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क्या है आदर्श सोसाइटी घोटाला? अशोक चव्हाण के खिलाफ भी CBI नहीं पेश कर सकी सबूत, पढ़ें-10 बातें

इस मामले में हाईकोर्ट ने विवादित आदर्श हाउसिंग सोसाइटी की इमारत गिराने और नेताओं और अधिकारियों के खिलाफ जांच के आदेश दिए हैं.

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आदर्श सोसायिटी घोटाला मामले में भी अशोक चव्हाण के खिलाफ CBI सबूत पेश नहीं कर पाई. ( फाइल फोटो)
मुंबई:

बंबई हाईकोर्ट ने आदर्श हाउसिंग सोसाइटी घोटाला मामले में महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता अशोक चव्हाण के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए महाराष्ट्र के राज्यपाल से सीबीआई को मिली मंजूरी को आज खारिज कर दिया. न्यायमूर्ति रंजीत मोरे और न्यायमूर्ति साधना जाधव की खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा कि हालांकि सीबीआई ने मुकदमा चलाने की मंजूरी मांगते वक्त दावा किया था कि उसके पास चव्हाण के खिलाफ नए सबूत हैं, लेकिन वह ‘‘कोई नया सबूत पेश करने में असफल रही. हालांकि इस मामले में हाईकोर्ट ने विवादित आदर्श हाउसिंग सोसाइटी की इमारत गिराने और नेताओं और अधिकारियों के खिलाफ जांच के आदेश दिए हैं. आखिर क्या यह पूरा मामला.

कब और क्या हुआ इस इस मामले में

  1. महाराष्ट्र सरकार ने युद्ध मारे गए सैनिकों और रक्षा मंत्रालय के कर्मचारियों के लिए बिल्डिंग बनाने का फैसला किया था. जिसे कोलाबा में आदर्श हाउसिंग सोसायटी के नाम से बनाया गया था. इसके बनने के बाद आरटीआई में खुलासा हुआ कि नियमों को ताक में रखकर इसके फ्लैट अफसरों, नेताओं को बेहद कम कीमत में दे दिए गए. इस घोटाले का पर्दाफाश 2010 में हुआ था.
  2. इसमें महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण को इस्तीफा देना पड़ गया था क्योंकि इस घोटाले में उनका भी नाम खूब उछला था. 
  3. 21 दिसंबर 2010 में मुंबई हाईकोर्ट ने इसको धोखेबाजी का मामला बताया और इसके बाद यह भी सामने आया कि इस बिल्डिंग को बनाने के लिए पर्यावरण के नियमों को ताक पर रख दिया गया और बाद में इसको गिराने के आदेश दे दिए गए.
  4. 2011 में इस मामले की न्यायिक जांच के आदेश दिए गए और महाराष्ट्र सरकार ने जस्टिस जेए पाटिल की अध्यक्षता में दो सदस्यीय न्यायिक आयोग का गठन किया. इसमें 182 से ज्यादा लोगों से पूछताछ की गई और साल 2013 में अपनी रिपोर्ट सौंप दी. 
  5. जांच में सामने आया कि करीब 25 फ्लैट गैरकानूनी तौर पर आबंटित किए गए हैं. इनमें से 22 फ्लैट फर्जी नाम से खरीदे गए थे. इस आयोग की रिपोर्ट में 4 पूर्व मुख्यमंत्रियों के नाम भी सामने आए थे. जिसमें अशोक चव्हाण, विलासराव देशमुख, सुनील कुमार शिंदे और शिवाजीराव निलंगेकर के नाम शामिल थे.
  6. इसके अलावा दो पूर्व शहरी विकास मंत्री सहित 12 अधिकारियों के भी नाम थे. इस मामले की जांच सीबीआई, इनकम टैक्स, ईडी ने भी जांच की. मई 2012 में 7 लोगों के खिलाफ विशेष अदालत ने 7 लोगों को रिहा कर दिया क्योंकि सीबीआई ने 60 दिन के अंदर चार्जशीट फाइल नहीं कर पाई थी.
  7. 4 जुलाई, 2012 को सीबीआई ने इस मामले में पहला आरोपपत्र सीबीआई की विशेष अदालत में दायर किया. दिसंबर 2013 को महाराष्ट्र के तत्कालीन राज्यपाल के. शंकरनारायणन ने अशोक चव्हाण के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति देने से इनकार किया.
  8. जनवरी 2014 में सत्र अदालत ने सीबीआई के अनुरोध पर बतौर आरोपी अशोक चव्हाण का नाम मुकदमे से हटाने से इनकार किया. मार्च 2015 में बंबई उच्च न्यायालय ने मुकदमे से नाम हटाने का अनुरोध करने वाली अशोक चव्हाण की याचिका को खारिज किया. 
  9. अक्तूबर 2015 में सीबीआई ने चव्हाण के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए मंजूरी प्राप्त करने के वास्ते महाराष्ट्र के राज्यपाल सीएच विद्यासागर राव को और सबूत सौंपे. फरवरी 2016 में राज्यपाल राव ने अशोक चव्हाण के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति सीबीआई को दी.  राज्यपाल के आदेश के खिलाफ चव्हाण उच्च न्यायालय पहुंचे.
  10. 22 दिसंबर, 2017 में हाईकोर्ट ने चव्हाण की याचिका स्वीकार की.  उनके खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति देने के राज्यपाल के आदेश को खारिज किया.

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