फिल्म चौरंगा का एक दृश्य।
मुंबई:
इस फिल्मी फ्राइडे रिलीज़ हुई है 'चौरंगा' जिसे एक आर्ट हाउस फिल्म कहना गलत नहीं होगा। इसे प्रोड्यूस किया है ओनिर और संजय सूरी ने जो खुद इस फिल्म में 'धवल' का किरदार निभा रहे हैं। 'चौरंगा' का निर्देशन किया है बिकास रंजन मिश्रा ने। फिल्म में मुख्य भूमिकाएं निभाई हैं संजय सूरी, तनिष्ठा चटर्जी, सोहम मैत्र, इना साहा ,रिद्धी सेन ने।
देश-विदेश के अलग-अलग समारोहों में फिल्म प्रदर्शित की गई और दर्शकों ने फिल्म की जमकर सराहना भी की। फिल्म को कई अवॉर्ड्स से सम्मानित भी किया गया है।
महिलाओं की व्यथा और पुरुष प्रधान समाज की सोच
यह कहानी बिहार के एक गांव के 14 साल के दलित वर्ग के लड़के 'संतु' के इर्द-गिर्द घूमती है जिसकी मां है 'धनिया' और भाई 'बजरंगी'। यह पूरा परिवार उस गांव के दबंग 'धवल' के रहमो करम पर पल रहा है। फिल्म में दलितों पर ज़ुल्म, निजी फायदे के लिए धर्म का इस्तेमाल, महिलाओं की व्यथा और शिक्षा के प्रति पुरुषों की सोच जैसे मुद्दों को दर्शाया गया है।
समाज को आईना दिखाने वाली कहानी
वैसे 'चौरंगा' तकनीकी तौर पर कमाल या कोई नए विषय वाली फिल्म नहीं कही जा सकती पर फिल्मांकन को देखें तो 'चौरंगा' वास्तविकता के करीब जरूर है। फिल्म का विषय अच्छा है और समाज को आईना दिखाता है। पर मेरे मुताबिक अब पुराना चलन बदलना जरूरी है। असल विषयों को एक अच्छी कहानी में बुनना जरूरी है। ऐसी कहानियां हम पहले कई बार देख सुन चुके हैं तो फिर दर्शकों को अलग तरह से यह फिल्म कैसे प्रभावित करेगी। हमेशा अच्छा विषय और वही पुरानी कहानी दिखाकर कितनी बार तालियां बटोरी जा सकती हैं। यह विषय और यह फिल्म हो सकता है विदेशों में लोगों को प्रभावित करे पर मुझे उतना नहीं छू पाई जितनी इसकी तारीफ सुनने के बाद उम्मीद थी।
सभी का दमदार अभिनय
हालांकि फिल्म में सबका अभिनय अच्छा है। तनिष्ठा चटर्जी और धृतिमन चटर्जी का अभिनय शानदार है। वहीं सोहम मैत्र भी अपने काम से प्रभावित करते हैं। कुल मिलाकर 'चौरंगा' आपको एक सफर पर ले जाएगी जहां आप फिल्म के साथ एक अच्छे सफर की तलाश में चल पड़ेंगे, एक अनोखे अंजाम की उम्मीद के साथ, पर अफसोस ऐसा होता नहीं। बाकी फैसला आपके हाथ में है। सिर्फ अभिनय और फिल्म के विषय के लिए मेरी ओर से 2 स्टार्स।
देश-विदेश के अलग-अलग समारोहों में फिल्म प्रदर्शित की गई और दर्शकों ने फिल्म की जमकर सराहना भी की। फिल्म को कई अवॉर्ड्स से सम्मानित भी किया गया है।
महिलाओं की व्यथा और पुरुष प्रधान समाज की सोच
यह कहानी बिहार के एक गांव के 14 साल के दलित वर्ग के लड़के 'संतु' के इर्द-गिर्द घूमती है जिसकी मां है 'धनिया' और भाई 'बजरंगी'। यह पूरा परिवार उस गांव के दबंग 'धवल' के रहमो करम पर पल रहा है। फिल्म में दलितों पर ज़ुल्म, निजी फायदे के लिए धर्म का इस्तेमाल, महिलाओं की व्यथा और शिक्षा के प्रति पुरुषों की सोच जैसे मुद्दों को दर्शाया गया है।
समाज को आईना दिखाने वाली कहानी
वैसे 'चौरंगा' तकनीकी तौर पर कमाल या कोई नए विषय वाली फिल्म नहीं कही जा सकती पर फिल्मांकन को देखें तो 'चौरंगा' वास्तविकता के करीब जरूर है। फिल्म का विषय अच्छा है और समाज को आईना दिखाता है। पर मेरे मुताबिक अब पुराना चलन बदलना जरूरी है। असल विषयों को एक अच्छी कहानी में बुनना जरूरी है। ऐसी कहानियां हम पहले कई बार देख सुन चुके हैं तो फिर दर्शकों को अलग तरह से यह फिल्म कैसे प्रभावित करेगी। हमेशा अच्छा विषय और वही पुरानी कहानी दिखाकर कितनी बार तालियां बटोरी जा सकती हैं। यह विषय और यह फिल्म हो सकता है विदेशों में लोगों को प्रभावित करे पर मुझे उतना नहीं छू पाई जितनी इसकी तारीफ सुनने के बाद उम्मीद थी।
सभी का दमदार अभिनय
हालांकि फिल्म में सबका अभिनय अच्छा है। तनिष्ठा चटर्जी और धृतिमन चटर्जी का अभिनय शानदार है। वहीं सोहम मैत्र भी अपने काम से प्रभावित करते हैं। कुल मिलाकर 'चौरंगा' आपको एक सफर पर ले जाएगी जहां आप फिल्म के साथ एक अच्छे सफर की तलाश में चल पड़ेंगे, एक अनोखे अंजाम की उम्मीद के साथ, पर अफसोस ऐसा होता नहीं। बाकी फैसला आपके हाथ में है। सिर्फ अभिनय और फिल्म के विषय के लिए मेरी ओर से 2 स्टार्स।
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