
फिल्म नीरजा का एक दृश्य
मुंबई:
पिछले शुक्रवार को रिलीज़ हुई नीरजा भनोट पर आधारित फ़िल्म 'नीरजा' दर्शकों का दिल जीत रही है। इस फ़िल्म को इतनी सच्चाई से बनाया गया है और इसकी रिसर्च इतनी अच्छी की गई है कि लोग फ़ोन करके निर्माता अतुल कास्बेकर और निर्देशक राम माधवानी को इस फ़िल्म के लिए बधाइयां दे रहे हैं। ख़ास तौर से उन लोगों ने फोन किया है जो उस समय प्लेन में मौजूद थे। 
पाकिस्तान के कराची में 1986 में अग़वा हुए हवाई जहाज़ में नीरजा लोगों की जान बचाते हुए शहीद हो गई थी। उस समय उस जहाज़ में मौजूद ज़िंदा बचे लोगों ने अहमदाबाद से फ़िल्म 'नीरजा' के निर्माता अतुल कास्बेकर और निर्देशक राम माधवानी को फोन कर इस फ़िल्म को सच्चाई से बनाने के लिए बधाई दी और कहा कि फ़िल्म 'नीरजा' को देखते समय ऐसा लग रहा था कि मैं फिर से उस जहाज़ में मैं बैठा हूं क्योंकि मैं उस समय जहाज़ में बैठा था और उस खौफनाक घड़ी को देखा था। फ़िल्म 'नीरजा' को देखने के बाद सारी यादें ताज़ा हो गईं क्योंकि फ़िल्म में वही सब है जो उस दिन घटा था और जहाज़ में जो कुछ हुआ था।'
फ़िल्म के निर्देशक राम माधवानी ने कहा, 'हमने कड़ी रिसर्च की थी और ईमानदारी से फ़िल्म बनाई जिसका फल मिल रहा है।'
वहीं निर्माता अतुल कास्बेकर ने कहा, 'हमें ख़ुशी है कि दर्शक इतनी शाबाशी दे रहे हैं फ़िल्म को। जिस नीरजा और उसकी क़ुर्बानी की दुनिया भूल चुकी थी, इस फ़िल्म के ज़रिये फिर से नीरजा ज़िंदा हो गई।'

पाकिस्तान के कराची में 1986 में अग़वा हुए हवाई जहाज़ में नीरजा लोगों की जान बचाते हुए शहीद हो गई थी। उस समय उस जहाज़ में मौजूद ज़िंदा बचे लोगों ने अहमदाबाद से फ़िल्म 'नीरजा' के निर्माता अतुल कास्बेकर और निर्देशक राम माधवानी को फोन कर इस फ़िल्म को सच्चाई से बनाने के लिए बधाई दी और कहा कि फ़िल्म 'नीरजा' को देखते समय ऐसा लग रहा था कि मैं फिर से उस जहाज़ में मैं बैठा हूं क्योंकि मैं उस समय जहाज़ में बैठा था और उस खौफनाक घड़ी को देखा था। फ़िल्म 'नीरजा' को देखने के बाद सारी यादें ताज़ा हो गईं क्योंकि फ़िल्म में वही सब है जो उस दिन घटा था और जहाज़ में जो कुछ हुआ था।'
फ़िल्म के निर्देशक राम माधवानी ने कहा, 'हमने कड़ी रिसर्च की थी और ईमानदारी से फ़िल्म बनाई जिसका फल मिल रहा है।'
वहीं निर्माता अतुल कास्बेकर ने कहा, 'हमें ख़ुशी है कि दर्शक इतनी शाबाशी दे रहे हैं फ़िल्म को। जिस नीरजा और उसकी क़ुर्बानी की दुनिया भूल चुकी थी, इस फ़िल्म के ज़रिये फिर से नीरजा ज़िंदा हो गई।'
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