अगर एम्प्लॉयर को दे रहे हैं टैक्स डिक्लेयरेशन : इन 10 बदलावों का रखें खास ध्यान...

अगर एम्प्लॉयर को दे रहे हैं टैक्स डिक्लेयरेशन : इन 10 बदलावों का रखें खास ध्यान...

हर वित्तवर्ष की शुरुआत में प्रत्येक कर्मचारी को सालभर में अपनी निवेश योजनाओं की जानकारी नियोक्ता को देनी होती है...

नई दिल्ली: हर वित्तवर्ष की शुरुआत में हर नौकरीपेशा शख्स अपने नियोक्ता को उस रकम की जानकारी देता है, जो वह इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम, बीमा पॉलिसी प्रीमियम, मकान किराया, होम लोन, एजुकेशन लोन या बच्चों की ट्यूशन फीस पर खर्च करने वाला है, और इसी घोषणा के आधार पर नियोक्ता तय करता है कि नौकरी करने वाले शख्स की एनुअल टैक्स लायबिलिटी, यानी वार्षिक कर देनदारी कितनी होगी, और उसे आपके वेतन से कितना टीडीएस (स्रोत पर कर कटौती या टैक्स डिडक्टिड एट सोर्स) काटना होगा. यदि ध्यान से और सोचसमझकर किया जाए, तो यह घोषणा भी आपको सालभर के लिए टैक्स प्लानिंग करने में मददगार साबित हो सकती है... इस साल कुछ नियम बदल गए हैं, सो, जब आप अपने नियोक्ता को अपनी बचत की जानकारी दें, तो 1 अप्रैल, 2017 से बदल चुके इन नियमों का ध्यान रखें...

मामले से जुड़ी अहम जानकारियां :

  1. अब 2,50,000 रुपये से 5,00,000 रुपये के बीच की आय पर लगने वाले इनकम टैक्स को 10 फीसदी से घटाकर पांच फीसदी कर दिया गया है...  इसके अलावा सेक्शन 87-ए के तहत पांच लाख रुपये तक की करयोग्य आय वालों को पिछले साल तक मिलने वाली 5,000 रुपये की छूट को घटाकर 2,500 रुपये कर दिया गया है, और इसकी सीमा को घटाकर 3,50,000 लाख रुपये कर दिया गया है, यानी जिनकी करयोग्य आय 3,50,000 रुपये वार्षिक से ज़्यादा है, उन्हें कोई छूट नहीं मिलेगी... इसका सीधा-सीधा अर्थ यह हुआ कि जिनकी करयोग्य आय 3,00,000 से 5,00,000 रुपये के बीच है, उन्हें 7,700 रुपये की बचत होगी, जबकि 5,00,000 रुपये से 50,00,000 रुपये करयोग्य वालों को सालाना 12,900 रुपये की बचत होगी...

  2. जिन लोगों की वार्षिक करयोग्य आय 50,00,000 रुपये से 1,00,00,000 रुपये के बीच है, उन्हें अब 10 प्रतिशत सरचार्ज देना होगा, जबकि 1,00,00,000 रुपये वार्षिक करयोग्य आय वालों को पहले की ही तरह 15 फीसदी सरचार्ज देते रहना पड़ेगा... हालांकि 50,00,000 रुपये से अधिक करयोग्य आय वालों को मार्जिनल रिलीफ का लाभ मिल सकता है... मार्जिनल रिलीफ का नियम इसलिए लाया गया है, ताकि उन लोगों को सरचार्ज में कुछ छूट मिल सके, जिनकी करयोग्य आय 50,00,000 रुपये या 1,00,00,000 रुपये से कुछ ही ज़्यादा है...

  3. इस वित्तवर्ष से, यानी आकलन वर्ष (एसेसमेंट ईयर) 2018-19 से, राजीव गांधी इक्विटी सेविंग स्‍कीम में निवेश पर कोई टैक्स लाभ नहीं मिलेगा, क्योंकि इस योजना को इस साल से खत्म कर दिया गया है... वित्त वर्ष 2012-13 में इस टैक्‍स सेविंग स्‍कीम की घोषणा की गई थी, और इसका उद्देश्य प्रतिभूति बाज़ार में पहली बार निवेश करने वाले उन लोगों को प्रोत्‍साहन देना था, जिनकी आय एक निश्चित सीमा से कम थी...

  4. नए नियमों के अनुसार, अब उन लोगों को टैक्स में कम छूट मिलेगी, जो अब तक अपने ऐसे घर पर भी होमलोन के ब्याज पर छूट लिया करते थे, जिनमें वे खुद नहीं रहते... अब तक किराये पर चढ़ाए गए ऐसे घर पर लिए गए होमलोन के लिए ब्याज की पूरी रकम को किराये से होने वाली आमदनी को घटाकर टैक्स में छूट पाई जा सकती थी, जबकि उन घरों पर, जिनमें लोन लेने वाला खुद रह रहा है, सिर्फ 2,00,000 रुपये तक के ब्याज पर ही टैक्स में छूट मिलती थी... अब इस साल किराये पर चढ़ाए गए घर पर भी किराये की रकम को घटाकर सिर्फ 2,00,000 रुपये तक के ब्याज पर ही टैक्स छूट हासिल की जा सकेगी... इस नियम का उद्देश्य उन लोगों पर लगाम लगाना है, जो एक से ज़्यादा घर खरीदकर होमलोन ले लेते हैं, और उसके ज़रिये टैक्स में छूट पा रहे थे...

  5. हालांकि अगर ब्याज की रकम 2,00,000 रुपये से ज़्यादा है, तो लोन लेने वाला उसे आठ आकलन वर्षों तक आगे कैरी फॉरवर्ड कर सकता है, और छूट हासिल कर सकता है, क्योंकि शुरुआती सालों में आपकी ईएमआई में ब्याज की रकम ज़्यादा होती है, और फिर धीरे-धीरे कम होती जाती है...

  6. जिन घरों का किराया 50,000 रुपये प्रतिमाह से ज़्यादा है, उनका भुगतान करते वक्त पांच फीसदी टीडीएस काटना अनिवार्य होगा... टैक्स विशेषज्ञों का कहना है कि इससे उन लोगों को टैक्स के दायरे में लाना सुनिश्चित हो पाएगा, जो मकान किराये के रूप में खासी रकम कमाते हैं... यह नियम 1 जून, 2017 से लागू होगा...

  7. लॉन्ग-टर्म (दीर्घकालिक) कैपिटल गेन के लिए किसी संपत्ति का होल्डिंग पीरियड तीन साल से घटाकर दो साल कर दिया गया है... इसका अर्थ यह होगा कि अगर कोई व्‍यक्ति किसी संपत्ति को खरीदकर उसे दो साल के भीतर ही बेच देता है, तो उस पर होने वाला लाभ शॉर्ट-टर्म कैपिटल गेन माना जाएगा, और उसी के अनुसार टैक्‍स देना होगा...

  8. होल्डिंग अवधि को घटाकर दो साल किए जाने के साथ-साथ इंडेक्सेशन ऑफ कॉस्ट (indexation of cost) कैलकुलेट करने का बेस ईयर भी बदल दिया गया है... अब बेस ईयर को वर्ष 1981 से बदलकर वर्ष 2001 कर दिया गया है...

  9. अब तलाशी में 50,00,000 रुपये या उससे अधिक की अघोषित आय व संपत्ति पाते हैं, तो उन्हें पिछले 10 साल के मामले खंगालने का अधिकार होगा... फिलहाल वे पिछले छह साल तक के बहीखाते ही टटोल सकते थे... इसके अलावा समय पर इनकम टैक्स रिटर्न फाइल नहीं करने वाले लोगों को आकलन वर्ष 2018-19 से 10,000 रुपये तक का जुर्माना देना होगा... हालांकि यदि कुल करयोग्य आय 5,00,000 रुपये से अधिक नहीं है, तो जुर्माने की रकम 1,000 रुपये से ज़्यादा नहीं होगी... इसके अलावा सरकार ने इस साल से इनकम टैक्स रिटर्न में आधार नंबर दर्ज किया जाना अनिवार्य कर दिया है...

  10. अब छह लाख रुपये से 18 लाख रुपये सालाना तक कमाने वाले, यानी मध्यमवर्गीय लोग प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) के तहत पहला घर खरीदने पर होम लोन ब्याज में सब्सिडी के हकदार होंगे... इस योजना का नाम क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी स्कीम फॉर मिडिल इन्कम ग्रुप्स (सीएलएसएस - एमआईजी) रखा गया है... क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी स्कीम फॉर मिडिल इन्कम ग्रुप्स (सीएलएसएस - एमआईजी) के तहत होम लोन के वे सभी आवेदन आएंगे, जो 1 जनवरी, 2017 से अब तक मंज़ूर हो चुके हैं, या जो फिलहाल विचाराधीन हैं... इसके तहत लाभ लेने के लिए आवेदक के नाम से पहले से कोई घर नहीं होना चाहिए... प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की थी कि 12 लाख रुपये तक कमाने वालों को नौ लाख रुपये तक के होम लोन पर चार प्रतिशत की सब्सिडी दी जाएगी, और 18 लाख रुपये तक कमाने वालों को 12 लाख रुपये तक के होम लोन पर तीन फीसदी की सब्सिडी दी जाएगी... होम लोन के ब्याज पर सब्सिडी देने की यह योजना सरकार की 'सबके लिए घर' का हिस्सा है, और इस योजना को शुरू में सिर्फ एक साल के लिए लागू किया जा रहा है...