स्वतंत्रता सेनानी विनायक दामोदर सावरकर (Vinayak Damodar Savarkar) की आज 138वीं जयंती है. इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने उन्हें श्रद्धांजलि दी और सावरकर को आजादी की लड़ाई का महान सेनानी बताया. पीएम ने ट्वीट किया, "आजादी की लड़ाई के महान सेनानी और प्रखर राष्ट्रभक्त वीर सावरकर को उनकी जयंती पर कोटि-कोटि नमन."
केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा, 'महान स्वतंत्रता सेनानी, समाज सुधारक, प्रखर वक्ता एवं लेखक विनायक दामोदार सावरकर जी की जयंती पर उन्हें कोटि-कोटि नमन, औपनिवेशिक शक्तियों के खिलाफ उनकी बहादुरी, संघर्ष एवं त्याग हम सभी को सदा प्रेरित करता रहेगा.'
शिवसेना सांसद संजय राउत ने भी सावरकर को श्रद्धांजलि दी है और उन्हें महान सेनानी बताया है, जबकि महाराष्ट्र में शिवसेना की अघाड़ी सरकार में सहयोगी कांग्रेस सावरकर पर आरोप लगाती रही है कि वह अंग्रेजों के वफादार थे. सावरकर को देश में हिन्दुत्व का जनक भी माना जाता है. बीजेपी जहां सावरकर को राष्ट्रवादी मानती रही है, वहीं कांग्रेस उन्हें राष्ट्रवादी मानने से इनकार करती रही है.
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कौन थे सावरकर?
विनायक दामोदर सावरकर स्वतंत्रता सेनानी, क्रांतिकारी होने के साथ-साथ लेखक, वकील और हिंदुत्व की विचारधारा के बड़े समर्थक थे. स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान अंग्रेजों ने सावरकर को कालापानी की सजा दी थी. उनका जन्म 28 मई 1883 को महाराष्ट्र के नासिक के निकट भागुर गांव में हुआ था. उनका निधन 1966 में 26 फरवरी को हुआ था.
सावरकर ने पूरे विश्व में भारत की पहचान हिंदू के रूप में बनाने के लिए हिंदुत्व शब्द को गढ़ा था. सावरकर ने एक पुस्तक लिखी 'हिंदुत्व - हू इज़ हिंदू?' इस किताब में उन्होंने पहली बार राजनीतिक विचारधारा के तौर पर हिंदुत्व का इस्तेमाल किया था. उन्होंने जिन्ना के टू नेशन थ्योरी का समर्थन किया था या विरोध? इस पर देशभर के इतिहासकार बंटे हुए हैं.
शिव सेना उन्हें भारत रत्न नहीं देने के लिए बीजेपी की आलोचना करती रही है.इतिहासकारों का एक वर्ग उनकी इस बात के लिए ालोचना करता रहा है कि उन्होंने कथित तौर पर अंग्रेजी हुकूमत से माफी मांगी थी. साल 1975 में प्रकाशन विभाग से प्रकाशित आरसी मजूमदार की किताब ‘पीनल सेटलमेंट्स इन द अंडमान्स' के मुताबिक साल 1911 में जब सावरकर को कालापानी की सजा हुई थी, और अन्हें अंडमान-निकोबार के सेल्यूलर जेल में रखा गया था, तब सजा शुरू होने के कुछ महीनों बाद ही ब्रिटिश सरकार से रिहाई की गुहार लगाई थी.
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