मुंबई:
फिल्म 'शुद्ध देसी रोमांस' को डायरेक्ट किया है मनीष शर्मा ने और मुख्य भूमिकाओं में हैं - सुशांत सिंह राजपूत, परिणीति चोपड़ा, वानी कपूर और ऋषि कपूर।
यह कहानी है रघुराम यानी सुशांत की, जो इश्क की पेचीदगियों में उलझ कर रह जाता है और ऐसा ही होता है गायत्री यानी परिणीति चोपड़ा और तारा यानी वानी के साथ। यह कहानी आज के युवा वर्ग पर आधारित है, जो इश्क और मुहब्बत में तो यकीन करता है, पर शादी में नहीं। फिल्म का प्लॉट अच्छा है और उसे कॉमेडी का तड़का लगाकर बुना गया है।
जयदीप ने इश्क के फलसफे को बहुत अच्छी तरह से पकड़ा है। पर यह कुछ दर्शकों के सिर के ऊपर से गुजर सकता है, क्योंकि इश्क के जज्बात सबके अंदर है, पर आज की तेज रफ्तार जिंदगी में रिश्तों का बारीकी से आकलन करने का वक्त शायद कम ही लोगों के पास है। फिल्म में अच्छे डॉयलाग्स आपको मुस्कुराने पर मजबूर तो करते ही हैं, साथ ही नई और पुरानी पीढ़ी का द्वंद्व भी दर्शाते हैं।
मनु आनंद की खूबसूरत सिनेमाटोग्राफी राजस्थान का रंग बखूबी पकड़ती है। ऋषि कपूर की बेहतरीन अदायगी... सुशांत और परिणीति का भी अच्छा और संतुलित अभिनय। वानी का किरदार शायद ढंग से नहीं गढ़ा गया और उन्हें अभी थोड़ा और मंझने की जरूरत है, लेकिन उनका काम ठीक-ठाक है। गाने पहले ही लोगों को पसंद आ चुके हैं।
अब बारी है कमियों की। यह कहानी मुंबई और दिल्ली जैसे शहरों की ज्यादा लगती है, जयपुर की कम। इश्क का पेचीदा फलसफा बिल्कुल सही पकड़ा है लेखक ने, पर कई बार यह ज्ञान लगने लगता है। शायद और बेहतर तरीका हो सकता था उसे फिल्माने का। किरदारों के मोनोलॉग थोड़े उबाऊ लगते हैं। भले ही फिल्म में कुछ खूबसूरत लम्हें हों, पर उनकी लंबाई पर कैंची तैयार रखनी चाहिए, नहीं तो कहानी आगे नहीं बढ़ती और वह फिल्म को ढीला कर देती है, जैसा कि इस फिल्म के साथ हुआ है।
कई जगह पर फिल्म ढीली लगती है, लेकिन फिर भी यही कहूंगा कि यह निर्देशक मनीष और जयदीप की अलग और अच्छी कोशिश है। यह फिल्म आज के युवा वर्ग को शीशा दिखा जाती है और वह भी बिना उनकी आंखें चुंधयाए। युवा इससे मनोरंजन भी पाएंगे और कुछ सीख भी। इस फिल्म के लिए रेटिंग है - 3 स्टार्स...
यह कहानी है रघुराम यानी सुशांत की, जो इश्क की पेचीदगियों में उलझ कर रह जाता है और ऐसा ही होता है गायत्री यानी परिणीति चोपड़ा और तारा यानी वानी के साथ। यह कहानी आज के युवा वर्ग पर आधारित है, जो इश्क और मुहब्बत में तो यकीन करता है, पर शादी में नहीं। फिल्म का प्लॉट अच्छा है और उसे कॉमेडी का तड़का लगाकर बुना गया है।
जयदीप ने इश्क के फलसफे को बहुत अच्छी तरह से पकड़ा है। पर यह कुछ दर्शकों के सिर के ऊपर से गुजर सकता है, क्योंकि इश्क के जज्बात सबके अंदर है, पर आज की तेज रफ्तार जिंदगी में रिश्तों का बारीकी से आकलन करने का वक्त शायद कम ही लोगों के पास है। फिल्म में अच्छे डॉयलाग्स आपको मुस्कुराने पर मजबूर तो करते ही हैं, साथ ही नई और पुरानी पीढ़ी का द्वंद्व भी दर्शाते हैं।
मनु आनंद की खूबसूरत सिनेमाटोग्राफी राजस्थान का रंग बखूबी पकड़ती है। ऋषि कपूर की बेहतरीन अदायगी... सुशांत और परिणीति का भी अच्छा और संतुलित अभिनय। वानी का किरदार शायद ढंग से नहीं गढ़ा गया और उन्हें अभी थोड़ा और मंझने की जरूरत है, लेकिन उनका काम ठीक-ठाक है। गाने पहले ही लोगों को पसंद आ चुके हैं।
अब बारी है कमियों की। यह कहानी मुंबई और दिल्ली जैसे शहरों की ज्यादा लगती है, जयपुर की कम। इश्क का पेचीदा फलसफा बिल्कुल सही पकड़ा है लेखक ने, पर कई बार यह ज्ञान लगने लगता है। शायद और बेहतर तरीका हो सकता था उसे फिल्माने का। किरदारों के मोनोलॉग थोड़े उबाऊ लगते हैं। भले ही फिल्म में कुछ खूबसूरत लम्हें हों, पर उनकी लंबाई पर कैंची तैयार रखनी चाहिए, नहीं तो कहानी आगे नहीं बढ़ती और वह फिल्म को ढीला कर देती है, जैसा कि इस फिल्म के साथ हुआ है।
कई जगह पर फिल्म ढीली लगती है, लेकिन फिर भी यही कहूंगा कि यह निर्देशक मनीष और जयदीप की अलग और अच्छी कोशिश है। यह फिल्म आज के युवा वर्ग को शीशा दिखा जाती है और वह भी बिना उनकी आंखें चुंधयाए। युवा इससे मनोरंजन भी पाएंगे और कुछ सीख भी। इस फिल्म के लिए रेटिंग है - 3 स्टार्स...
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