दिल्ली के त्रिलोकपुरी में 1984 की सिख विरोधी हिंसा के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट द्वारा दोषी ठहराए गए 33 लोगों को जमानत दे दी है. इसके अलावा इस मामले में दोषी ठहराए गए एक व्यक्ति की मौत हो चुकी है. सुप्रीम कोर्ट बाकी दोषियों की याचिका पर बाद में सुनवाई करेगा.
दिल्ली पुलिस की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट में कहा कि पहले अदालत ने सात दोषियों को बरी कर दिया था. इस पर पुलिस ने पुनर्विचार याचिका दाखिल की है. ऐसे में इन लोगों को भी बरी नहीं किया जाना चाहिए.
पिछली सुनवाई में कोर्ट ने दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी किया था. दिल्ली हाईकोर्ट ने पांच साल की सजा सुनाई थी. हालांकि किसी पर हत्या का आरोप नहीं है. इससे पहले पांच जुलाई को 1984 सिख दंगों में सुप्रीम कोर्ट ने त्रिलोकपुरी दंगों में दोषी ठहराए गए सात लोगों को बरी किया था. दिल्ली हाईकोर्ट ने पिछले नवम्बर में इन लोगों के दोषी होने और निचली अदालत से मिली सज़ा को सही ठहराया था. सज़ायाफ्ता लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में इसे चुनौती दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट और निचली अदालत के फैसले को पलट दिया. सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि इनके खिलाफ दंगों में शामिल रहने के न तो सीधे सबूत मिले और न ही गवाहों ने इनकी पहचान की, लिहाज़ा इन्हें बरी किया जाए.
सन 1984 में पूर्वी दिल्ली के त्रिलोकपुरी इलाके में हुए दंगों के सिलसिले में दायर 88 दोषियों की सजा पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला आया था. पिछले साल नवम्बर में दिल्ली हाईकोर्ट ने निचली अदालत से मिली सभी दोषियों की सजा को बरकरार रखा था.
1984 त्रिलोकपुरी सिख दंगा मामला: सुप्रीम कोर्ट ने 15 दोषियों को बरी किया, हाईकोर्ट के फैसले को पलटा
दंगों के 22 साल बाद दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला आया था. निचली अदालत ने 1996 में इन सबको दोषी बताते हुए पांच-पांच साल कैद की सजा सुनाई थी. इस मामले में 95 शव बरामद हुए थे लेकिन किसी भी दोषी पर हत्या की धाराओं में आरोप तय नहीं हुए थे. नवम्बर 1984 के सिख विरोधी दंगों के मामले में दोषी पाए गए करीब 80 से ज्यादा लोगों की अपील पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया था. जस्टिस आरके गाबा ने इस मामले पर सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रखा था. इनके खिलाफ दो नवंबर 1984 को कर्फ्यू का उल्लंघन कर हिंसा करने का आरोप था. उस हिंसा में त्रिलोकपुरी में करीब 95 लोग मारे गए थे. सौ से ज़्यादा घरों को जला दिया गया था. ट्रायल कोर्ट के फैसले के खिलाफ इन लोगों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी.
हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट की सज़ा बरकरार रखी थी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कड़कड़डूमा स्थित ट्रायल कोर्ट और दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए इन सात लोगों को बरी कर दिया.
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