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This Article is From May 19, 2017

फिल्‍म रिव्‍यू: इरफान खान ने कर दिया कमाल, हंसा-हंसा के बहुत कुछ बता रही है 'हिंदी मीडियम'

फिल्‍म की सबसे मजबूत कड़ी हैं इरफान खान, जो हर किरदार को जीवंत कर देते हैं और ऐसा ही उन्‍होंने इस फिल्‍म में भी किया है. इरफान की कमाल की टाइमिंग आपको ठहाके लगने को मजबूर कर देगी.

फिल्‍म रिव्‍यू: इरफान खान ने कर दिया कमाल, हंसा-हंसा के बहुत कुछ बता रही है 'हिंदी मीडियम'
'हिंदी मीडियम' में इरफान खान के साथ नजर आई हैं पाक एक्‍ट्रेस सबा कमर.
नई दिल्‍ली: 'बाहुबली 2' की धमाकेदार एंट्री के पूरे दो हफ्ते बाद सिनेमाघरों में दो फिल्‍में रिलीज हु्ई हैं. इनमें से एक हैं इरफान खान और पाकिस्‍तानी एक्‍ट्रेस सबा कमर की फिल्‍म 'हिंदी मीडियम'. इस फिल्‍म में इरफान और सबा के अलावा दीपक डोबरियाल, तिलोतिमा शोम और अमृता सिंह नजर आ रहे हैं. फिल्‍म की कहानी काफी कुछ ट्रेलर देख कर ही साफ हो जाती है जहां इरफान और सबा के किरदार अपनी बेटी को सबसे अच्छे अंग्रेजी स्कूल में दाखिला दिलाने की जद्दोजहद में जुटे नजर आते हैं. इसके लिए पैरेंट्स बने इमरान और सबा अमीर से गरीब भी बनते हैं. लेकिन इस मूल विषय के साथ ही यह फिल्‍म और बहुत कुछ कहती है.  ये अमीर और गरीब के बीच की खायी की बात करती है, ये स्कूलों में चल रही धांधली पर भी रोशनी डालती है, ये फिल्‍म अंग्रेजी की गुलाम हिंदुस्तानी मानसिकता की और  इशारा करती है और साथ ही ये भी उजागर करती है की भाषा कभी भी किसी इंसान की श्रेष्ठता साबित नहीं कर सकती. साकेत चौधरी द्वारा निर्देशित इस फिल्‍म में भी कुछ खूबियां तो कुछ खामियां हैं, जिन्‍हें हम आपके सामने रख रहे हैं.
 
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'हिंदी मीडियम' की खामियों की बात करें तो फिल्‍म में कुछ ही चीजें कमजोर हैं और इनमें सबसे  पहली है इसका स्क्रीन प्ले. फिल्‍म के कुछ सीन फिल्‍म की लम्बाई बढ़ते हैं, मसलन फिल्‍म का क्‍लाइमेक्‍स, या स्कूल का मोंन्टाज है जहां बच्चे स्कूल की लिपायी पुतायी में लगे हैं. इसके अलवा फिल्‍म के कुछ सीन हैं जहां कॉमेडी तो है पर ये थोड़े ड्रैमटायज़्ड हैं और यहां आपको लगेगा कि फिल्‍म किसी दूसरी दिशा में जा रही है. स्कूल के दाखिले का मुद्दा अमीरी और गरीबी में तब्दील हो जाता है और मेरे ख्‍याल में इसे थोड़ा और सहज तरीके से स्क्रिप्ट और स्क्रीन्प्ले में गूंथना चाहिये था. कुल मिलाकर कहें तो फिल्‍म की कहानी को अंजाम तक पहुंचाने के लिए जिन कड़ियों का इस्तेमाल किया गया उन पर थोड़ा और ध्यान देने की जरूरत थी.

वहीं अगर बात इस फिल्‍म की खूबियों की करें तो इसकी सबसे बड़ी खूबी है इसका विषय जिससे शायद हर मां बाप को जूझना पड़ता है. इस गंभीर विषय को इस तरह पेश किया गया है की आप कहानी का मर्म हंसते-हंसते समझ लेते हैं. इसलिए कहानी और स्क्रिप्ट के लेखन की तारीफ बनती है और साकेत चौधरी और जीनत लखानी बाधाई के पात्र हैं.
 
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फिल्‍म की दूसरी सबसे मजबूत कड़ी हैं इरफान खान, जो हर किरदार को जीवंत कर देते हैं और ऐसा ही उन्‍होंने इस फिल्‍म में भी किया है. इरफान की कमाल की टाइमिंग आपको ठहाके लगने को मजबूर कर देगी, पर उनके साथ-साथ पाकिस्‍तानी एक्‍ट्रेस सबा कमर और दीपक डोबरियाल ने भी काबिले तारीफ काम किया है. फिल्‍म में अपने-अपने छोर इन दोनों ने मजबूती से सम्भाले हैं. इनके अलावा तिलोतिमा शोम का भी नाम लेना यहां जरूरी है, जो इससे पहले 'किस्‍सा' जैसी फिल्‍मों में इरफान के साथ काम कर चुकी हैं, जिन्‍होंने फिल्‍म में एजुकेशन काउन्सलर का किरदार काफी अच्‍छा निभाया है.
 
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जैसा मैंने शुरू में कहा की फिल्‍म के कुछ सीन थोड़े लंबे हैं लेकिन शायद ही आपको यह उतने खटकें क्‍योंकि फिल्‍म में मिलने वाला कॉमेडी का डोस आपको बोर नहीं होने देगा. फिल्‍म का म्‍यूजिक काफी अच्‍छा है और ये फिल्‍म आपको मनोरंजन के साथ साथ एक खूबसूरत संदेश भी देती है. हमारी तरफ से इस फिल्‍म को मिलते हैा 3.5 स्‍टार्स.

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