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गर्भ में बच्चे की मौत पर बड़ा खुलासा, ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिकों ने खोजा प्लेसेंटा एजिंग का राज, जानें क्यों होता है स्टिलबर्थ?

स्टिलबर्थ की कई वजहें हो सकती हैं. एक नई शोध ने स्टिलबर्थ के पीछे एक मुख्य जैविक कारण प्लेसेंटा (नाल) का समय से पहले बुढ़ापा (एजिंग) उजागर किया है.

गर्भ में बच्चे की मौत पर बड़ा खुलासा, ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिकों ने खोजा प्लेसेंटा एजिंग का राज, जानें क्यों होता है स्टिलबर्थ?
स्टिलबर्थ के मामलों में प्लेसेंटा अपने गर्भावस्था के हिसाब से ज्यादा पुराना दिखता है.

हर साल दुनिया भर में लाखों गर्भधारणों में से कुछ में स्टिलबर्थ यानी गर्भ में शिशु की मृत्यु हो जाती है. यह एक बेहद दर्दनाक घटना है जो परिवारों के जीवन को पूरी तरह बदल देती है. स्टिलबर्थ की कई वजहें हो सकती हैं, लेकिन लगभग तिहाई मामलों में कारण पता नहीं चल पाता. अब ऑस्ट्रेलिया के फ्लिंडर्स यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों की एक नई शोध ने स्टिलबर्थ के पीछे एक मुख्य जैविक कारण प्लेसेंटा (नाल) का समय से पहले बुढ़ापा (एजिंग) उजागर किया है, जो इस चुनौती को समझने और रोकने की दिशा में एक बड़ी उम्मीद बन सकता है.

स्टिलबर्थ की सच्चाई

गर्भावस्था में प्लेसेंटा एक ऐसा जरूरी अंग होता है जो मां और बच्चे के बीच ऑक्सीजन और पोषक तत्वों का आदान-प्रदान सुनिश्चित करता है. सामान्य रूप से प्लेसेंटा गर्भावधि के हिसाब से उम्र बढ़ाता है, लेकिन अगर यह समय से पहले ज्यादा बूढ़ा हो जाए तो उसकी क्षमता गिर सकती है. पिछले कुछ सालों में वैज्ञानिक यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि क्यों कुछ हेल्दा-लगने वाली गर्भधारणाएं भी बिना किसी साफ कारण के स्टिलबर्थ में बदल जाती हैं. इसी संदर्भ में ऑस्ट्रेलियाई शोध ने एक नई दिशा दिखाई है.

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प्लेसेंटा एजिंग और स्टिलबर्थ का संबंध

शोध में पाया गया कि स्टिलबर्थ के मामलों में प्लेसेंटा अपने गर्भावस्था के हिसाब से ज्यादा पुराना दिखता है, जिस वजह से वह सही तरीके से फ़ंक्शन नहीं कर पाता. इसके पीछे मुख्य कारण है मॉलिक्यूल्स का असामान्य संचय, जिन्हें circular RNAs कहा जाता है. ये खास प्रकार के RNA मॉलिक्यूल सामान्य रूप से उम्र-बढ़ने वाले टिशू में जमा होते हैं, लेकिन स्टिलबर्थ के मामले में ये बहुत पहले ही प्लेसेंटा में जमा होने लगते हैं और DNA को नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे सेल में एजिंग की प्रक्रिया जल्दी शुरू हो जाती है.

वृत्ताकार आरएनए उम्र बढ़ने वाले ह्यूमन टिश्यू और मृत जन्म में जमा होते हैं, जिससे डीएनए डैमेज और सेलुलर बुढ़ापा होता है, यह शोध अमेरिकन जर्नल ऑफ ऑब्स्टेट्रिक्स एंड गायनोकोलॉजी में प्रकाशित हुआ है.

क्या वैज्ञानिकों ने कुछ नई रणनीति भी पाई?

हां! जब शोधकर्ताओं ने इन सर्कुलर RNAs में से एक को प्लेसेंटल कोशिकाओं में कम किया, तो DNA डैमेज कम हुआ और एजिंग की प्रक्रिया धीमी पड़ गई, यह संकेत देता है कि ये मॉलिक्यूल सिर्फ संकेतक (markers) नहीं हैं, बल्कि एजिंग के मुख्य चालक (drivers) भी हैं.

शुरुआती पहचान का रास्ता: ब्लड टेस्ट

सबसे रोमांचक बात यह है कि शोध में पता चला कि कुछ सर्कुलर RNAs को मां के खून में 15-16 हफ्ते में ही मापा जा सकता है. इसका मतलब है कि शायद एक साधारण ब्लड टेस्ट विकसित किया जा सकता है, जिससे गर्भावस्था के शुरुआती चरण में ही जोखिम की पहचान हो सके और जरूरी मेडिकल हेल्प दी जा सके. 

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स्टिलबर्थ की रोकथाम के लिए यह खोज क्यों मायने रखती है?

स्टिलबर्थ लाखों परिवारों को प्रभावित करती है और कई मामलों में कारण जांचने के बाद भी पता नहीं चलता.
इस शोध से यह समझना संभव हुआ है कि प्लेसेंटा की जल्दी एजिंग स्टिलबर्थ के पीछे एक वास्तविक जैविक कारण हो सकती है.
शुरुआती पहचान के द्वारा जोखिम वाली गर्भावस्थाओं की मॉनिटरिंग और चिकित्सकीय निर्णय समय पर लिए जा सकते हैं.

स्टडी ने दिखाई उम्मीद की नई किरण

इस ऑस्ट्रेलियाई शोध से यह साफ होता है कि स्टिलबर्थ के कुछ मामलों में प्लेसेंटा का समय से पहले बूढ़ा होना एक कारण हो सकता है. सर्कुलर RNAs की भूमिका समझकर हम न केवल कारण जान पाए हैं, बल्कि भविष्य में पहचान और रोकथाम के नए उपकरण विकसित करने की दिशा में भी कदम बढ़ा सकते हैं.

यह स्टडी गर्भावस्था देखभाल को और बेहतर बनाकर, कई बच्चों और माताओं के जीवन को सुरक्षा प्रदान करने की संभावनाओं को बढ़ा रहा है. एक नई उम्मीद जो विज्ञान ने जगाई है.

(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

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