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साल 2018 में 'विपक्षी एकता' की तस्वीरें तो खूब खिंची, लेकिन अभी तक नहीं बन पाई कोई आम राय, 10 बातें

हिंदी भाषी राज्यों के हालिया विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की जीत ने हालांकि कुछ महत्वाकांक्षी क्षेत्रीय दलों को हतोत्साहित कर दिया है, जो यह कहना चाहते हैं कि अगली सरकार का गठन कैसे होगा.

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लोकसभा चुनाव में अब लगभग 100 दिन ही बचे हैं.
नई दिल्ली:

उत्तर प्रदेश के कैराना, फूलपुर और गोरखपुर में इस साल हुए संसदीय उपचुनावों में समाजवादी पार्टी (सपा), बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) के एकजुट होने से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को मिली हार से भाजपा विरोधी मोर्चे को अहम बढ़त हासिल हुई और 2018 के खत्म होते होते विपक्षी दल अब आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ मैदान में उतरने के लिए जुटने लगे हैं. हिंदी भाषी राज्यों के हालिया विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की जीत ने हालांकि कुछ महत्वाकांक्षी क्षेत्रीय दलों को हतोत्साहित कर दिया है, जो यह कहना चाहते हैं कि अगली सरकार का गठन कैसे होगा. इस संदर्भ में किसी भाजपा विरोधी मोर्चे पर ध्यान केंद्रित करने के बजाए विश्लेषकों को लगता है कि अब हालात भगवा दल को हराने के लिए राज्य स्तर के गठबंधन के लिए तैयार हैं और लोकसभा चुनाव के बाद अंतिम संख्या के सामने आने पर संघीय मोर्चा निर्भर करता है. लेकिन सवाल इस बात का है कि लोकसभा चुनाव से पहले गठबंधन नहीं हो पाया तो क्या एनडीए को हराना आसान होगा क्योंकि 'मोदी लहर' भले ही थम रही हो लेकिन उसके खिलाफ 'कांग्रेस लहर' जैसी भी बात नहीं है.

10 बड़ी बातें

  1. इस साल तृणमूल कांग्रेस की नेता व पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, तेलुगू देशम पार्टी के नेता व आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) प्रमुख शरद पवार  को राज्य की पार्टियों को एक भाजपा विरोधी मंच पर कांग्रेस के साथ लाने का प्रयास करते देखा गया. 
  2. विपक्षी एकता की नीव कांग्रेस ने तब रखी, जब उसने राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए संयुक्त उम्मीदवार उतारने पर फैसला करने के लिए बैठकें आयोजित कीं. कांग्रेस ने राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा को सत्ता से बेदखल करने के बाद विपक्षी खेमे में अपनी स्थिति और मजबूत कर ली है. 
  3. लेकिन उसे उत्तर प्रदेश, बिहार, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल जैसे महत्वपूर्ण राज्यों में गठबंधन की जरूरत है. पार्टी पूर्वोत्तर में प्रमुख दल होने का अपना दर्जा खो चुकी है.
  4. नरेंद्र मोदी सरकार की नीतियों पर अन्य विपक्षी दलों के साथ संयुक्त विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लेने वाले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी 2019 चुनाव में भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को हराने के लिए विपक्षी दलों के साथ आने की बात कर रहे हैं. 
  5. इस महीने की शुरुआत में 21 भाजपा विरोधी दलों की बैठक में 'काम करने के एक कार्यक्रम' के साथ आने का फैसला किया गया, ताकि राज्य विशिष्ट गठबंधन के बढ़ते एहसास के बीच अगले कुछ महीनों में इसपर काम किया जा सके और जल्द ही एक महागठबंधन को आकार दिया जा सके. 
  6. लेकिन अभी भी यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि कैसे और कब यह जमीनी स्तर का गठबंधन आकार लेगा, क्योंकि अब आम चुनाव में केवल चार महीने का ही समय रह गया है.
  7. यहां तक कि बिहार में, जहां भाजपा विरोधी पार्टियों के बीच एक गठबंधन निश्चित है, वहां भी स्पष्ट नहीं है कि कौन कितनी सीटों पर लड़ेगा. वहीं बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए ने राज्य में सीट बंटवारे का समाधान कर लिया है. 
  8. नायडू की पहल पर इस महीने की शुरुआत में विपक्षी दलों की बैठक में सपा और बसपा के न पहुंचने से पहले ही भाजपा विरोधी दलों के बीच असंगति दिखाई पड़ रही है. यह भी स्पष्ट नहीं है कि कांग्रेस उत्तर प्रदेश में प्रस्तावित गठजोड़ का हिस्सा होगी या नहीं. राज्य में लोकसभा की 80 सीटे हैं. 
  9. तेलंगाना राष्ट्र समिति के नेता के. चंद्रशेखर राव राज्य की सत्ता में वापसी करने के बाद गैर भाजपा, गैर कांग्रेस मंच तैयार करने के अपने प्रयासों में जुटे हुए हैं. 
  10. वाईएसआर कांग्रेस पार्टी, बीजू जनता दल, भारतीय राष्ट्रीय लोक दल और जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ जैसे दल अपनी राजनीतिक अकांक्षाओं के लिए गैर भाजपा, गैर कांग्रेस मंच को अधिक उपयुक्त पा सकते हैं.जिन राज्यों में भाजपा और कांग्रेस बड़ी पार्टियां हैं, या जहां जंग एनडीए बनाम यूपीए के बीच है, उन राज्यों को छोड़कर अधिकतर प्रदेशों में आगामी लोकसभा चुनाव में लड़ाई बहुकोणीय रहने वाली है. 

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