नई दिल्ली:
वाराणसी के ज्ञानवापी परिसर स्थित मां श्रृंगार गौरी के नियमित दर्शन-पूजन की मांग को लेकर दायर याचिका को वाराणसी की कोर्ट ने सुनवाई के योग्य माना है. वाराणसी की जिला अदालत ने हिन्दुओं के पक्ष में फैसला दिया है. अदालत ने कहा कि इस मामले पर सुनवाई में कोई बाधा नहीं है.
- अदालत ने कहा कि याचिका पक्ष के वकील की तरफ से संपत्ति पर घोषणा या निषेधाज्ञा की मांग नहीं की है. उन्होंने पूजा स्थल को मस्जिद से मंदिर में बदलने के लिए राहत की मांग भी नहीं की है. वादी केवल मां श्रृंगार गौरी और अन्य देवताओं की पूजा करने के अधिकार की मांग कर रहे हैं, जिनकी पूजा 1993 तक और 1993 के बाद से अब तक उत्तर प्रदेश राज्य के नियमन के तहत वर्ष में एक बार की जा रही थी. इसलिए, उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 वादी के मांग पर प्रतिबंध के रूप में कार्य नहीं करता है. याचिकाकर्ता की तरफ से दायर मुकदमा नागरिक अधिकार, मौलिक अधिकार के साथ-साथ परंपरागत और धार्मिक अधिकार के रूप में पूजा के अधिकार तक सीमित है और अदालत इससे सहमत है.
- वहीं मुस्लिम पक्ष द्वारा रखे गए तर्क पर अदालत ने कहा कि इनकी तरफ से रखी गयी बातें वक्फ अधिनियम, 1995 की धारा 85 द्वारा वर्जित है क्योंकि वाद का विषय वक्फ संपत्ति है और केवल वक्फ न्यायाधिकरण लखनऊ को ही मामले पर निर्णय करने का अधिकार है. लेकिन वक्फ अधिनियम के 54, 61, 64, 67, 72 और 73 के तहत इसके अधिकार क्षेत्र पर रोक नहीं लगाता है. इसलिए, वर्तमान मुकदमे पर विचार करने के लिए इस अदालत के अधिकार क्षेत्र पर रोक नहीं है. इसलिए, वादी का मुकदमा वक्फ अधिनियम 1995 की धारा 85 द्वारा वर्जित नहीं है.
- प्रतिवादी के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि विवादित सम्पत्ति पर ज्ञानवापी मस्जिद स्थित है. वादपत्र के पैरा 5 और 6 में यह उल्लेख किया गया है कि इस्लामी शासक औरंगजेब ने वर्ष 1669 में मंदिर को ध्वस्त कर दिया और वहां एक मस्जिद का निर्माण किया, जो कि प्लॉट नंबर 9130. पर स्थित है. खसरा बंदोबस्त में 1291 फसली, ज्ञानवापी मस्जिद को प्लॉट संख्या 9130 पर दिखाया गया है. प्रतिवादी संख्या 4 ने वर्ष 1883-84 की खसरा बंदोबस्ती दायर की जो कि पेपर नं. 220 सी है. यह ज्ञानवापी मस्जिद राजपत्र में वक्फ संख्या 100, वाराणसी के रूप में पंजीकृत है. इसलिए ज्ञानवापी मस्जिद वक्फ की संपत्ति है और वादी को वहां पूजा करने का कोई अधिकार नहीं है. अदालत ने कहा कि मेरे विचार में, प्रतिवादी संख्या 4 के इस तर्क में ज्यादा दम नहीं है क्योंकि वादी विवादित संपत्ति पर केवल पूजा करने के अधिकार का दावा कर रहे हैं. वे इस तर्क के साथ मां श्रृंगार गौरी और अन्य दृश्यमान और अदृश्य देवताओं की पूजा करना चाहते हैं कि वे वर्ष 1993 तक वहां पूजा करते थे साथ ही वादी विवादित संपत्ति पर स्वामित्व का दावा नहीं कर रहे हैं. उन्होंने यह घोषणा करने के लिए भी मुकदमा दायर नहीं किया है कि विवादित संपत्ति एक मंदिर है.
- याचिकाकर्ताओं की दलीलों के अनुसार, वे 1993 तक लंबे समय से लगातार विवादित स्थान पर मां श्रृंगार गौरी, भगवान हनुमान, भगवान गणेश की पूजा कर रहे थे. 1993 के बाद, उन्हें केवल एक बार उपरोक्त देवताओं की पूजा करने की अनुमति दी गई थी. इस प्रकार, वादी के अनुसार, उन्होंने 15 अगस्त, 1947 के बाद भी नियमित रूप से विवादित स्थान पर मां श्रृंगार गौरी, भगवान हनुमान की पूजा की. इसलिए, पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 वादी के सूट पर रोक के रूप में काम नहीं करता है. और वादी का मुकदमा अधिनियम की धारा 9 द्वारा वर्जित नहीं है.
- प्रतिवादी के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि वादी का वाद उत्तर प्रदेश श्री काशी विश्वनाथ मंदिर अधिनियम, 1983 (1983 का अधिनियम संख्या 29) द्वारा वर्जित है. मेरे विचार में, प्रतिवादी संख्या 4 यह साबित करने में विफल रहा कि वादी के वाद को यू.पी. काशी विश्वनाथ मंदिर अधिनियम, 1983 (1983 का अधिनियम संख्या 29). अधिनियम की धारा 5 में यह घोषणा की गई है कि मंदिर का स्वामित्व और उसकी बंदोबस्ती श्री काशी विश्वनाथ के देवता में निहित होगी. अधिनियम की धारा 6 में प्रावधान है कि नियत तिथि से, मंदिर का प्रशासन और उसके अनुदान एक बोर्ड में निहित होंगे जिसे श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के लिए न्यासी बोर्ड कहा जाएगा. अदालत ने तमाम प्रावधानों पर चर्चा करने के बाद कहा कि उपर्युक्त प्रावधानों के अवलोकन से, यह स्पष्ट है कि मंदिर के परिसर के भीतर या बाहर बंदोबस्ती में स्थापित मूर्तियों की पूजा के अधिकार का दावा करने वाले मुकदमे के संबंध में अधिनियम द्वारा कोई रोक नहीं लगाई गई है.