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Time Frame for Transplanting Organs : डोनेट होने के बाद कितनी देर तक जीवित रहता है शरीर का कौन-सा अंग, जानें ट्रांसप्लांट की डेडलाइन

हर बॉडी ऑर्गन की अपनी समय सीमा होती है और उसी के भीतर ट्रांसप्लांट होना जरूरी है. आइये जानते  है कि किस अंग के लिए कितना समय होता है-

Time Frame for Transplanting Organs : डोनेट होने के बाद कितनी देर तक जीवित रहता है शरीर का कौन-सा अंग, जानें ट्रांसप्लांट की डेडलाइन

Time Frame for Transplanting Organs: अंगदान (Organ donation) एक ऐसा तोहफा है, जिससे मरने के बाद भी किसी दूसरे को जिंदगी दी जा सकती है. लेकिन अक्सर लोग इस अहम बात से अनजान रहते हैं कि शरीर से अंग निकालने के बाद उनका इस्तेमाल कितनी देर के अंदर किया जाना चाहिए. असल में हर बॉडी ऑर्गन (Organ) की अपनी समय सीमा होती है और उसी के भीतर ट्रांसप्लांट होना जरूरी है. आइये जानते  है कि किस अंग के लिए कितना समय होता है-

कौन से ऑर्गन के लिए कितनी है टाइम लिमिट (What is the Time Frame for Transplanting Organs?)

दिल (Heart): 4 से 6 घंटे : दिल को शरीर से निकालने के बाद सिर्फ 4 से 6 घंटे तक ही सुरक्षित रखा जा सकता है. इस वजह से डोनर और रिसिपिएंट की लोकेशन बेहद अहम हो जाती है. साथ ही बॉडी साइज भी मैच करना ज़रूरी है ताकि दिल सही तरीके से फिट हो सके.

फेफड़े (Lungs): 4 से 6 घंटे : फेफड़ों के लिए भी यही टाइम लिमिट है. इन्हें 4 से 6 घंटे के भीतर ट्रांसप्लांट करना होता है. लोकेशन और बॉडी साइज यहां भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.

लिवर (Liver): 8 से 12 घंटे : लिवर का टाइम थोड़ा ज्यादा होता है. इसे 8 से 12 घंटे तक ट्रांसप्लांट किया जा सकता है. मरीज की गंभीरता का अंदाज़ा MELD या PELD स्कोर से लगाया जाता है और उसी आधार पर लिवर अलॉट होता है. चूंकि इसका टाइम थोड़ा लंबा है, इसलिए इसे दूर तक भी ट्रांसपोर्ट किया जा सकता है.

किडनी (Kidney): 24 से 36 घंटे : किडनी सबसे लंबा समय देती है. इसे 24 से 36 घंटे तक सुरक्षित रखा जा सकता है. लोकेशन का दबाव यहां कम हो जाता है, हालांकि ब्लड टाइप, बॉडी साइज और मेडिकल अर्जेंसी जैसे फैक्टर अहम रहते हैं. किडनी के मरीज डायलिसिस जैसी ब्रिज ट्रीटमेंट से कुछ समय तक इंतजार भी कर सकते हैं.

इन्हीं सख्त समय सीमाओं को ध्यान में रखते हुए कई बार शहरों में ग्रीन कॉरिडोर बनाया जाता है. इसमें ट्रैफिक पुलिस कुछ घंटों के लिए सड़क को पूरी तरह खाली कर देती है ताकि एम्बुलेंस अंगों को डोनर अस्पताल से रिसिपिएंट तक बिना देरी के पहुंचा सके. ये कदम दिल, फेफड़े और लिवर जैसे अंगों को बचाने में बेहद मददगार साबित होता है.

निष्कर्ष

कुल मिलाकर, अंगदान में हर सेकंड कीमती होता है. सही अंग सही समय पर सही मरीज तक पहुंच जाए, यही डॉक्टरों और पूरी मेडिकल टीम की सबसे बड़ी चुनौती होती है.

(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

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