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This Article is From Nov 26, 2018

खुशखबरी! जीन थेरेपी से थैलेसीमिया का इलाज संभव...

देश में पांच करोड़ से ज्यादा लोग थैलेसीमिया से पीड़ित हैं और प्रत्येक वर्ष 10 से 12 हजार बच्चे थैलेसीमिया के साथ जन्म लेते हैं.

खुशखबरी! जीन थेरेपी से थैलेसीमिया का इलाज संभव...
Quick Reads
Summary is AI generated, newsroom reviewed.
8th May marks World Thalassemia Day, which is a genetic blood disorder
The highest number of Thalassemia cases is found to be in India
Thalassemia is a disease which is inherited from parents
नई दिल्ली:

देश में पांच करोड़ से ज्यादा लोग थैलेसीमिया से पीड़ित हैं और प्रत्येक वर्ष 10 से 12 हजार बच्चे थैलेसीमिया के साथ जन्म लेते हैं हालांकि इन भयावह आंकड़ों के बावजूद इस गंभीर बीमारी को लेकर लोगों के बीच जागरूकता की कमी है लेकिन जीन थेरेपी इस रोग के लिए कारगर साबित हो सकती है. मरीजों की जीवन गुणवत्ता में सुधार लाने और थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चों के जन्म को रोकने के लिए नेशनल थैलेसीमिया वेलफेयर सोसाइटी द्वारा डिपार्टमेन्टपीडिएट्रिक्स ने एलएचएमसी के सहयोग से राष्ट्रीय राजधानी में दो दिवसीय जागरूकता सम्मेलन किया, जिसमें 200 प्रख्यात डॉक्टरों, वैज्ञानिकों और 800 मरीजों/अभिभावकों ने हिस्सा लिया.

 

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ल्युकाइल पैकर्ड चिल्ड्रन्स हॉस्पिटल के हीमेटो-ओंकोलोजिस्ट डॉ. संदीप सोनी ने जीन थेरेपी के बारे में बताया, "जीन थेरेपी कोशिकाओं में जेनेटिक मटेरियल को कुछ इस तरह शामिल करती है कि असामान्य जीन की प्रतिपूर्ति हो सके और कोशिका में जरूरी प्रोटीन बन सके. उस कोशिका में सीधे एक जीन डाल दिया जाता है, जो काम नहीं करती है. एक कैरियर या वेक्टर इन जीन्स की डिलीवरी के लिए आनुवंशिक रूप से इंजीनियर्ड किया जाता है. वायरस में इस तरह बदलाव किए जाते हैं कि वे बीमारी का कारण न बन सकें." 

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उन्होंने कहा, "लेंटीवायरस में इस्तेमाल होने वाला वायरस कोशिका में बीटा-ग्लेबिन जीन शामिल करने में सक्षम होता है. यह वायरस कोशिका में डीएनए को इन्जेक्ट कर देता है. जीन शेष डीएनए के साथ जुड़कर कोशिका के क्रोमोजोम/ गुणसूत्र का हिस्सा बन जाता है. जब ऐसा बोन मैरो स्टेम सेल में होता है तो स्वस्थ बीटा ग्लोबिन जीन आने वाली पीढ़ियों में स्थानान्तरित होने लगता है. इस स्टेम सेल के परिणामस्वरूप शरीर में सामान्य हीमोग्लोबिन बनने लगता है."

डॉ. संदीप सोनी ने कहा, "पहली सफल जीन थेरेपी जून 2007 में फ्रांस में 18 साल के मरीज में की गई और उसे 2008 के बाद से रक्ताधान/ खून चढ़ाने की जरूरत नहीं पड़ी है. इसके बाद यूएसए और यूरोप में कई मरीजों का इलाज जीन थेरेपी से किया जा चुका है." 

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भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन ब्लड सेल की सीनियर नेशनल कन्सलटेन्ट एवं को-ऑर्डिनेटर विनीता श्रीवास्तव ने थैलेसीमिया एवं सिकल सेल रोग की रोकथाम एवं प्रबंधन के लिए किए गए प्रयासों की सराहना की. उन्होंने कहा, " रोकथाम इलाज से बेहतर है. थैलेसीमिया के लिए भी यही वाक्य लागू होता है."

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सम्मेलन के दैरान थैलेसीमिया प्रबंधन, रक्ताधान, जीन थेरेपी के आधुनिक उपकरणों, राष्ट्रीय थेलेसीमिया नीति, थैलेसीमिया के मरीजों के लिए जीवन की गुणवत्ता आदि विषयों पर चर्चा की गई. (इनपुट-आईएएनएस)

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