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भाजपा के लिए क्यों महत्वपूर्ण है कैराना का 'याराना', 5 बड़ी बातें 

कैराना से भाजपा के ही हुकुम सिंह सांसद थे और क्षेत्र में उनकी अच्छी-खासी धमक थी.अब भाजपा कैराना के जरिये पश्चिमी यूपी में अपनी धमक बरकरार रखना चाहती है.

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कैराना में भाजपा ने हुकुम सिंह के निधन के बाद उनकी बेटी मृगांका सिंह को मैदान में उतारा है.
नई दिल्ली:

भाजपा सांसद हुकुम सिंह के निधन के बाद खाली हुई कैराना लोकसभा सीट पर आज चुनाव हो रहा है. भाजपा की तरफ से मृगांका सिंह मैदान में हैं. तो वहीं विपक्ष ने साझा उम्मीदवार के रूप में तबस्सुम हसन को मैदान में उतारा है.कैराना का चुनाव आर-पार की लड़ाई जैसा हो गया है. पिछले दिनों सीएम योगी आदित्यनाथ और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के क्षेत्र गोरखपुर और फूलपुर में हार के बाद भाजपा की काफी किरकिरी हुई थी. ऐसे में पार्टी कैराना में अपनी साख बचाने के लिए पूरा दमखम लगा रही है.भाजपा की चुनौती इसलिये और बढ़ गई है क्योंकि कैराना में सपा, बसपा, आरएलडी, कांग्रेस जैसे विपक्षी दल एक साथ ताल ठोंक रहे हैं. गोरखपुर और फूलपुर में विपक्षी एकता की जीत के बाद कहा जा रहा था कि भाजपा की रणनीति कहीं न कहीं नाकामयाब हुई है. हालांकि अब भाजपा का दावा है कि कैराना में विपक्षी एकता को ध्यान में पार्टी ने अपनी रणनीति में बदलाव किया है.पार्टी का दावा है कि हर हाल में जीत उसे ही मिलेगी. बहरहाल, ये तो मतगणना के बाद ही तय होगा कि कैराना का 'याराना' किस दल के उम्मीदवार के साथ है, लेकिन आइये आपको बताते हैं भाजपा के लिए क्यों महत्वपूर्ण है कैराना.

भाजपा के लिए यूं महत्वपूर्ण है कैराना

  1. कैराना लोकसभा क्षेत्र पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सबसे प्रमुख लोकसभा क्षेत्रों में से एक है. अभी तक इस सीट से भाजपा के ही हुकुम सिंह सांसद थे और क्षेत्र में उनकी अच्छी-खासी धमक थी.अब हुकुम सिंह के निधन के बाद पार्टी ने उनकी बेटी मृगांका सिंह को मैदान में उतारा है.पार्टी की मंशा है कि मृगांका सिंह के जरिये कैराना में भाजपा के पारंपरिक वोटरों को जोड़े रखा जाए.साथ ही हुकुम सिंह की लोकप्रियता का फायदा भी उठाया जाए.
  2.  यूपी की राजधानी लखनऊ से करीब 630 किलोमीटर दूर स्थित कैराना लोकसभा सीट के तहत शामली जिले की थानाभवन, कैराना और शामली विधानसभा सीटों के अलावा सहारनपुर जिले की गंगोह और नकुड़ विधानसभा सीटें आती हैं. क्षेत्र में करीब 17 लाख मतदाता हैं.जिनमें मुस्लिम, जाट और दलितों की काफी संख्या.अमूमन जाट आरएलडी के पारंपरिक वोटर माने जाते हैं, लेकिन भाजपा ने इसमें सेंधमारी कर दी है. वर्ष 2014 में पार्टी को ठीक-ठाक वोट मिला था. कैराना के जरिये भाजपा पश्चिमी उत्तर प्रदेश पर पकड़ बनाये रखना चाहती है.
  3. कुछ दिनों पहले गोरखपुर और फूलपुर के उपचुनावों में भाजपा को विपक्षी गठबंधन के सामने हार का सामना करना पड़ा था. खुद सीएम योगी आदित्यनाथ और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य का क्षेत्र होने की वजह से यहां हार के बाद दोनों नेताओं पर सवाल खड़े हो गए थे. अब भाजपा कैराना को गोरखपुर और फूलपुर के बदले के तौर पर ले रही है. पार्टी यहां जीत से साबित करना चाहती है कि गोरखपुर और फूलपुर के नतीजे अपवाद थे. 
  4. कैराना पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में से एक है.यहां काफी संख्या में किसान हैं. खासकर गन्ना किसान.ऐसे में इन चुनावों से यह भी साफ होगा कि किसान किस तरफ खड़े हैं.किसान भाजपा के लिए कितने महत्वपूर्ण हैं इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि रविवार को कैराना से सटे बागपत में पीएम मोदी ने ईस्टर्न पेरीफेरल हाईवे के उद्घाटन के दौरान जनसभा में गन्ना किसानों का नाम लिया और कहा कि सरकार किसानों के प्रति संवेदनशील है. 
  5. कैराना के उपचुनाव को 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले का सेमीफाइनल भी कहा जा रहा है.इसकी वजहें भी हैं.विपक्ष एक साथ खड़ा है.ऐसे में भाजपा नई रणनीति के साथ मैदान में उतरी है और अगर आगे भी विपक्ष का गठबंधन जारी रहा तो फायदा की यह रणनीति लिटमस टेस्ट की तरह हो सकती है. जाहिर है कि अगर विपक्ष के खिलाफ भाजपा की रणनीति सफल रही तो पार्टी 2019 में विपक्षी गठबंधन की स्थिति में इसी रणनीति के साथ चुनाव में उतर सकती है.

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