देश में कोरोना की दूसरी लहर जबरदस्त तेजी से फैल गई है. पहली लहर में जितने मामले आए थे, उससे कहीं ज्यादा मामले सामने आ रहे हैं. आम लोगों के लिए इस वायरस को समझ पाना मुश्किल हो रहा है. अभी तक हमें यह जानकारी थी कि कई देशों में वायरस का नया स्ट्रेन आया है. यही कि भारत में एक स्टेन है, एक यूके का स्टेन भी भारत में देखा गया था, जिसके कई मामले पंजाब में सामने आए थे. इसके अलावा ब्राजिल के म्यूटेंट के भी कुछ मामले दिखे, इसके अलावा साउथ अफ्रिका म्यूटेंट के मामले भी भारत में देखने को मिल रहे हैं. और अब एक नया शब्द सुनने को मिल रहा है, डबल म्यूटेशन.
भारत में कोरोना के इस डबल म्यूटेंट वायरस ने नींद उड़ा रखी है. भारत के कई राज्यों में यह वायरस पाया गया है. करीब दस राज्यों महाराष्ट्र, दिल्ली, पश्चिम बंगाल, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश में डबल म्यूटेंट वायरस मिल रहा है. बताया जा रहा है कि कोरोना के मामले अचानक बढ़ने के पीछे डबल म्यूटेंट की भूमिका है. करीब 14000 किए गए जीनोम सीक्वेंसिंग के आधार पर डबल की जानकारी मिली है. जीनोम सीक्वेंसिंग के ज़रिए पता चलता है कि कौन सा वायरस सर्कुलेट कर रहा है. भारत WHO के क्राइटेरिया के मुताबिक जीनोम सीक्वेंसिग कर रहा है. मामले बढ़ने के पीछे म्यूटेंट की भी भूमिका को अहम माना जा रहा है. पर साथ ही ये भी नहीं कहा जा सकता कि मामलों में आए इस उछाल के पीछे 100% सिर्फ म्यूटेंट ही है.
दिल्ली में इस वायरस का मिला जुला सिनेरियो देखने को मिल रहा है. दिल्ली में यू के वेरिएंट भी और डबल म्यूटेंट के मामले सामने आ रहे हैं. वहीं, पंजाब में 80% यूके वेरिएंट के मामले देखे गए हैं. वहीं महाराष्ट्र में करीब 60% मामले डबल म्यूटेंट के हैं. यूके वेरिएंट देश के तकरीबन 18-19 राज्य के 70-80 जिलों में फैला है. वहीं , साउथ अफ्रीकन और ब्रिजिलियन वेरिएंट की मौजूदगी कम जिलों तक ही सीमित.
जो भी म्यूटेंट मिलता है उसको इंटरनेशन कंसोर्टियम में देना होता है, इंडियन म्यूटेंट को इंटरनेशन कंसोर्टियम में सबमिट किया गया है. भारत के अलग-अलग तरह के म्यूटेंट हैं. प्रीलिमिनरी इन्फेक्शन, री इन्फेक्शन, सिवेरिटी में इनकी भूमिका के बारे में पता लगाने के साथ ही साथ डेथ रेट और वैक्सीन पर इसके असर के बारे में भी पता लगया जा रहा है. डबल म्यूटेंट वायरस क्या है और यह कितना खतरनाक है? ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब डॉ, विवेक नांगिया, प्रिंसिपल डायरेक्टर, श्वास रोग विशेषज्ञ, मैक्स हेल्थकेयर, ने दिए.
वायरस कैसे म्यूटेट होता है? | How Does A Virus Mutate?
डबल म्यूटेंट वायरस तब प्रोड्यूस होता है जब एक वायरस दूसरे वायरस के साथ मिलकर तीसरा वायरस प्रोड्यूस करता है, तो उसका एक जेनरिक मटेरियल बिल्कुल अलग हो जाता है. डबल म्यूटेंट वैरिएंट ज्यादा खतरनाक इसलिए माना जाता है क्योंकि इसकी तरफ हमारा इम्यून रिस्पोन्स इतना अच्छा नहीं होता है. इसलिए बीमारी का प्रकोप और ज्यादा होता है. अब हम शुरुआती स्थिति में आ गए हैं जैसे हम कोरोनावायरस के शुरूआत में थे.
डॉ, विवेक नांगिया का कहना है कि, वायरस में खासकर कोरोनावायस में ऐसी क्षमता होती है कि ये अपने जेनेरिक मटेरियल को चेंज कर देते हैं और जिसको म्यूटेशन कहते हैं. पहले वाले वैरियंट में एक व्यक्ति 2 से 3 लोगों को स्प्रेड कर सकता था लेकिन इस डबल म्यूटेंट वाले वायरस में ये नंबर बंढ़ गया है इसलिए ही पिछले कुछ हफ्तों में कोरोनावायरस के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं.
भारत में नया म्यूटेन वेरिएंट क्या है? | What Is The New Muten Variant In India?
भारत में तीन प्रकार के वैरिएंट अभी पाए जा रहे हैं ब्रिटिस वैरिएंट, साउथ अफ्रिकन वैरिएंट, ब्राजील वैरिएंट हैं. जो सबसे ज्यादा कॉमन है वह यूके स्ट्रेन या ब्रिटिस वैरिएंट है. यूके वाला स्ट्रेन ज्यादातर पंजाब, दिल्ली और महाराष्ट्र में पाया जा रहा है. जबकि साउथ अफ्रिकन वैरिएंट और ब्राजील वैरिएंट ये माना जाता है कि कुछ जिलों में ही है जो अभी तक ज्यादा फैला नहीं है.
भारत में कोरोनावायरस के अभी तीन प्रकार के वैरिएंट पाए जा रहे हैं
क्या डबल म्यूटेन वैरिएंट वैक्सीन की प्रभावशीलता पर असर डालता सकता है?
भारत में जो मैजूदा वैक्सीन हैं वे जितने भी अभी तक म्यूटेशन सामने आए हैं उनको कवर कर रही हैं, क्योंकि जो वैक्सीन बनी हुई हैं और उनको लगाने के बाद जो एंटीबॉडी बनती हैं वह टारगेट करती हैं वायरस के सरफेस प्रोटीन को और उन सरफेस प्रोटीन में अभी तक कोई बदलाव नहीं आया है. इस वजह से ये वैक्सीन्स आभी भी इफेक्टिव हैं. अगर ऐसे ही म्यूटेंशन्स चलती रही तो और एक ऐसा वायरस क्रिएट हो गया है तो हमें भी एक ऐसी तकनीक विकसित करनी पड़ेगी जिसमें टाइम टू टाइम हमें भी अपनी वैक्सीन की जेनेटिक मैकब को भी चेंट करते रहना होगा.
क्या डबल म्यूटेंट खतरनाक है? | Is Double Mutant Dangerous?
आजकल हम जिस प्रकार के मरीज देख रहे हैं उनके एक तो यह 30 से 50 साल तक के लोग हैं. दूसरा कि इस बीमारी के कॉम्प्लीकेशन जल्द हो रहे हैं. पहले वाले वैरियएंट्स में लगभग 8 से 9 दिन में लंग्स में इंफेक्शन पहुंचता था, लेकिन इस डबल वैरिएंट में 4 या 5 दिन में ही निमोनिया बनना शुरू हो जाता है. इस वाले में लक्षण काफी गंभीर हो रहे हैं, सांस की तकलीफ हो रही है और निमोनिया काफी एडवांस है. तो यह वायरस और ज्यादा खतरनाक हो गया है.
(डॉ विवेक नांगिया, प्रिंसिपल डायरेक्टर, श्वास रोग विशेषज्ञ, मैक्स हेल्थकेयर)
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