प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में शुक्रवार को हुई कैबिनेट की बैठक में मुस्लिम महिला (विवाह अधिकारों का संरक्षण) बिल यानि ट्रिपल तलाक बिल को मंजूरी दे दी है. ये बिल संसद के शीतकालीन सत्र में सरकार का मुख्य एजेंडा हैं. राजनाथ सिंह के अध्यक्षता में बनी मंत्री समूह ने सलाह मशवरे के बाद बिल का ड्राफ्ट तैयार किया था. अगस्त में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक इस बिल में तुरंत ट्रिपल तलाक को आपराधिक करने के लिए कड़े प्रावधान शामिल किये गए हैं. इस ड्राफ्ट को तैयार करने वाले मंत्री समूह में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, वित्त मंत्री अरुण जेटली, विधि मंत्री रविशंकर प्रसाद और विधि राज्यमंत्री पीपी चौधरी थे.
तीन तलाक के खिलाफ बिल की 10 बातें
बिल में तीन तलाक़ को अब ग़ैरज़मानती अपराध माना गया है. अब दोषी पाए जाने पर इसके लिए तीन साल की जेल के अलावा जुर्माना भी देना पड़ सकता है. कैबिनेट की बैठक के बाद कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि कैबिनेट ने बिल को मंज़ूरी दे दी है और इससे जुड़े सारे तथ्य सरकार जल्दी ही संसद में पेश करेगी.
प्रस्तावित कानून एक बार में तीन तलाक या 'तलाक ए बिद्दत' पर लागू होगा और यह पीड़िता को अपने तथा नाबालिग बच्चों के लिए गुजारा भत्ता मांगने के लिए मजिस्ट्रेट से गुहार लगाने की शक्ति देगा.
इसके तहत पीड़ित महिला मजिस्ट्रेट से नाबालिग बच्चों के संरक्षण का भी अनुरोध कर सकती है और मजिस्ट्रेट इस मुद्दे पर अंतिम फैसला करेंगे.
मसौदा कानून के तहत, किसी भी तरह का तीन तलाक (बोलकर, लिखकर या ईमेल, एसएमएस और व्हाट्सएप जैसे इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से) गैरकानूनी होगा.
मसौदा कानून के अनुसार, एक बार में तीन तलाक गैरकानूनी और शून्य होगा और ऐसा करने वाले पति को तीन साल के कारावास की सजा हो सकती है. यह गैर-जमानती और संज्ञेय अपराध होगा.
सुप्रीम कोर्ट ने इस साल तीन तलाक़ पर लगातार सुनवाई की. कहा कि तीन तलाक़ ग़ैरकानूनी है और सरकार को इस पर क़ानून लाना चाहिए. कैबिनेट की मंज़ूरी के साथ ही इसपर राजनीतिक बहस फिर तेज़ हो गयी है.
जाने-माने क्रिमिनल लॉयर और राज्यसभा के सांसद के टी एस तुलसी ने कहा है कि कानून में सख़्त प्रावधानों की वजह से इसे अमल में लाना मुश्किल होगा. उन्होंने कहा कि तीन साल की सज़ा का प्रावधान शामिल करना सही नहीं होगा क्योंकि ये संवेदनशील मामला है और इसमें ज़मानत का प्रावधान होना चाहिये और सज़ा 1 से 2 महीने तक ही होनी चाहिये.
शिवसेना के प्रवक्ता और सासंद संजय राउत ने कहा कि ये मामला किसी धर्म से जुड़ा मामला नहीं है, ये महिलाओं को उनका हक दिलाने से जुड़ा है. उन्होंने कहा कि सभी राजनीतिक दलों को अपने अपने हित से उठकर इसका समर्थन करना चाहिये.
इस पूरे विवाद पर किसी क़ानूनी पहल को मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड टालने के हक़ में रहा. अब रविवार को उसकी बैठक होगी जिसमें बिल पर बाहर वालों की भी राय ली जाएगी.
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य ज़फ़रयाब जिलानी ने ये बात कही. सरकार की कोशिश इसी सत्र में बिल पास कराने की है. इस पर राजनीतिक आम सहमति बनाना उसकी अगली बड़ी चुनौती होगी.
(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)