
आपने देखा होगा कि सीने में दर्द, सांस लेने में तकलीफ, दिल की धड़कन अनियमित होने या फिर चक्कर जैसे लक्षण नजर आने पर अक्सर डॉक्टर ECG ( Electrocardiogram) कराने की सलाह देते हैं. लक्षण हमेशा किसी समस्या के बाद ही नजर आते हैं, इसलिए जरूरी है कि दिल की सेहत ( Heart fitness) समय समय पर जांचते रहें. आपको किस उम्र से अपना ECG कराना शुरू कर देना चाहिए. ये जानने के लिए NDTV ने मेदांता के मैनेजिंग डायरेक्टर और देश के जाने माने कार्डियोथोरेसिक सर्जन डॉ. नरेश त्रेहान (renowned cardiovascular and cardiothoracic surgeon) से बात की, चलिए जानते हैं कि उन्होंने इस सवाल का क्या जवाब दिया.
किस उम्र से ECG करवाना शुरू करना चाहिए? (At what age should one start getting ECG done?)
डॉ नरेश त्रेहान ने कहा कि जिनकी फैमिली में हार्ट डिजीज की कोई हिस्ट्री रही है उनको पहला चेकअप 25 साल की उम्र में करा लेना चाहिए. अगर सब कुछ ठीक है तो अगला चेकअप फिर 5 साल बाद करा सकते हैं यानी 30 की उम्र तक. उन्होंने कहा कि वैसे सभी को अपना पहला चेकअप 30 की उम्र तक करा लेना चाहिए.
इसके बाद अगला टेस्ट 35 साल की उम्र में कराना चाहिए, फिर पुरानी रिपोर्ट को देखकर ये पता चल सकेगा कि क्या बदलाव आया है, उसके आधार पर डॉक्टर मरीज को सलाह दे सकते हैं कि उन्हें कितने साल बाद अगला टेस्ट कराना चाहिए. जैसे रिपोर्ट के आधार पर वो कह सकते हैं कि हर दो साल में आपको अपना टेस्ट कराना है. लेकिन 50 साल का हो जाने के बाद हर साल चेकअप कराना चाहिए.
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हार्ट की फिटनेस जानने के लिए कराए जाते हैं ये टेस्ट (Tests to know the fitness of the heart)
डॉ त्रेहान ने कहा, आपका ECG नॉर्मल है या नहीं उसे जानने का एक सिंपल तरीका है. ECG की लीड्स होती हैं, उसकी हर लीड की अपनी एक रिदिम होती है अगर वो एब्नॉर्मल है तो हमें पता लग जाता है. एक ट्रेंड कार्डियोलॉजिस्ट इसी तरह से कार्डिग्राम को रीड करता है.
लेकिन कार्डियोग्राम सिर्फ ये बताता है कि हार्ट को डैमेज हुआ है या नहीं. दूसरे शब्दों में कहें तो यह आपके हार्ट की हिस्ट्री बताता है लेकिन आपके हार्ट का फ्यूचर नहीं बताता. जब आप स्ट्रेस टेस्ट करवाएंगे तो 70-75% चांस है कि इससे पता चल सके कि क्या तकलीफ है पर उसमें भी काफी कुछ पता नहीं चल पाता है. इससे बेहतर जो टेस्ट है उसका नाम है स्ट्रेस इको. इस टेस्ट की एक्यूरेसी करीब 85% तक होती है. इससे सुपीरियर टेस्ट होता है थैलियम स्ट्रेस टेस्ट (Thallium Stress Test) जिसे न्यूक्लियर स्ट्रेस टेस्ट भी कहा जाता है. इसमें थैलियम नाम का एक रेडियोएक्टिव सब्सटेंस आपकी नस में इंजेक्ट किया जाता है, जिससे हार्ट मसल्स में ब्लड फ्लो का पता चल जाता है कि कहां ब्लड गया है और कहां नहीं गया.
हार्ट का सबसे स्टैंडर्ड टेस्ट एंजियोग्राफी है. अब एंजियोग्राफी दो तरीके की आ गई. स्क्रीनिंग के लिए CT एंजियोग्राफी (CT Angiography) करते हैं, जिसमें बॉडी में कोई तार वगैरह नहीं डालनी पड़ती है. डाई देके पांच मिनट में फोटो आ जाती है. सीटी एंजियोग्राफी उन्हें करानी चाहिए जिन्हें 100% क्लियर नहीं है कि उनको हार्ट डिजीज है. इस टेस्ट से पता लग जाएगा कि कोई क्रिटिकल ब्लॉकेज है कि नहीं. अगर ब्लॉकेज नहीं है तो इस टेस्ट को 5 साल बाद रिपीट कर सकते. लेकिन जिन लोगों को चेस्ट पेन रहता है या जिनका एब्नॉर्मल थैलियम स्कैन है उनको सीधा ही एंजियोग्राफी करानी चाहिए.
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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)
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