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This Article is From Apr 13, 2016

300 करोड़ रुपये के सोने की चोरी : जांच के लिए दर-दर भटका खुफिया विभाग का अधिकारी, अब सुप्रीम कोर्ट में

300 करोड़ रुपये के सोने की चोरी : जांच के लिए दर-दर भटका खुफिया विभाग का अधिकारी, अब सुप्रीम कोर्ट में
नई दिल्ली: असम में दो साल पहले रहस्‍यमय हालात में गायब हुए 300 करोड़ रुपये के सोने और रकम खोजने की मांग के संबंध में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है। यह याचिका ख़ुफ़िया विभाग के एक पूर्व अधिकारी मनोज कौशल ने दायर की है। याचिका में इस खजाने का पता लगाने और इसे गायब करने में शामिल लोगों पर कार्रवाई की मांग की गई है। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार से जवाब मांगा है।

राशि उग्रवादियों को सोने की शक्ल में दी जानी थी
याचिकाकर्ता का कहना है कि वो करीब दो साल पहले असम में तैनात था। बोडो उग्रवादी अक्‍सर वहां के व्‍यापारियों से रुपयों की उगाही करते रहे हैं। इन उग्रवादियों को देने के लिए करीब ढाई साल पहले 2014 में असम टी ऑनर्स एसोसिएशन के अध्‍यक्ष मृदुल भट्टाचार्य ने 300 करोड़ रुपये जमा किए थे। यह राशि उग्रवादियों को सोने की शक्ल में दी जानी थी। उग्रवादियों की मांग के मुताबिक राशि को सोने में बदल कर 300 करोड़ के सोने के साथ कुछ एके-47 राइफल वगैरह के साथ असम के ही एक चाय के बागान में गाड़ कर छिपा दिया गया था। ताकि समय आने पर यह सोना बोड़ो उग्रवादियों को दिया जा सके।

इसकी जानकारी सिर्फ मृदुल भट्टाचार्य को थी। लेकिन मृदुल भट्टाचार्य और उनकी पत्नी रीता को साल 2012 में ही तिनसुकिया के उनके बंगले में जला कर मार दिया गया।

सूचना सेना के अधिकारियों को दी गई
याचिकाकर्ता मनोज कौशल ने बताया कि उन्‍होंने भट्टाचार्य हत्‍याकांड की जांच की तो उन्‍हें इस बात का पता चला और वो जगह भी मिल गई, जहां पर बोडो उग्रवादियों के लिए 300 करोड़ रुपये का सोना छिपाया गया था। खुफिया विभाग का अधिकारी होने के नाते उन्‍होंने यह सूचना सेना के अधिकारियों को दी।

फिर चोरी हो गया 300 करोड़ का सोना
सेना अधिकारियों ने तय किया कि वो 1 जून 2014 को उस जगह से खुदाई कर सोना निकाल लेंगे। मगर कुछ अधिकारियों की मिलीभगत के चलते यह सूचना लीक हो गई। कुछ अज्ञात लोगों ने 30 मई की रात को ही उस जगह पर खुदाई कर 300 करोड़ रुपये का सोना और हथियार चुरा लिये।

मनोज कौशल ने इस मामले में शामिल अधिकारियों की जांच व उन पर कार्रवाई के लिए कई आला अधिकारियों को शिकायत की, मगर कोई कार्रवाई नहीं हुई। लिहाजा, उन्हें अब अदालत की शरण लेनी पड़ रही है। याचिकाकर्ता ने मांग की है कि केंद्र सरकार को निर्देश दिया जाए कि इस पूरे प्रकरण की उच्‍च स्‍तरीय जांच कराई जाए।

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