फ़िल्म 'कमाल धमाल मालामाल' सीक्वल है मालामाल वीकली की... हालांकि कहानी नई है लेकिन फ़िल्म में काम करने वाले ज़्यादातर कलाकार पुराने हैं। ओम पूरी के बेटे रितेश देशमुख की जगह ली है श्रेयस तलपड़े ने और हीरोइन मधुरिमा के अलावा नाना पाटेकर की नई एंट्री है।
'मालामाल वीकली' में लॉटरी के पैसों के लिए पूरा गांव दौड़ रहा था जबकि 'कमाल धमाल मालामाल' में सिर्फ़ श्रेयस तलपड़े लॉटरी के ज़रिये करोड़पति बनने का सपना देख रहे हैं। बिल्कुल निकम्मे हैं और ड़रपोक भी जो गांव के बच्चों से भी मार खाता रहता है। अपनी महबूबा के भाइयों से पिटना इसकी आदत है इसलिए गांव के लोग श्रेयस को 'बकरी' के नाम से बुलाते है। इसी बीच, नाना पाटेकर की एंट्री होती है जो ताक़तवर है इसलिए उसे श्रेयस अपना खोया हुआ बड़ा भाई बनाकर सबके सामने पेश करता है।
नाना पाटेकर जब भी मुंह खोलते हैं वह खाने के लिए ही खोलते हैं यानी नाना के फ़िल्म में डायलॉग नहीं हैं बस ढ़ेर सारा खाना है। डायलॉग न होते हुए भी नाना के अच्छे एक्सप्रेशन हैं। श्रेयस ने अच्छा अभिनय किया है और तमाम कलाकारों का अच्छा सपोर्ट मिला है। कुछ सीन्स अच्छे हैं जो आपको ख़ूब हंसाएंगे।
लेकिन, डायरेक्टर प्रियदर्शन का यह बेस्ट सिनेमा नहीं है। संगीत का कोई रोल नहीं। फ़र्स्ट हाफ़ में फ़िल्म ने पकड़ बनाई है लेकिन सेकंड हाफ़ थोड़ी कमज़ोर पड़ गई। फ़िल्म को एक बार देख सकते हैं लेकिन ज़्यादा उम्मीदों के साथ नहीं। फिल्म के लिए मेरी रेटिंग है 2.5 स्टार।
'मालामाल वीकली' में लॉटरी के पैसों के लिए पूरा गांव दौड़ रहा था जबकि 'कमाल धमाल मालामाल' में सिर्फ़ श्रेयस तलपड़े लॉटरी के ज़रिये करोड़पति बनने का सपना देख रहे हैं। बिल्कुल निकम्मे हैं और ड़रपोक भी जो गांव के बच्चों से भी मार खाता रहता है। अपनी महबूबा के भाइयों से पिटना इसकी आदत है इसलिए गांव के लोग श्रेयस को 'बकरी' के नाम से बुलाते है। इसी बीच, नाना पाटेकर की एंट्री होती है जो ताक़तवर है इसलिए उसे श्रेयस अपना खोया हुआ बड़ा भाई बनाकर सबके सामने पेश करता है।
नाना पाटेकर जब भी मुंह खोलते हैं वह खाने के लिए ही खोलते हैं यानी नाना के फ़िल्म में डायलॉग नहीं हैं बस ढ़ेर सारा खाना है। डायलॉग न होते हुए भी नाना के अच्छे एक्सप्रेशन हैं। श्रेयस ने अच्छा अभिनय किया है और तमाम कलाकारों का अच्छा सपोर्ट मिला है। कुछ सीन्स अच्छे हैं जो आपको ख़ूब हंसाएंगे।
लेकिन, डायरेक्टर प्रियदर्शन का यह बेस्ट सिनेमा नहीं है। संगीत का कोई रोल नहीं। फ़र्स्ट हाफ़ में फ़िल्म ने पकड़ बनाई है लेकिन सेकंड हाफ़ थोड़ी कमज़ोर पड़ गई। फ़िल्म को एक बार देख सकते हैं लेकिन ज़्यादा उम्मीदों के साथ नहीं। फिल्म के लिए मेरी रेटिंग है 2.5 स्टार।
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं