![महाकुंभ में नजर आने वाले नागा साधु क्यों पहनते हैं गले में रुद्राक्ष की मालाएं और शरीर पर लगाते हैं भभूत, जानिए यहां... महाकुंभ में नजर आने वाले नागा साधु क्यों पहनते हैं गले में रुद्राक्ष की मालाएं और शरीर पर लगाते हैं भभूत, जानिए यहां...](https://c.ndtvimg.com/2025-02/bkigm3l_ls_625x300_09_February_25.jpg?im=FitAndFill,algorithm=dnn,width=773,height=435)
Naga Sadhu in Mahakumbh 2025 : संगम नगरी प्रयागराज में महाकुंभ 2025 चल रहा है. 12 वर्ष में एक बार लगने वाले महाकुंभ में बड़ी संख्या में नागा साधु पहुंचते हैं और ये मेले का मुख्य आकर्षण माने जाते हैं. इन साधुओं को महाकुंभ मेले के दौरान ही देखा जाता है बाकि समय अपनी रहस्यमयी दुनिया में रहते हैं. कुंभ के बाद इन्हें आमतौर पर देखना मुश्किल है. महाकुंभ में नजर आने वाले नागा साधु का जीवन, उनके इतिहास और श्रृंगार के बारे में जानने की लोगों में काफी जिज्ञासा होती है. नागा साधु वस्त्र धारण नहीं करते हैं. वे अपने शरीर पर भभूत लगाते हैं और कई रुद्राक्ष की माला धारण करते हैं. ऐसे में आइए जानते हैं नागा साधु क्यों पहनते हैं रुद्राक्ष की मालाएं और शरीर पर लगाते हैं भभूत.
महाकुंभ में नागा साधु क्यों पहनते हैं रुद्राक्ष माला? Why Naga Sadhus wear Rudraksha Mala in Mahakumbh
अधिकतर नागा साधु वस्त्र धारण नहीं करते हैं नग्न अवस्था में रहते हैं. उनके शरीर पर भस्म और रुद्राक्ष ही नजर आते हैं. रुद्राक्ष की मालाएं नागा साधुओं के लिए कवच की तरह काम काम करती हैं. नागा साधु अपने आध्यात्मिक स्वभाव के कारण लगातार घूमते रहते हैं. वे ऐसी भी जगहों पर जाते हैं, जहां का वातावरण उनके लिए अनुकूल नहीं होता है, नकारात्मक ऊर्जा उन्हें परेशान कर सकती हैं. महाकुंभ मेले में भी करोड़ों की संख्या में लोग आते हैं. स्वयं को नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षित रखने के लिए नागा साधु हमेशा रुद्राक्ष की मालाएं धारण किए रहते हैं. रुद्राक्ष की मालाएं नागा साधुओं के साधना में भी अहम भूमिका निभाती है, इसमें विशिष्ट चुंबकीय और ऊर्जा संतुलन की विशेषताएं होती हैं. जो नागा साधुओं को इस पवित्र समय में अपनी भक्ति और तपस्या को और भी गहराई से करने में सहायता करती हैं.
रुद्राक्ष को माना गया है भगवान शिव का वरदान
नागा साधु भगवान शिव की पूजा करते हैं और वे भगवान शिव को ही अपना अराध्य देव मानते हैं. रुद्राक्ष को महादेव का ही दिव्य वरदान माना गया है. पौराणिक कथाओं में वर्णन मिलता है कि रुद्राक्ष, रुद्र यानी शिव के आंसुओं से उत्पन्न हुआ है. भगवान शिव हजारों वर्षों तक आंखें बंद करके ध्यान में बैठे रहने के बाद जब अपनी आंखें खोली तो उनके नेत्रों से परमानंद के आंसू बहे, जो पृथ्वी पर गिरे और पवित्र रुद्राक्ष बन गए. ये मोती दुनिया के लिए शिव का वरदान माना जाता है. नागा साधुओं के गले में रुद्राक्ष की माला भगवान शिव से गहन आध्यात्मिक संबंध का प्रतीक माना जाता है.
नागा साधु महाकुंभ में स्नान के पहले करते हैं श्रृंगार
महाकुंभ में अमृत स्नान से पहले 17 प्रकार का श्रृंगार करते हैं. वे अपने पूरे शरीर पर भभूत लगाते हैं और हाथ, माथे और गले में चंदन लगाते हैं. सिर, गले और बाजुओं में रुद्राक्ष की मालाएं धारण करते हैं. कड़ा, चिमटा, डमरू और कमंडल धारण करते हैं. सिर पर जटाओं को लपेटकर पंचकेश श्रृंगार करते हैं. पूरी तरह से 17 श्रृंगार कर नागा साधु स्नान के लिए संगम तट पर पहुंचते हैं. माना जाता है कि संगम के जल को देखकर वो वैसे ही प्रसन्न होते हैं, जैसे बच्चे अपनी मां को देखकर खुश होते हैं.
रुद्राक्ष माला पहनने के फायदे - Benefits of Rudraksha Mala
रुद्राक्ष को मानसिक परेशानियों से मुक्त कराने वाला माना जाता है. मानिसक परेशानियां चिंता, अवसाद, अनिद्रा हमारे मन में बहुत अधिक विचारों के उमड़ने के कारण होते हैं और माना जाता है कि रुद्राक्ष माला को धारण करने से या माला को जपने से इन समस्याओं से राहत मिलती है और मानसिक व शारीरिक पीड़ाएं भी दूर होती हैं.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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