रिव्यू : तंज कसने के बावजूद ना हंसाती और ना ही रुला पाती है बैंगिस्तान

रिव्यू : तंज कसने के बावजूद ना हंसाती और ना ही रुला पाती है बैंगिस्तान

बैंगिस्तान में अभिनेता रितेश ने अपने किरदार के साथ न्याय करते दिखे

मुंबई:

इस हफ़्ते फिल्म 'बैंगिस्तान' भी रिलीज़ हुई है, जिसके निर्देशक करण अंशुमन हैं। रितेश सिध्वानी और फरहान अख़्तर ने इस फिल्म का निर्माण किया है। मुख्य भूमिका में रितेश देशमुख, पुलकित सम्राट, जैकलीन फर्नांडिस, कुमुद मिश्रा, आर्या बब्बर, चन्दन रॉय सान्याल और टॉम आल्टर हैं।

इस फ़िल्म में एक काल्पनिक देश है जिसका नाम है 'बैंगिस्तान' जहां दो धर्मों के लोग अपने फायदे के लिए विदेश में हो रहे सर्व धर्म-सम्मेलन में बम विस्फोट करके दुनिया को दहलाना चाहते हैं। ये काम प्रवीण चतुर्वेदी यानी पुल्कित सम्राट और हफीज़ यानी रितेश देशमुख को दिया जाता है और ये पहुंच जाते हैं पोलैंड।

आगे क्या होता है इसके लिए आपको फिल्म का टिकट खरीदना पड़ेगा। अब बात खूबियों और खामियों की। ये फिल्म मौजूदा हालात पर एक तंज है, जहां आतंकवाद से कई देश परेशान हैं और इस मुद्दे को कॉमेडी के ज़रिये फ़िल्म में ढालने की कोशिश की गई है। अफसोस की ये तंज चेहरे पर मुस्कुराहट नहीं ला पाता। फिल्म देखकर आप मन ही मन लेखक और निर्देशक के आयडिया को सराहते जरूर हैं, लेकिन फिल्म आपको न हंसा पाती है और न रुला पाती है, यानि कमज़ोर स्क्रिप्ट।

पुलकित ने काफी लाउड एक्टिंग की है, फिल्म के कुछ सीन्स घिसे-पिटे लगे, मसलन पुलकित की रामलीला... वहीं कई सीन्स का ताना बुना अच्छा बुना गया है, लेकिन ये बेअसर साबित होते हैं। वहीं फिल्म के गानों में भी तंज है पर ये ज़ुबान पर नही चढ़ते। जैकलीन का फिल्म में कुछ काम नहीं था, न ही उनका किरदार असरदार है और न ही उनका अभिनय।

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अब बात खूबियों की जिसमें सबसे पहले नंबर आता है फिल्म का विषय, जो कि कमाल का है। जिस तरह से कहानी को आगे बढ़ाया गया है, वह भी अच्छा है, फिल्म की एक लाइन है - 'जब मैं तू बना और तू मैं, तब हम एक दूसरे को समझ पाए' जो संक्षिप्त में बहुत बड़ी बात कह जाती है। रितेश अपने किरदार के साथ न्याय करते हैं, फिल्म का स्क्रीनप्ले कसा हुआ है। फिल्म के बारे में यह मेरा नज़रिया था, आपका कुछ और हो सकता है, इसलिए जाइए और फिल्म देखिए। मेरी तरफ से इस फिल्म को 2.5 स्टार्स।