विज्ञापन
This Article is From Jul 02, 2015

नॉर्थ-ईस्ट इंडिया में क्यों मशहूर है सुपारी?

मणिपुर और मिज़ोरम में सुपारी को (kua) और ‘कुहवा’ (kuhva) कहते हैं.

नॉर्थ-ईस्ट इंडिया में क्यों मशहूर है सुपारी?
नई दिल्ली:

मेघालय में खासी (यह एक जाति है, जो भारत में मेघालय, असम और बांग्लादेश के कुछ क्षेत्रों में निवास करते हैं) लोग सुपारी को ‘क्वै' (kwai) कहते हैं, तो गारो में इसे ‘गुई' (gue) बोला जाता है। वहीं असम और नागालैंड में लोग इसे ‘तमूल' (tamul) के नाम से जानते हैं।

साथ ही मणिपुर और मिज़ोरम में इसे ‘क्वा' (kua) और ‘कुहवा' (kuhva) कहते हैं। अलग-अलग राज्य में अलग-अलग नाम से पुकारी जाने वाली सुपारी को लोग काफी पसंद करते हैं। कोई इसे सूखी, तो कोई इसे पान के साथ खाना पसंद करता है।

देश के अन्य हिस्सों में अगर आप किसी व्यक्ति के सामने सुपारी परोसेंगे, तो एक बार को वह अवाक रह जाएगा। लेकिन उत्तर-पूर्वी भारत में सुपारी ने एक अहम स्थान प्राप्त किया है। शिलांग में लोग खासीज को देखकर सोच में पड़ जाते हैं कि क्यों इन सभी का मुंह लाल दिखाई देता है? साथ ही यह लोग जहां भी जाते हैं, उनकी कमर पर यह कैसा थैला या स्टील का संदूक लटकता दिखाई देता है? इसके अलावा उनके घर महमानों के आने पर क्यों सुपारी परोसी जाती है? तो आइए हम आपको बताते हैं कि ऐसा क्यों हैः

 

वजन कम करने से जुड़ी ये खबरें भी पढ़ें- Weight Loss Tips in Hindi

 


 

थाली में परोसी जाती है सुपारी



असम में अगर आप किसी के घर जाते हैं, तो वहां आपके सामने चाय और पानी से पहले सुपारी परोसी जाती है। ऐसी ही आदत आपको मेघालय के कई घरों में भी देखने को मिलगी। बाकी के राज्यों में अगर ऐसा नहीं होता है, तो यह न सोचें कि उन्हें सुपारी पसंद नहीं है। कई तो अपने दिन की शुरुआत ‘क्वै' से और अंत भी इसी से करते हैं। यह समझना काफी मुश्किल हो जाता है कि एक दिन में एक व्यक्ति ने इसे कितना खाया।

मेघालय में तो सुपारी स्थानीय लोगों के घरों से शायद ही आपको कभी ख़त्म दिखाई देगी। अगर यह उनके घर में मौजूद नहीं है, तो वहां यह बिलकुल भी अच्छा संकेत नहीं माना जाता। वे भोजन की शुरुआत और समापन तक ‘क्वै' से करना पसंद करते हैं। यहां तक की जब किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, तो लोग उसके ऊपर ‘क्वै' चढ़ाते हैं।

इसके अलावा शहरी कहावत में तो यह कहा जाता है कि “अगर कोई व्यक्ति गरीब है और उसके पास घर आए दर्शकों को देने के लिए कुछ नहीं है, तो खासी लोग उन्हें समानता की निशानी के रूप में ‘क्वै' भेंट करते हैं”। वहां सभी लोग अपनी आर्थिक स्थिति की परवाह किए बिना सुपारी पेश करते हैं। इस प्रकार, सुपारी, वहां सामाजिक स्थिति को एक समान बनाए रखने वाली एक चीज की तरह है।

 

ये भी पढ़ें- 

 


 

त्योहारों की शानः सुपारी
असम में सुपारी के बिना एक शादी अधूरी मानी जाती है। किसी भी दावत की शुरुआत और अंत दोनों ही सुपारी से की जाती है। अगर कोई भी आमंत्रण पत्र बिना ‘तमूल' के भेजता है, तो ऐसा माना जाता है कि आयोजन कर्ता उनकी उपस्थिति पर उत्सुक नहीं है। महत्वपूर्ण त्योहार जैसे ‘बिहू' पर सुपारी की अपनी एक परिभाषित (डिफाइंड) जगह है। साथ ही किसानों के त्योहार, ‘बोहाग बिहू' जैसे पर्व पर सुपारी समेत चावल से बने केक और पीठा (एक तरह का केक) को आग में जलाकर नष्ट किया जाता है। मतलब आग के देवता को इसे एक तरह के चढ़ावे के रूप में पेश किया जाता है।



असम में पैदा होने वाली ‘तमूल' को बाकी के राज्यों में सप्लाई किया जाता है। वहां आए दर्शकों को एक छोटी थाली पर सुपारी के पत्तों समेत इसे परोसा जाता है। ये एक तरह से महिला और पुरुष को बधाई देने के लिए भी इस्तेमाल की जाती है। पुराने जमाने से चलती आ रही इस परंपरा को अभी भी असम में माना जाता है।

सुपारी के दीवाने हैं मणिपुर वाले



मणिपुर में ख़ासतौर से महिलाएं ‘इमा काथी' (ima kaithei) नामक बाज़ार में सुपारी और उसकी पत्तियां बेचती हैं। वहां के स्थानीय लोग इसी बाज़ार से जाकर सुपारी खरीदते हैं। हालांकि सप्लाई असम, बांग्लादेश और म्यांमार से ही होती है, क्योंकि मणिपुर में सुपारी की पैदावर काफी कम है।

कहने को तो मणिपुर में सुपारी का यह फिक्स बाज़ार है, लेकिन इसी बाज़ार में एक महिला लाइम (नींबू) बनाती हैं, जिसे ‘सूनू' (sunu) कहते हैं। यह नींबू, सुपारी के पत्ते पर खाने से पहले लगाया जाता है। मीती (Meitei) जाति में तो यह एक आवश्यक अंश है, जिसे हर धार्मिक अवसर पर इस्तेमाल किया जाता है।

चाहे जन्मदिन हो, शादी हो या फिर किसी की मृत्यु, सुपारी, असम और मेघालय की तरह दर्शकों को भेंट के रूप में तो नहीं दी जाती, लेकिन मीती जाति इसे किसी के जन्म अवसर पर मेहमानों को भेंट के रूप में जरूर प्रस्तुत करती हैं। इसके अलावा यह शादी के समय दुल्हा-दुल्हन के बीच बदली जाती है।

 

ताजा लेख-

इस त्योहारी सीजन में फिट रहने के लिए आपके काम आएंगे ये टिप्‍स‌‌‌‌‌‌...

Karwa Chauth 2018: तिथि, पूजा विधि, चांद निकलने का समय, शुभ मुहूर्त और स्पेशल फूड

Diabetes: ये 3 ड्राई फ्रूट करेंगे ब्लड शुगर लेवल को नेचुरली कंट्रोल

क्यों जीभ पर रखते ही पल भर में पिघल जाती है चॉकलेट?

Diwali 2018: दीपावली तिथि, लक्ष्मी पूजन मुहूर्त, पूजन विधि, लक्ष्मी आरती और स्पेशल फूड

Ashwagandha Side Effects: इन 8 लोगों को नहीं खाना चाहिए अश्वगंधा, अश्वगंधा के नुकसान

8 नए होटल खोलेगी इंडियन होटल्स कंपनी, पांच साल में इनती वृद्धि पर नजर

 

परंपरा के हिसाब से पीतल की थाली पर सुपारी और उसके पत्ते को केले के पत्ते के ऊपर रखा जाता है, जो दुल्हे के स्वागत के लिए इस्तेमाल में आता है। ऐसा अभिनंदन लोग दुल्हे को सम्मान देते हुए करते हैं। इसके अलावा यह दावत के समय खाने के बाद परोसी जाती है। ऐसा माना जाता है कि सुपारी पाचन क्रिया में सहायक होती है। नागालैंड में ‘तमूल' को परंपरा के लिए कम, बल्कि पाचन क्रिया के सही ढंग से काम करने में ज़्यादा इस्तेमाल किया जाता है।

मिज़ोरम में आपको हर पान वाले के पास ‘कुहवा हरिंग' (kuhva hring) देखने को मिलेगी, जो मेहमानों के अलावा दर्शकों को भेंट के रूप में दी जाती है। लेकिन, आपको बता दें कि यह सुपारी त्रिपुरा और अरुणाचल प्रदेश में इतनी मशहूर नहीं है। बहुत कम लोग इसे अपने खाने में इस्तेमाल करना पसंद करते हैं। तो अगली बार जब आप अपने पान में सुपारी रखवाएंगे, तो आपको इसमें उत्तर-पूर्वी भारत की खुशबू के साथ स्वाद भी चखने को मिलेगा।

 

और खबरों के लिए क्लिक करें.
 

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
सुपारी, बिटल नट्स
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com