Haryana Assembly Election 2024 : लोकसभा चुनाव वाला आइडिया अब विधानसभा चुनावों में भी देखने को मिल सकता है. राहुल गांधी (Rahul Gandhi) हरियाणा विधानसभा चुनाव से एक बड़ा प्रयोग करने जा रहे हैं. हरियाणा चुनाव इसकी प्रयोगशाला बन सकती है. इसके तहत राहुल गांधी विपक्षी वोटों के बिखराव को रोकना चाहते हैं और भाजपा से सीधे मुकाबला चाहते हैं. यही वजह है कि उन्होंने कांग्रेस (Congress) की केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक में आम आदमी पार्टी (AAP) के साथ समझौते को लेकर प्रदेश के नेताओं को कहा है.
राजी नहीं थे बाकी नेता
सूत्रों का कहना है कि राहुल गांधी के आप से गठबंधन की बात कहते ही भूपेंद्र सिंह हुड्डा, हरियाणा प्रदेश अध्यक्ष उदयभान, अजय माकन सहित रणदीप सुरजेवाला तक ने दलीलें देनी शुरू कर दीं कि हम तो जीत रहे हैं. आप 4-5 सीटों से ज्यादा मांग रही है और इतनी सीटें देकर समझौता करना सही नहीं होगा. हालांकि, राहुल गांधी के जोर देने के बाद दबे मन से ही सही अब आप के साथ फाइनल बात होगी. राहुल गांधी ने समाजवादी पार्टी (SP) के साथ भी हरियाणा में गठबंधन करने का फैसला किया है और उसकी पसंद की एक सीट देकर गठबंधन फाइनल करने का सुझाव दिया है.
गुजरात एंगल
दरअसल, राहुल गांधी की नजर 2027 में होने वाले गुजरात विधानसभा चुनाव पर है. वो भाजपा को गुजरात में हराना चाहते हैं. एक बार उन्होंने संसद में भी भाजपा सांसदों की टोकाटाकी पर कहा था कि आपको गुजरात में हराकर दिखाएंगे. अब गुजरात में कांग्रेस का जो हाल है, वो तो जगजाहिर हो चुका है. 2022 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को महज 17 सीटें मिलीं. 182 विधानसभा सीटों में से भाजपा ने 156 सीटें जीत लीं. ऐसे में कांग्रेस को गुजरात में कुछ नया करने की जरूरत है. कांग्रेस को 2017 के चुनाव में 42.2 प्रतिशत वोट मिले थे. इसके कारण उसने 77 सीटों पर जीत दर्ज की थी. वहीं 2022 के चुनाव में आम आदमी पार्टी ने गुजरात में चुनाव लड़ा और 13 प्रतिशत वोट हासिल किए. इससे कांग्रेस का वोट प्रतिशत गिरकर 27.28 पहुंच गया.अगर दोनों मिलकर चुनाव लड़ते या आप चुनाव न लड़ती तो जाहिर सी बात है भाजपा को इतनी सीटें न मिलतीं. यही कारण है कि राहुल गांधी अब वोटों का बंटवारा किसी भी राज्य में नहीं चाहते.
कमलनाथ वाली गलती
राहुल गांधी ने मध्य प्रदेश के पिछले विधानसभा चुनावों से भी बड़ा सबक लिया है. मध्य प्रदेश में भी समाजवादी पार्टी के साथ कांग्रेस का गठबंधन पक्का था. सपा की डिमांड भी ज्यादा नहीं थी. वो एक सीट पर भी मान जाती, मगर कांग्रेस के मुख्यमंत्री उम्मीदवार कमलनाथ ये मानकर चल रहे थे कि वो जीत रहे हैं. इसके बाद जो हुआ, वो भी इतिहास है. भाजपा ने 230 विधानसभा सीटों में से 163 सीटें जीत लीं और कांग्रेस महज 65 सीटों पर सिमट गई. हरियाणा में भी कुछ इसी तरह कांग्रेस के स्थानीय नेता जीत को लेकर आश्वश्त हैं. वहां अभी जो हालात हैं, उसमें कांग्रेस का भाजपा के अलावा, इनेलो-बसपा गठबंधन, जजपा-चंद्रशेखर की पार्टी का गठबंधन, आम आदमी पार्टी और निर्दलीय उम्मीदवारों से भी मुकाबला होने जा रहा है. ऐसे में वोट बंटने से इंकार नहीं किया जा सकता. राहुल गांधी इसी को रोकना चाहते हैं
केंद्र सरकार पर दबाव
तीसरा और सबसे अहम कारण ये है कि लोकसभा चुनाव के बाद राहुल गांधी की छवि विपक्ष के नेता के रूप में आधिकारिक तौर पर ही नहीं, बल्कि सर्वमान्य भी हो गई है. सभी राज्यों के क्षत्रप राहुल गांधी की छतरी के नीचे काम कर रहे हैं. इसका नजारा लोकसभा और राज्यसभा में भी संसद सत्र के दौरान दिखा. आम आदमी पार्टी से लेकर उद्धव ठाकरे से अखिलेश यादव तक राहुल गांधी के साथ काम करने में किसी तरह का संकोच नहीं कर रहे. यही कारण है कि केंद्र सरकार पर एक दबाव बन रहा है. राहुल गांधी नहीं चाहते कि यह दबाव कम हो. साथ ही जनता के बीच ये संदेश जाए कि विपक्ष एकजुट नहीं है. यही कारण है कि कांग्रेस ने 7 सीटें देने तक मन आम आदमी पार्टी को बना लिया है. पहले 4-5 सीटों का ही ऑफर था. वहीं सपा को एक सीट देना तय है. देखना यह है कि राहुल गांधी का ये प्रयोग जनता को कितना पसंद आता है?
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