प्रकाश झा की फाइल फोटो.
पणजी:
सामाजिक एवं राजनीतिक मुद्दों पर आधारित फिल्म बनाने के लिए चर्चित निर्देशक प्रकाश झा का कहना है कि इस देश में पूरी तरह से राजनीतिक फिल्म बनाना असंभव है, क्योंकि यहां अभिव्यक्ति की आजादी नहीं है. झा ने कहा, देश में ऐसी फिल्म बनाना जो पूरी तरह से राजनीतिक हो, जो महत्वपूर्ण और विश्लेषण परक हो और जिसमें आप वह सब दिखा सके, जो आप कहना चाहते हैं, संभव नहीं है.
उन्होंने कहा, 'आप इसकी उम्मीद नहीं कर सकते, कि इसमें बदलाव होगा. इसके पीछे ऐतिहासिक, पौराणिक और वास्तविक कारण हैं. मुझे लगता है कि भारतीय समाज हमेशा से सत्ता अथवा सरकार से ज्यादा मजबूत और मुखर रहा है और यह कोई नई चीज नहीं है.'
झा यहां पणजी में चल रहे अंतरराष्ट्रीय भारतीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई) के 47वें संस्करण के एक कार्यक्रम में बोल रहे थे. उन्होंने कहा, 'हम लोगों ने कभी भी अपने राजा, राज्य या सरकार का उत्सव नहीं मनाया. यह हमारे खून में है. एक भारतीय के तौर पर हम तार्किक हैं. सवाल करते हैं. आज आप किसी किसी समुदाय विशेष से संबंध रखने वाले व्यक्ति का नाम लेते हैं तो लोग आपकी हत्या कर देंगे.'
उन्होंने कहा, 'मैं हमेशा इसे झेलता हूं. पहले जब मेरी फिल्में रिलीज होती थीं, तो उसमें इस प्रकार का समाज, राजनीतिक पार्टियां और अज्ञात लोगों का नाम होता था. सिनेमा के रूप में साहित्य, संस्कृति की चिंता होती थी. लेकिन यहां अब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं है. '
(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
उन्होंने कहा, 'आप इसकी उम्मीद नहीं कर सकते, कि इसमें बदलाव होगा. इसके पीछे ऐतिहासिक, पौराणिक और वास्तविक कारण हैं. मुझे लगता है कि भारतीय समाज हमेशा से सत्ता अथवा सरकार से ज्यादा मजबूत और मुखर रहा है और यह कोई नई चीज नहीं है.'
झा यहां पणजी में चल रहे अंतरराष्ट्रीय भारतीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई) के 47वें संस्करण के एक कार्यक्रम में बोल रहे थे. उन्होंने कहा, 'हम लोगों ने कभी भी अपने राजा, राज्य या सरकार का उत्सव नहीं मनाया. यह हमारे खून में है. एक भारतीय के तौर पर हम तार्किक हैं. सवाल करते हैं. आज आप किसी किसी समुदाय विशेष से संबंध रखने वाले व्यक्ति का नाम लेते हैं तो लोग आपकी हत्या कर देंगे.'
उन्होंने कहा, 'मैं हमेशा इसे झेलता हूं. पहले जब मेरी फिल्में रिलीज होती थीं, तो उसमें इस प्रकार का समाज, राजनीतिक पार्टियां और अज्ञात लोगों का नाम होता था. सिनेमा के रूप में साहित्य, संस्कृति की चिंता होती थी. लेकिन यहां अब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं है. '
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