चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा दो अक्टूबर को रिटायर होने जा रहे हैं. उन्होंने जस्टिस रंजन गोगोई का नाम अगले CJI के लिए केंद्र सरकार को भेजा है. जस्टिस दीपक मिश्रा ने 14 फरवरी 1977 को उड़ीसा हाई कोर्ट में वकालत की प्रैक्टिस शुरू की थी. इसके बाद 1996 में उन्हें उड़ीसा हाई कोर्ट का एडिशनल जज बनाया गया और बाद में उनका ट्रांसफर मध्य प्रदेश हाई कोर्ट कर दिया गया. इसके बाद वे दिसंबर 2009 में पटना हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस बने. 24 मई 2010 में दिल्ली हाई कोर्ट में बतौर चीफ जस्टिस उनका ट्रांसफर हुआ और 10 अक्टूबर 2011 को उन्हें सुप्रीम कोर्ट का जज बनाया गया. पिछले साल 28 अगस्त को उन्होंने बतौर चीफ जस्टिस कार्यभार ग्रहण किया. सुप्रीम कोर्ट में अपने कार्यकाल के दौरान जस्टिस दीपक मिश्रा ने कई ऐतिहासिक फैसले सुनाये. बहुचर्चित निर्भया कांड में दोषियों की सजा को बरकरार रखने का उनका फैसला लैंडमार्क माना गया. तो वहीं आतंकी याकूब मेमन की फांसी से ऐन पहले आधी रात को सुनवाई की और सजा बरकरार रखी. आइये आपको चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के ऐसे ही पांच ऐतिहासिक फैसलों के बारे में बताते हैं.
जस्टिस दीपक मिश्रा के 5 ऐतिहासिक फैसले
- पूरे देश को झकझोरने वाले बहुचर्चित निर्भया कांड के दोषियों ने सुप्रीम कोर्ट में फांसी की सजा पर पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने तीनों दोषियों की याचिका खारिज कर दी. इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस आर भानुमति और जस्टिस अशोक भूषण की बेंच ने किया और इसे लैंडमार्क माना गया.
- मुंबई धमाकों में दोषी ठहराए गए याकूब मेमन ने फांसी से ठीक पहले अपनी सज़ा पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली थी. याकूब के मामले में आजाद भारत में पहली बार रात को अदालत खुली. 29 जुलाई 2013 की रात जस्टिस दीपक मिश्रा समेत तीन जजों की बेंच ने मामले की सुनवाई की और याकूब की याचिका रद्द कर दी.
- जस्टिस दीपक मिश्रा प्रमोशन में आरक्षण से जुड़े मामले की सुनवाई के लिए भी जाने जाते हैं. यूपी की मायावती सरकार की प्रमोशन में आरक्षण की नीति पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने रोक लगा दी थी यह मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा और सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फ़ैसले को बरकरार रखा. फ़ैसला देने वाली दो जजों की बेंच में जस्टिस दीपक मिश्रा भी थे.
- वर्ष 2016 में जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस सी नगाप्पन की बेंच ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को आदेश दिया कि एफ़आईआर की कॉपी 24 घंटों के अंदर अपनी वेबसाइट पर अपलोड करें. इस फैसले को ऐतिहासिक माना गया. क्योंकि पुलिस द्वारा एफआईआर दर्ज करने में हीला-हवाली के मामले अक्सर सामने आ रहे थे.
- सिनेमा घरों में राष्ट्रगान बजाने के फैसले को बहुत लोगों ने सराहा, तो कुछ लोगों ने इसकी आलोचना भी की. आपको बता दें कि नवंबर 2016 में जस्टिस दीपक मिश्र की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने ही यह फैसला दिया था. हालांकि जनवरी 2018 में एक अहम फ़ैसले में सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजाने की अनिवार्यता खत्म कर दी गई.