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वैज्ञानिकों ने डिमेंशिया का पता लगाने के लिए तैयार किया एआई टूल, जानिए क्या है इस बीमारी के लक्षण

ब्रिटेन के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने एक ऐसा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) टूल विकसित किया है जो शुरुआती में ही मनोभ्रंश रोग (डिमेंशिया) का पता लगा सकता है.

वैज्ञानिकों ने डिमेंशिया का पता लगाने के लिए तैयार किया एआई टूल, जानिए क्या है इस बीमारी के लक्षण
डिमेंशिया का पता लगा सकता है आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) टूल.

ब्रिटेन के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने एक ऐसा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) टूल विकसित किया है जो शुरुआती में ही मनोभ्रंश रोग (डिमेंशिया) का पता लगा सकता है. साथ ही यह भी जानकारी देता है कि क्या यह डिमेंशिया तक ही सीमित रहेगा या मरीज में अल्जाइमर होने की भी आशंका है. डिमेंशिया एक वैश्विक चुनौती है, जो 5.5 करोड़ से ज्यादा लोगों को प्रभावित करती है. वैश्विक स्तर पर इस पर हर साल लगभग 820 अरब डॉलर खर्च होता है. रिपोर्ट कहती है कि इसके मामलों में अगले 50 वर्षों में लगभग तीन गुना वृद्धि होने की संभावना है.

नए एआई मॉडल को विकसित करने के लिए शोधकर्ताओं ने अमेरिका में एक शोध समूह में 400 से अधिक प्रतिभागियों की जांच की. इसमें उनकी जांच के लिए एमआरआई स्कैन का इस्‍तेमाल किया गया, जिससे उनमें ग्रे मैटर के सिकुड़ने का पता चला. इसके बाद उन्होंने अन्य 600 अमेरिकी मरीजों तथा ब्रिटेन और सिंगापुर के मेमोरी क्लीनिकों से प्राप्त 900 मरीजों के आंकड़ों का मूल्यांकन किया.

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ईक्लिनिकलमेडिसिन पत्रिका में प्रकाशित शोध के अनुसार, इसमें इस्तेमाल किया गया एल्गोरिदम (किसी समस्या को हल करने या किसी कार्य को पूरा करने के लिए निर्देशों का एक समूह) चेतना में हल्की कमी के साथ स्थिर स्थिति वाले व्यक्तियों और ऐसे व्यक्तियों के बीच अंतर करने में सक्षम था जिनमें तीन साल के भीतर अल्जाइमर रोग का पता चला. इसने केवल चेतना संबंधी परीक्षणों और एमआरआई स्कैन के आधार पर 82 प्रतिशत मामलों में उन लोगों की सफलतापूर्वक पहचान की जिनमें आगे चलकर अल्जाइमर विकसित हुआ था, तथा 81 प्रतिशत मामलों में उन लोगों की पहचान की जिनमें अल्जाइमर विकसित नहीं हुआ था. इस शोध से यह उम्मीद जगी है कि यह मॉडल सटीक हो सकता है.

कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग की प्रोफेसर जो कोर्ट्जी ने कहा कि यह उपकरण इस बात का पूर्वानुमान लगाने में सहायक होगा कि किसी व्यक्ति में भविष्य में अल्जाइमर की आशंका है या नहीं. चूंकि इसका वास्तविक जीवन में भी परीक्षण किया जा चुका है, इसलिए सामान्यीकरण किया जा सकता है. कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के बेन अंडरवुड ने कहा कि इससे रोगियों और उनके परिवारों की कई मौजूदा चिंताओं को कम करने में मदद मिलेगी.

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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

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