Lung Cancer Risk: आज से 30 साल पहले का वक्त था जब 80 फीसदी फेफड़े का कैंसर सिगरेट या तंबाकू पीने वाले लोगों को होता था. लेकिन, आज ये फर्क मिट गया अब 70 फीसदी फेफड़ों का कैंसर सिगरेट न पीने वालों को हो रहा है. ये बात मशहूर चेस्ट स्पेशलिस्ट डा अरविंद कुमार ने कही. उन्होंने कहा कि दिल्ली NCR में रहने वाले लोगों के लिए ये खतरा बहुत बड़ा है. क्योंकि, यहां धूल और धुंआ आपके फेफड़े में जाकर जमा होता है जो लंग कैंसर को बढ़ावा देता है. लंग कैंसर की सबसे तकलीफदेह बात ये है कि ये मरीजों को तब पता चलती है जब कैंसर तीसरे या चौथे चरण में होता है. हालांकि सिगरेट पीने वालों के लिए फेफड़े के कैंसर के आसार ज्यादा होते हैं. ये स्मोकर्स और नॉन स्मोकर्स का फर्क अब लगभग मिट गया है.
आंकड़ों को अगर देखें तो सन 2000 तक 90 फीसदी फेफड़े के कैंसर के मरीज स्मोकर्स यानि सिगरेट या बीड़ी पीने वाले होते थे. लेकिन, 2020 आते आते अब 70 फीसदी नॉन स्मोकर्स लोगों को फेफड़े का कैंसर होने लगा है. ये आंकड़ा बढ़ते प्रदूषण के साथ लगातार बढ़ रहा है.
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क्या फेफड़े के कैंसर से बच सकते हैं? (Can Lung Cancer Be Avoided?)
दिल्ली एनसीआर में रहने वाले लोगों का प्रदूषण से बचना लगभग नामुमकिन है. लेकिन, मशहूर चेस्ट स्पेशलिस्ट अरविंद कुमार कहते हैं कि आज से बीस साल पहले महानगर और बाहर रहने वालों के बीच फेफड़े के कैंसर के मामलों में अंतर था. दिल्ली NCR में रहने वाले लोगों के फेफड़े अलग से काले दिखते थे लेकिन अब बाहर के लोगों में भी फेफड़े की बीमारी आम है. वो कहते हैं ये मेडीकल इमरजेंसी है.
पहले ऐसे ही हालात शंघाई जैसे शहरों की भी थी लेकिन सरकारों ने वहां धूल और धुएं के स्रोत को खत्म कर दिया जिससे बहुत हद तक ये समस्या खत्म हो गई. बाकी ऐसा हो नहीं सकता है कि बाहर AQI अगर 700 है तो आपके कमरे का 70 होगा. हवा को आप रोक नहीं सकते हैं. जब तक आप सांस ले रहे हैं तब तक आप इसकी जद में है. दिन भर में आप 25000 बार सांस लेते हैं तो प्रदूषित हवा से बचना लगभग नामुमकिन सा है.
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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)
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