
स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार, देश में अल्जाइमर रोग के बढ़ते मामलों से निपटने के लिए भारत को वृद्धावस्था और मानसिक स्वास्थ्य पर एक राष्ट्रीय रणनीति की आवश्यकता है. इंडियन जर्नल ऑफ पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित संपादकीय में, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के विशेषज्ञों ने, हिमाचल प्रदेश के एम.एम. मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल के साथ मिलकर, विश्व स्वास्थ्य संगठन के वैश्विक ढांचे के अनुरूप एक व्यापक राष्ट्रीय डिमेंशिया योजना को लागू करने की आवश्यकता पर जोर दिया.
लेखकों में से एक, डॉ. के. मदन गोपाल ने प्रोफेशनल नेटवर्किंग प्लेटफॉर्म लिंक्डइन पोस्ट में कहा, "भारत को अल्जाइमर को केवल एक नैदानिक समस्या के रूप में नहीं, बल्कि वृद्धावस्था और मानसिक स्वास्थ्य पर एक व्यापक राष्ट्रीय रणनीति के हिस्से के रूप में देखना चाहिए. प्राइमरी केयर में कोग्नेटिव हेल्थ स्क्रीनिंग को शामिल करना, दीर्घकालिक केयर मॉडल में निवेश करना, केयरगिवर सपोर्ट सिस्टम (देखभाल करने वालों की शृंखला) का निर्माण करना और जोखिम कारकों पर और शोध करना, आगे बढ़ने के लिए महत्वपूर्ण कदम हैं."
उन्होंने आगे कहा, "हमारे निर्देश स्पष्ट हैं: हमें समय पर कार्रवाई करनी चाहिए, समझदारी से निवेश करना चाहिए और मानवीय योजना बनानी चाहिए. अल्जाइमर केयर को हमारी व्यापक स्वास्थ्य प्रणालियों को मजबूत करने और सामाजिक सुरक्षा एजेंडे का हिस्सा बनना चाहिए—जिससे हर वृद्ध भारतीय के लिए सम्मान, समावेश और सहायता सुनिश्चित हो सके."
वर्तमान में 53 लाख भारतीय डिमेंशिया से पीड़ित
एक अनुमान के अनुसार, वर्तमान में 53 लाख भारतीय डिमेंशिया से पीड़ित हैं, और अनुमान है कि वर्ष 2050 तक यह आंकड़ा लगभग तीन गुना बढ़ जाएगा, जिसका मुख्य कारण बुजुर्गों की बढ़ती आबादी है. विशेषज्ञों ने आयुष्मान आरोग्य मंदिरों के साथ अल्जाइमर देखभाल को एकीकृत करने की आवश्यकता पर जोर दिया.
संपादकीय में कहा गया है, "आयुष्मान आरोग्य मंदिर (विस्तारित स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्र) सामुदायिक स्तर पर डिमेंशिया की जांच, परामर्श और रेफरल को एकीकृत करने का एक अनूठा अवसर प्रदान करते हैं, जिससे देखभाल अधिक सुलभ और स्वीकार्य हो जाती है."
विशेषज्ञों ने अल्जाइमर से निपटने के लिए मेमोरी क्लीनिक और ई-संजीवनी जैसे टेलीमेडिसिन प्लेटफॉर्म की क्षमता का उल्लेख किया. इसके अलावा, उन्होंने इस बीमारी से प्रभावित लोगों के लिए निवेश बढ़ाने और एचपीवी टीकाकरण पायलटों से लेकर मिशन-मोड पोषण अभियानों और राष्ट्रव्यापी कोविड-19 टीकाकरण अभियान तक, बड़े पैमाने पर सार्वजनिक स्वास्थ्य हस्तक्षेपों की सफलताओं से सबक लेने की आवश्यकता पर भी जोर दिया.
विशेषज्ञों ने एक 'राष्ट्रीय मनोभ्रंश रणनीति' का आह्वान किया, "जिसमें जन जागरूकता अभियानों को सक्रिय सामुदायिक भागीदारी के साथ जोड़ा जाए ताकि इसे लेकर भ्रम को कम किया जा सके और लोगों को त्वरित मदद मिल सके; स्वास्थ्य प्रणाली के हर स्तर पर एक समान गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए स्क्रीनिंग, निदान और देखभाल के लिए मानकीकृत दिशानिर्देश; और मेमोरी क्लीनिकों की पहुंच का विस्तार करने, किफायती सहायक तकनीकों का विकास करने और देखभाल करने वालों को प्रशिक्षित करने के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी की सुविधा हो."
उन्होंने आगे कहा, "इस तरह का साझा दृष्टिकोण भारत में डिमेंशिया केयर के लिए एक व्यापक और समावेशी ढांचे के निर्माण में तेजी ला सकता है."
(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)
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