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बेहतरीन विषय और डायलॉग्स ने बनाया फिल्म को मजेदार
स्वरा भास्कर, संजय मिश्रा जैसे कलाकारों ने मनवाया अपनी एक्टिंग का लोहा
हमारी तरफ से इस फिल्म को मिलते हैं 3.5 स्टार्स
खामियों की बता करें तो मुझे लगता है की फिल्म के किरदारों को सेट करने में काफी वक्त ले लिया गया है. जैसे फिल्म की शुरुआत में काफी लंबे समय तक गाना बजाना होता है. साथ ही अनारकली की शोहरत, उसके आस पास के किरदार और उसके कद्रदानों के किरदारों को खड़ा करने में काफी लंबा समय लिया गया है जिससे फिल्म की शुरुआत धीमी पड़ जाती है. साथ ही शुरुआत में स्क्रीनप्ले थोड़ा बिखरा लगता है. इस फिल्म का आधार बिहार का बनाया गया है इसलिए हो सकता है कि कुछ दर्शकों को भाषा या यहां के हास्य भाव को समझने में थोड़ी परेशानी आए.
वहीं इस फिल्म की खूबियों की बात करें तो इसकी सबसे बड़ी ताकत है इसका विषय, इसकी कहानी , इसकी स्क्रिप्ट और इसके डाइयलॉग. साथ ही जब ये सब बिहार की पृष्ठभूमि पर घटित होता है तो इसमें मनोरंजन का तड़का और मजबूत हो जाता है. हालांकि स्क्रीन्प्ले में थोड़ा झोल है लेकिन फिल्म का संगीत और कलाकारों का अभिनय आपको इसका अहसास होने नहीं देता. फिल्म का हर ऐक्टर अपनी कसौटी पर खरा उतरता है और उनका अभिनय दृश्यों में दम भर देता है. स्वरा भास्कर का बेहतरीन अभिनय उनसे आपको नजरें हटाने नहीं देगा, वहीं इश्तियाक खान अपने हर सीन में बाजी मार ले जाते हैं.
संजय मिश्रा बेजोड़ ऐक्टर हैं और उन्होंने एक बार फिर साबित किया है कि फिल्म इंडस्ट्री को उन्हें कॉमेडी से हट कर भी देखना चाहिए. इस फिल्म में जहां एक संदेश है वहीं इसमें कई सीन्स में ह्युमर भी है. हालांकि यह फिल्म भी 'पिंक' की तरह ही यही संदेश देती है कि 'न का मतलब न होता है' और बिना मर्जी के जोर जबरदस्ती गलत है. यह एक अच्छी फिल्म है जिसे देखना चाहिए. इस फिल्म के लिए मेरी रेटिंग है 3.5 स्टार्स.
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