
Sohri leaf: भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2 जुलाई से 9 जुलाई तक ऑफिशियल दौरे पर हैं. यह पिछले लगभग 10 सालों में प्रधानमंत्री का सबसे लंबा कूटनीतिक दौरा बताया जा रहा है. इस दौरान वे घाना, त्रिनिडाड और टोबैगो, अर्जेंटीना, ब्राज़ील और नामीबिया में विभिन्न द्विपक्षीय, बहुपक्षीय और कई कार्यक्रमों में हिस्सा लेंगे.
हाल ही में प्रधानमंत्री ने त्रिनिडाड और टोबैगो का दौरा किया, जहाँ उन्हें प्रधानमंत्री कमला परसाद-बिसेसर ने खास डिनर पर आमंत्रित किया. इस महत्वपूर्ण भोज में जहाँ एक तरफ खास मेनू था, वहीं लोगों की नज़रें जिस चीज पर सबसे ज्यादा गई वो था जिस पर खाने को परोसा गया बड़ा हरा “सोहरी” का पत्ता.
प्रधानमंत्री मोदी ने बाद में X पर शेयर किया कि सोहरी पत्ता त्रिनिडाड और टोबैगो के लोगों के लिए, खासकर भारतीय मूल के लोगों के लिए सांस्कृतिक अहमियत रखता है. यह पारंपरिक पत्ता वहाँ की संस्कृति का हिस्सा है और इसे खास मौकों पर इस्तेमाल किया जाता है. आइए जानते हैं क्यों खास है ये पत्ता.
क्या है सोहरी का पत्ता ?

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सोहरी पत्ता एक बड़ा और चौड़ा पत्ता होता है जो दिखने में केले के पत्ते जैसा लगता है. इसका वैज्ञानिक नाम Calathea Lutea है और यह कैरिबियन के नम और गर्म इलाकों में पाया जाता है. इसे स्थानीय भाषा में बिजाओ या सिगार प्लांट भी कहा जाता है. यह पौधा करीब 3 मीटर तक ऊँचा होता है और इसके पत्ते लगभग 1 मीटर लंबे होते हैं. इन पत्तों का इस्तेमाल वहां के लोग खाने को लपेटने या परोसने के लिए प्लेट की तरह करते हैं. त्रिनिडाड के गर्म और नम मौसम में ये पत्ते बहुत उपयोगी होते हैं क्योंकि इन पर चावल, करी जैसे गरम भोजन परोसने पर न तो रिसते हैं और न ही फटते हैं. साथ ही ये प्राकृतिक और पर्यावरण के अनुकूल होते हैं.
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त्रिनिडाड में खाना परोसने के लिए सोहरी पत्ता का इस्तेमाल क्यों किया जाता है?
त्रिनिडाड में खाना परोसने के लिए सोहरी पत्ता का इस्तेमाल करने के पीछे इसका गहरा सांस्कृतिक महत्व है. ‘सोहरी' शब्द भोजपुरी भाषा से आया है, जिसका मतलब होता है “देवताओं का भोजन”. पहले यह शब्द उस घी लगी रोटी के लिए इस्तेमाल होता था जो धार्मिक अनुष्ठानों में हिंदू पुजारियों को अर्पित की जाती थी. समय के साथ जिस बड़े पत्ते पर यह रोटी परोसी जाती थी, वही पत्ता भी ‘सोहरी' कहलाने लगा.
आज भी दीवाली जैसे त्योहारों में पूरा खाना जैसे चावल, सब्ज़ी, मिठाई इसी सोहरी पत्ते पर परोसा जाता है. यह परंपरा भारतीय संस्कृति और विरासत को सम्मान देने का एक तरीका है, खासकर उन लोगों के लिए जिनके पूर्वज भारत से त्रिनिडाड आए थे.
प्रधानमंत्री को भोजन परोसने के लिए सोहरी पत्ते का इस्तेमाल सिर्फ स्थानीय परंपरा या पर्यावरण संरक्षण का संदेश नहीं था बल्कि यह भारतीय मूल के लोगों को सम्मान देने का एक तरीका भी था. त्रिनिडाड और टोबैगो की लगभग 42% आबादी भारतीय मूल की है, जिनके पूर्वज 1845 से 1917 के बीच मजदूर के रूप में वहाँ पहुँचे थे. सोहरी पत्ते का उपयोग वहाँ रहने वाले भारतीयों के लिए पुरानी परंपराओं की याद दिलाता है और भारत व त्रिनिडाड के बीच सांस्कृतिक पुल का काम करता है. यह एक साधारण पत्ता नहीं, बल्कि संस्कृति, विरासत और जुड़ाव का प्रतीक है.
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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)
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