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कितना खतरनाक है Savage होना? सोचिए दो पल के लिए

Savage Behavior In Youth : सैविज़ होना अगर सोच समझकर चुना गया रास्ता है, तो शायद उसमें मजबूती हो सकती है, लेकिन जब यह एक नकाब बन जाए, जो अंदर की तकलीफ को छुपाता है, तब ये खतरनाक हो जाता है. 

कितना खतरनाक है Savage होना? सोचिए दो पल के लिए
क्या सोशल मीडिया ने हमें इमोशनल नहीं बल्कि सिर्फ रिएक्टिव बना दिया है?

Savage Behavior In Youth: आज की दुनिया में "Savage" शब्द को कुछ अलग ही नजरिए से देखा जाने लगा है. जब कोई सीधा, कठोर या बेरुखा जवाब देता है, तो लोग उसे वाहवाही देते हैं  "क्या सैविज़ जवाब दिया!" लेकिन क्या वाकई में ऐसा बर्ताव काबिल-ए-तारीफ है? क्या ये बदलाव समाज के लिए सकारात्मक है या अंदर ही अंदर ये नई सोच हमें खोखला कर रही है? आज जरूरत है कि हम अपने और दूसरों के जज़्बात को समझें और ये पहचानें कि सच्ची ताकत हमेशा नर्मी और समझदारी में होती है, न कि कठोरता और बेरुखी में. इस विषय को विस्तार से समझते हैं क्लिनिकल साइक्लोजिस्ट डॉ कामना छिब्बर से.

यूथ में सैविज का असर | Savage Behavior In Youth

आज का यूथ खुद को दिखा रहा सैविज 

पहले के दौर में बच्चों को विनम्रता, सहानुभूति और समझदारी सिखाई जाती थी. लेकिन अब, सोशल मीडिया और इंटरनेट की दुनिया में, जहां हर किसी की ज़िंदगी एक दिखावे की रेस बन चुकी है, वहां ज़रा भी नरमी को कमज़ोरी समझा जाता है. इसलिए आजकल युवा वर्ग अपने जज़्बात को छुपाकर, खुद को “सैविज़” दिखाने में गर्व महसूस करता है.

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सैविज के नुकसान

असलियत ये है कि सैविज़ होना अब मजबूरी बनता जा रहा है. जब हर तरफ तुलना, ट्रोलिंग और दिखावे की होड़ हो, तब इंसान धीरे-धीरे खुद को बचाने के लिए कठोर बनता है. लेकिन यह कठोरता सिर्फ दूसरों के लिए नहीं, बल्कि खुद के लिए भी नुकसानदेह होती है. इससे आत्मविश्वास डगमगाने लगता है और अंदर ही अंदर एक खालीपन पनपने लगता है जिसे शायद कोई समझ नहीं पाता.

आज का युवा खुद से बहुत ज्यादा उम्मीदें रखता है. वो चाहता है कि कम उम्र में ही बड़ा नाम, ढेर सारा पैसा और एक परफेक्ट ज़िंदगी पा ले. जब ऐसा नहीं होता, तो खुद पर ही गुस्सा आता है और ये गुस्सा कई बार सैविज रवैये के रूप में बाहर आता है. लेकिन इस व्यवहार का असर सिर्फ दूसरों पर नहीं पड़ता, ये धीरे-धीरे आत्म-सम्मान, सोचने की क्षमता और सेल्फ एक्सेप्टेंस को भी कमजोर करता है.

समाज में ऐसे बदलावों की वजह से यह जरूरी हो गया है कि हम यह सोचें कि "सैविज़" होना असली ताकत है या एक मुखौटा, जिसे हम अपनी कमजोरी छुपाने के लिए पहनते हैं. एक कठोर जवाब देने से शायद हम ताली बटोर लें, लेकिन क्या हमने कभी सोचा कि सामने वाला कैसा महसूस करता है? या हम खुद क्या महसूस कर रहे हैं?

यह समझना जरूरी है कि संवेदनशील होना कोई कमज़ोरी नहीं, बल्कि इंसान की सबसे बड़ी ताकत है. जब हम दूसरों की भावनाओं को समझते हैं, तब हम रिश्ते बनाते हैं, भरोसा जगाते हैं और एक सकारात्मक माहौल तैयार करते हैं, लेकिन अगर हम सिर्फ खुद को ‘बिंदास' या ‘बोल्ड' दिखाने के चक्कर में असंवेदनशील बनते जाएं, तो हम सिर्फ खुद को ही नहीं, पूरे समाज को नुकसान पहुंचा रहे हैं.

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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

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