यह ख़बर 03 फ़रवरी, 2012 को प्रकाशित हुई थी

मौत के साये में जिंदगी का अनुभव कराती है 'स्टेयिंग एलाइव'

खास बातें

  • फिल्म का क्लाइमैक्स बेहतरीन है जब मौत के साये में जिंदगी मुस्कुराहट के पल चुरा लेती है। यही फिल्म की जीत है और इसके लिए रेटिंग है 3 स्टार।
मुंबई:

आज एक ऐसी हिन्दी फिल्म रिजील हुई जिसका सिर्फ नाम अंग्रेजी में है। डायरेक्टर अनंत महादेवन के मुताबिक फिल्म 'स्टेयिंग एलाइव' के लिए उन्हें हिन्दी का कोई बेजोड़ टाइटल नहीं मिला। बहरहाल, ये कहानी है फिल्म राइटर सुजीत सेन की जिंदगी के एक अनुभव पर। एक अस्पताल के आईसीयू में…अगल बगल के बिस्तरों पर दो इंसान मौत से जूझ रहे हैं। दोनों को दिल का दौरा पड़ा है। एक पत्रकार है दूसरा नामी गैंगस्टर।

मौत का डर जिंदगी जीने की इच्छा परिवार की चिंता और आईसीयू वॉर्ड का अकेलापन दोनों मरीजों को करीब ले आता है। आईसीयू के बाहर भी एक जैसे हालात मरीजों की पत्नियों को करीब ले आते हैं जो अलग-अलग बैकग्राउंड से हैं। आइडिया अच्छा है लेकिन कहानी छोटी-सी है इसमें टि्वस्ट और टर्न की कमी है। ज्यादातर सीन्स आईसीयू के अंदर या बाहर होने के कारण कहीं-कहीं ये मोनोटोनस भी लगती है लेकिन फ्लैशबैक खूबसूरती से डाले गए हैं। बैकग्राउंड म्यूजिक में मौत का डर है। नवनी परिहार, अनंत महादेवन, रंजना सासा के अच्छे परफॉरमेंस लेकिन सौरभ शुक्ला गैंगस्टर के रोल में छाप छोड़ गए। क्लाइमैक्स बेहतरीन है जब मौत के साये में जिंदगी मुस्कुराहट के पल चुरा लेती है। यही फिल्म की जीत है….और इसके लिए मेरी रेटिंग है 3 स्टार।

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