
ऋषि कपूर और आरडी बर्मन (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
प्रसिद्ध संगीतकार आरडी बर्मन उर्फ पंचम दा को इस नश्वर जगत से कूच किए दो दशक से अधिक समय बीत गया लेकिन उनकी सुरमय विरासत आज भी जिंदा है।
अत्याधुनिक और गुणवान थे आरडी बर्मन
'आर डी बर्मानिया-पंचमेमॉयर्स' किताब लिखने वाले चर्चित फिल्म पत्रकार चैतन्य पादुकोण का कहना है कि पंचम दा लोगों की नब्ज पहचानने वाले एक 'अत्याधुनिक गुणवान' व्यक्ति थे। चैतन्य ने अपनी पत्रकारिता की शुरुआत आरडी बर्मन का साक्षात्कार लेकर की। वह कहते हैं कि उनके निधन के 22 साल बाद भी लोग उनके संगीत के दीवाने हैं।
लोगों में धुनों की दीवानगी
दादासाहेब फाल्के एवं एकेडमी पुरस्कार विजेता चैतन्य ने बताया, "उनके निधन के 22 साल बाद भी उनकी याद में अब भी कई संगीत कार्यक्रम हो रहे हैं और उसमें से अधिकांश को लोगों ने हाथों हाथ लिया है। लोग उनके संगीत एवं उनकी मशहूर धुनों के दीवाने हैं।" उन्होंने कहा, "वह एक अत्याधुनिक गुणवान व्यक्ति थे, जो जान जाते थे कि क्या लोकप्रिय होगा। यह चीज उनमें नैसर्गिक थी। वह संगीत निर्माता या निर्देशक के समक्ष चार से पांच विकल्प रखते थे। अगर निर्माता को संगीत की समझ नहीं होती थी, तो स्थिति उलट हो जाती थी। उसी वक्त वह एक बेहतर धुन सुझाते थे।"
मिर्ची खाने के शौकीन
चैतन्य ने कहा कि पंचम दा बहुत ही 'विनम्र व आडंबरहीन' थे। उन्होंने बताया कि आरडी बर्मन को मिर्ची खाने का शौक था और वह अपने नर्सरी गार्डन में अलग-अलग तरह की मिर्ची उगाते थे। उन्होंने कहा, "उन्हें बहुत तीखा खाना पसंद था, जो वह हमें भी खिलाते थे।"
1994 में हुआ निधन
'यादों की बारात' और 'तुम बिन जाऊं कहां' सरीखे सदाबहार गाने देने वाले पंचम दा ने लता मंगेशकर, किशोर कुमार और आशा भोसले जैसे दिग्गज गायक-गायिकाओं के गानों में संगीत दिया। 27 जून, 1939 को कोलकाता में जन्मे आरडी बर्मन का 1994 में निधन हो गया। वह उस वक्त 54 साल के थे, लेकिन संगीत जगत को दी उनकी सौगात से संगीत प्रेमियों की सभी पीढ़ियों को आज भी प्रेरणा मिल रही है।
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
अत्याधुनिक और गुणवान थे आरडी बर्मन
'आर डी बर्मानिया-पंचमेमॉयर्स' किताब लिखने वाले चर्चित फिल्म पत्रकार चैतन्य पादुकोण का कहना है कि पंचम दा लोगों की नब्ज पहचानने वाले एक 'अत्याधुनिक गुणवान' व्यक्ति थे। चैतन्य ने अपनी पत्रकारिता की शुरुआत आरडी बर्मन का साक्षात्कार लेकर की। वह कहते हैं कि उनके निधन के 22 साल बाद भी लोग उनके संगीत के दीवाने हैं।
लोगों में धुनों की दीवानगी
दादासाहेब फाल्के एवं एकेडमी पुरस्कार विजेता चैतन्य ने बताया, "उनके निधन के 22 साल बाद भी उनकी याद में अब भी कई संगीत कार्यक्रम हो रहे हैं और उसमें से अधिकांश को लोगों ने हाथों हाथ लिया है। लोग उनके संगीत एवं उनकी मशहूर धुनों के दीवाने हैं।" उन्होंने कहा, "वह एक अत्याधुनिक गुणवान व्यक्ति थे, जो जान जाते थे कि क्या लोकप्रिय होगा। यह चीज उनमें नैसर्गिक थी। वह संगीत निर्माता या निर्देशक के समक्ष चार से पांच विकल्प रखते थे। अगर निर्माता को संगीत की समझ नहीं होती थी, तो स्थिति उलट हो जाती थी। उसी वक्त वह एक बेहतर धुन सुझाते थे।"
मिर्ची खाने के शौकीन
चैतन्य ने कहा कि पंचम दा बहुत ही 'विनम्र व आडंबरहीन' थे। उन्होंने बताया कि आरडी बर्मन को मिर्ची खाने का शौक था और वह अपने नर्सरी गार्डन में अलग-अलग तरह की मिर्ची उगाते थे। उन्होंने कहा, "उन्हें बहुत तीखा खाना पसंद था, जो वह हमें भी खिलाते थे।"
1994 में हुआ निधन
'यादों की बारात' और 'तुम बिन जाऊं कहां' सरीखे सदाबहार गाने देने वाले पंचम दा ने लता मंगेशकर, किशोर कुमार और आशा भोसले जैसे दिग्गज गायक-गायिकाओं के गानों में संगीत दिया। 27 जून, 1939 को कोलकाता में जन्मे आरडी बर्मन का 1994 में निधन हो गया। वह उस वक्त 54 साल के थे, लेकिन संगीत जगत को दी उनकी सौगात से संगीत प्रेमियों की सभी पीढ़ियों को आज भी प्रेरणा मिल रही है।
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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