृत कौर कहती हैं कि सेना का यह रवैया पिछले दो दशकों में देखते आये हैं कि जब तक कोर्ट की तरफ से आर्डर ना दिया जाए, तब तक वह अपने आप कुछ करने को तैयार ही नहीं हैं. सेना ने अपनी तरफ से महिलाओं के लिये कुछ भी नही किया.
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भले ही सेना के सूत्र इस पर चुप हैं. लेकिन ये सवाल बार-बार उठ रहा है कि सेना सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद लैंगिक बराबरी को अहमियत क्यों नहीं दे रही. जबकि बरसों से महिलाएं सेना में हैं. वैसे भी सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद अगर सेना की महिला अफसरों को कानूनी नोटिस भेजना पड़ रहा है तो यह अपने आप में एक सवाल है. अच्छा होता इस मामले में सेना खुद पहल करती.
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