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This Article is From Jan 24, 2016

नहीं रहे 40 इंच लम्बे हाजी मन्‍ना, 70 साल की उम्र में हुआ निधन

नहीं रहे 40 इंच लम्बे हाजी मन्‍ना, 70 साल की उम्र में हुआ निधन
अब्दुल मन्नान उर्फ़ हाजी मन्ना (फाइल फोटो)
नई दिल्‍ली: 25 किलो वज़न और 40 इंच लम्बे, 17 हज कर चुके हाजी मन्ना का 21 जनवरी 2016 की सुबह मक्का शरीफ में देहांत हो गया। मक्का के जन्नतुल बाला क़ब्रिस्तान में रविवार को भारतीय समय के अनुसार शाम 4 बजे उन्हें सुपुर्द-ए-खाक किया गया।

भारत की आज़ादी से एक साल पहले 1946 में उत्तर प्रदेश के बहराइच जनपद के काजीपुरा में जन्में अब्दुल मन्नान उर्फ़ हाजी मन्ना अपने मां-बाप की सबसे छोटी औलाद थे। उनके घर में सबसे बड़ी उनकी बहन ज़ोहरा बेगम और उनके भाई इक़बाल अहमद भी अब इस दुनिया में नहीं हैं। लेकिन उनके एक और बड़े भाई एखलाक अहमद उर्फ़ छोटे जो डील-डौल में उनसे थोड़े ही बड़े हैं, वह अभी ज़िन्दा हैं। मन्ना के नाम के आगे 1978 में हाजी जुड़ गया, क्योंकि हाजी मन्ना पहली बार 1978 में अपनी ख़ाला बीबी अम्मा के साथ हज करने गए थे। तब से अब तक वह 17 बार हज कर चुके थे, लेकिन 21 जनवरी 2016 की सुबह मक्का शरीफ में उनके इन्तेकाल के बाद हज करने का सिलसिला रुक गया।
 

हाजी मन्ना के दूसरे हज का किस्सा काफी मशहूर हुआ, क्योंकि सन 1999 में मन्ना को हज पर जाने की मंजूरी नहीं मिली थी। तब मन्ना उस वक्त अटल बिहारी वाजपेयी के पास पहुंच गए, लेकिन किसी ने उन्हें अटल जी से मिलने नहीं दिया। तब वह मंत्रालय के गेट के बाहर खड़े हो गए और जैसे ही अटल जी बाहर निकले, वह उनकी गाड़ी के दरवाज़े में लटक गए। अटल जी ने गाड़ी रुकवाई और मन्ना का डील-डौल देख कर काफी प्रभवित हुए। साथ ही मन्ना को हज जाने के लिए ग्रान्ट दे दी। अपने दूसरे हज पर जाने से पहले 1995 से 1999 तक मन्ना दिल्ली हज कमेटी में हाजियों की खिदमत गुज़ारी के लिए गठित समिति के सदस्य भी रहे। लेकिन 1999 के बाद से उनके इन्तेकाल तक वह मक्का और मदीना में साल के 9 महीने रुककर ही हाजियों की खिदमत करते थे, हर साल वह हाजियों के साथ चले जाते, लेकिन वापस 9 महीने के बाद सिर्फ 3 महीने के लिए बहराइच आते थे। उनके इन्तेकाल से बहराइच ने एक सच्चा समाज सेवक खो दिया है।

हाजी मन्ना यूं तो किसी पार्टी के सदस्य नहीं थे, लेकिन समाज सेवा से उनका जुड़ाव काफी था। सन 1980 में उन्होंने एक बार देखा कि एक लाश जिसका कोई वारिस नहीं था, उसको पोस्टमार्टम के बाद नदी में फेका जा रहा है। यह घटना उन्हें काफी अजीब लगी और उन्होंने अस्पताल के अधिकारीयों से सम्पर्क किया और उनसे कह दिया कि अब किसी भी मुस्लिम की लाश जो लावारिस होगी वह हमें सौंप दी जाय और उसका कफ़न-दफन हम करेंगे। तबसे मुसलमानों की लाशें स्वास्थ्य विभाग उन्हें सौंपने लगा। लेकिन कभी किसी नए अधिकारी के आ जाने पर अगर उन्हें लाश नहीं मिलती तो वह इसकी शिकायत भी आला अधिकारियों से करते। लाशों को दफनाने के आलावा मन्ना गरीब लड़कियों की शादी में भी आर्थिक मदद किया करते थे।

समाज सेवा से जुड़े होने के कारण लोगों ने उन्हें 1989 में शहर के काजीपुरा वार्ड से मेम्बर के लिए खड़ा कर दिया जिसमें उन्होंने ऐतिहासिक जीत दर्ज की। हाजी मन्ना ने अपने प्रतिद्वन्दी को 1556 वोटों से हराया जो उस वर्ष का सबसे बड़ा आंकड़ा था।

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